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मोबाइल गेम ने काटी पतंग की डोर, शौक चढ़ा आधुनिकता की भेंट

locationभोपालPublished: Jan 06, 2019 09:22:01 pm

Submitted by:

Rohit verma

पतंगबाजी पर मोबाइल गेम पड़ रहे भारी, खत्म होने लगी परंपरा

patang in bhopal

मोबाइल गेम ने काटी पतंग की डोर, शौक चढ़ा आधुनिकता की भेंट

भोपाल से आसिफ सिद्दीकी की रिपोर्ट. नवाबों की नगरी भोपाल में अब पतंगबाजी की परंपरा लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। पिछले पांच सालों में पतंग का कारोबार आधे से भी कम रह गया। पहले जिन हाथों में पतंग की डोर हुआ करती थी अब उन्हीं हाथों में मोबाइल आ गया है और लोग नई तकनीक से गढ़े खेलों आकर्षित हो रहे हैं।

इससे हजारों हाथों को मिलने वाला पतंग बनाने का कारोबार भी लगभग ठप हो गया। पांच साल पहले तक भोपाल के आकाश में पतंगों के पेंच और कलाबाजी देखकर बच्चे बूढ़े सभी आनंद उठाते थे, लेकिन अब पतंगबाजी का शौक भी क्षणिक होकर रह गया है।

 

जीएसटी ने रोकी उड़ान
पूरी तरह हाथ से बनने वाले पतंग पर भी जीएसटी लागू होने से भी इस कारोबार की कमर टूट गई है। पतंग का थोक कारोबार करने वाले मो. ओवेश खान बताते हैं कि जहां मोबाइल गेम ने इस शौक को खत्म किया वहीं रही सही कसर 18 प्रतिशत जीएसटी ने पूरी कर दी। उन्होंने बताया कि इस कारोबार से जुड़ी वे तीसरी पीढ़ी हैं इसलिए इस कारोबार से अब तक अलग नहीं हुए हैं।

विज्ञापन बने संजीवनी
पिछले कुछ सालों से राजनीतिक संगठन, सामाजिक संगठनों और व्यक्ति विशेष द्वारा विज्ञापनों की परंपरा शुरू होने से यह कारोबार जिंदा है। मकर संक्रांति के अलावा राष्ट्रीय पर्वों पर संगठन अपने विज्ञापन वाले पतंग लोगों में बांटते हैं इससे लोगों को बिना मूल्य चुकाए पतंग उपलब्ध हो जाती है। इस नई परंपरा ने पतंग के कारोबार की डोर को थामे रखा है।

उम्मीद अभी जिंदा है
पतंग कारोबार से 50 साल से जुड़े अनवार खान (अन्नू भाई पतंग वाले) इस परंपरा को अब भी जिंदा रखे हुए हैं। वे पतंग में नए नए प्रयोग कर लोगों में इसके प्रति उत्सुकता बनाए हुए हैं। तीन साल पहले इन्होंने 18 गुणित 28 फीट की पतंग को दो घंटे तक उड़ाकर इसके प्रति लोगों का रुझान बढ़ाया था। अब वे इससे भी बड़ा पतंग बनाएंगे।

बेरोजगार हुए कलाकार हाथ
पतंग बनाने में दस साल पहले तक सैकड़ो परिवारों का भरण पोषण हुआ करता था। ऐशबाग इलाके में पतंग बनाने का काम करने वाली रेखाबाई कोरी बताती हैं कि वे पिछले कई सालों से यह काम कर रही हैं। पहले इस काम में क्षेत्र की सैकड़ों महिलाएं जुटा करती थी अब गिनती की महिलाएं यह काम कर रही हैं। पतंग बनाने में अब उतनी मजदूरी भी नहीं मिल पाती, लेकिन परिवार के लिए वे काम से अब भी जुड़ी हुई हैं। एक हजार पतंग में ठड्डा लगाने के 50 रुपए मिलते हैं।

 

विकल्प में मिली मजदूरी
ऐशबाग इलाके में ही रहने वाली द्रोपती अहिरवार ने तीन साल पहले ही इस काम से तौबा कर ली थी। उन्होंने बताया एक तो पतंग बनाने के आर्डर कम हो गए दूसरे इसमें उतनी मजदूरी भी नहीं मिल रही थी कि परिवार का पालन पोषण किया जा सके। आर्थिक तंगी से तंग आकर उनकी ही तरह एक दो दर्जन महिलाओं ने इस काम को छोडकऱ मजदूरी को बेहतर विकल्प समझा।

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