दल बदलने में रिकॉर्ड बना चुके नारायण त्रिपाठी का मन कब बदल जाए ये कोई नहीं कह सकता। पिछले साल मानसून सत्र के आखिरी दिन अचानक से कांग्रेस नेताओं के साथ जाकर बीजेपी को सरप्राइज देने वाले नारायण शीतकालीन सत्र के पहले वापस पार्टी में तो आ गए लेकिन अब बजट सत्र से पहले वो फिर खुलकर पार्टी लाइन से बाहर चले गए। बिन बादल बरसात की तरह नारायण त्रिपाठी अचानक से सीएए के विरोध में खड़े हो गए जो बीजेपी सीएए के कानून से एक इंच पीछे हटने को तैयार नहीं उसी पार्टी के विधायक ने खुलकर खिलाफत शुरू कर दी। सीएए के विरोध में नारायण ने तर्क दिया कि इससे देश में गृहयुद्ध जैसे हालात बन रहे हैं और देश का धर्म के आधार पर बंटवारा किया जा रहा है।
इतना सुनते ही जहां बीजेपी खेमे में चुप्पी छा गई वहीं कांग्रेस की बांछें खिल गई। फौरन पचौरी खेमे के विधायक आरिफ मसूद मीडिया के सामने आए और कहा कि नारायण के डीएनए में ही कांग्रेस है। मसूद ने बाकी बीजेपी नेताओं को त्रिपाठी से नसीहत लेने की सलाह भी दे डाली।
इस पूरे घटनाक्रम से फिर सियासी हलचल तेज हो गई है। मसूद ने संकेत भी दे दिये हैं कि सदन में नारायण हमारे साथ ही होंगे। अब सवाल कई हैं। नारायण से सवाल…
नारायण त्रिपाठी ने अचानक सीएए का विरोध क्यों किया
क्या फिर कांग्रेस से बढ़ गई है नजदीकी
आखिर बार-बार क्यों मन बदले रहे हैं त्रिपाठी
त्रिपाठी के बदले तेवर किस तरफ कर रहे ईशारा
क्या बीजेपी को फिर झटका लगने वाला है ?
क्या कांग्रेस से त्रिपाठी की कोई डील हुई है ?
क्या बीजेपी अब नारायण त्रिपाठी पर कार्रवाई करेगी ?
या अब भी चुपचाप मजबूर होकर बगावत सहती रहेगी ?
नारायण त्रिपाठी ने अचानक सीएए का विरोध क्यों किया
क्या फिर कांग्रेस से बढ़ गई है नजदीकी
आखिर बार-बार क्यों मन बदले रहे हैं त्रिपाठी
त्रिपाठी के बदले तेवर किस तरफ कर रहे ईशारा
क्या बीजेपी को फिर झटका लगने वाला है ?
क्या कांग्रेस से त्रिपाठी की कोई डील हुई है ?
क्या बीजेपी अब नारायण त्रिपाठी पर कार्रवाई करेगी ?
या अब भी चुपचाप मजबूर होकर बगावत सहती रहेगी ?
एक तरफ सियासी लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए मौका देखकर पाला बदल लेते हैं तो दूसरी तरफ अफसर एक कानून की बात करने को गुनाह बताने पर तुल गए हैं। खैर देखना है कि नारायण के बगावती तेवर कब तक बने रहते हैं और पूर्व विधायक को चुप कराने वाली एसडीएम को सरकार से शाबासी मिलती है या नहीं।