scriptexclusive : सौ से अधिक खतरनाक गैसें छोड़ती है मोबाइल फोन की बैटरी | Mobile phone batteries release more than a hundred dangerous gases | Patrika News

exclusive : सौ से अधिक खतरनाक गैसें छोड़ती है मोबाइल फोन की बैटरी

locationभोपालPublished: Feb 16, 2020 11:21:46 pm

Submitted by:

anil chaudhary

– मनुष्य और पर्यावरण के लिए बेहद घातक हैं मोबाइल की बैटरियां

 lithium ion battery india

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अनिल चौधरी, भोपाल. हर हाथ में इंटरनेट की चाहत के कारण पिछले कुछ सालों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। लगातार नई-नई मोबाइल फोन कंपनियां सामने आईं और अपने प्रोडक्ट मार्केट में उतारती गईं। इनके यूजर भी लगातार बढ़ते गए। बदलती टेक्नोलॉजी के कारण मोबाइल फोन में कई फीचर अपडेट होते गए। इस कारण यूजर भी लगातार मोबाइल फोन बदलते रहे। अपडेशन की इस होड़ में इन मोबाइल फोन के अवशेषों से पर्यावरण और मनुष्यों को होने वाले नुकसान पर गंभीरता से किसी ने काम नहीं किया।


जानकारी के मुताबिक 2015 से 2019 तक दुनिया में पांच बिलियन से ज्यादा मोबाइल यूजर ( number of mobile phone users in the world ) हो चुके थे। ई-मार्केटर के 2015 के सर्वे के मुताबिक भारत में 2014 में 581 मिलियन से ज्यादा मोबाइल यूजर थे। यह संख्या 2019 में ( 800 million mobile phone users in 2019 ) 800 मिलियन को पार कर गई। जाहिर है, मोबाइल की कम होती कीमतों और बढ़ती सुविधाओं ने इसे देश-दुनिया के लगभग हर व्यक्ति के हाथों में पहुंचा दिया है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इससे इंसानों के जीवन में काफी तेजी आई है।
एक स्थान पर ही मोबाइल में इंटरनेट के माध्यम से दुनिया की सभी खबरें मिलने लगी हैं, लेकिन मोबाइल में लगने वाली ( lithium ion battery india ) लिथियम लायन बैटरी ( mobile battery ) के पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर पडऩे वाले प्रभावों के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। यह भी कहा जा सकता है कि जिन लोगों को इसके नुकसान की जानकारी है, वे इसके खिलाफ चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। जागरुकता के अभाव के कारण दुनियाभर में ये बैटरियां उत्तम मानी जाती हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने भी लिथियम बैटरियों को पर्यावरण के लिए खतरा माना है।
इटली के अलेसांड्रो वोल्टा ने वर्ष 1792 में पहली बार बैटरी बनाई थी। इसी वर्ष उन्होंने 50 वोल्ट वाली इलेक्ट्रोकैमिकल सीरीज को भी पेश किया। हालांकि, फादर ऑफ लिथियम बैटरी जॉन गूडेनफ को कहा जाता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के लिए जॉन गूडेनफ और कोईची मिजुशीमा ने वर्ष 1980 में रिचार्जेबल लिथियम बैटरी को दिखाया। इससे पूर्व लिथियम बैटरी बनाने की पहली कोशिश एमएस विटिंघम कर चुके थे, लेकिन फिर भी ये बिजली उत्पन्न करने में उतनी कारगर नहीं हो रही थी। इससे बिजली उत्पन्न करने के लिए लिथियम को विभिन्न प्रकार के रसायनों के साथ उपयोग किया गया। इसके बाद वर्ष 1991 में सोनी और असाही कासई ने पहली लिथियम बैटरी पेश की। जबकि लिथियम पॉलिमर बैटरी 1997 में बनाई गई थी। लिथियम आयन और लिथियम पॉलिमर इन दोनों बैटरियों का ही उपयोग मोबाइल फोन में होता है, लेकिन चीन के सिंघुआ यूनिवर्सिटी और अमरीका के इंस्टीट्यूट ऑफ एनबीस डिफेंस के शोधकर्ताओं ने एक शोध में इन बैटरियों के नुकसान का विस्तार से जिक्र किया है।

– फट सकती हैं बैटरी
इस शोध के लिए 20 हजार लिथियम आयन बैटरियों का उपयोग किया गया। इन्हें आग लगने तक के तापमान में गर्म किया तो बैटरियां फट गईं। फटने के बाद कुछ ऐसा हुआ कि सभी चौंक गए। बैटरी फटने पर उनसे जहरीली गैसें निकलने लगीं। शोधकर्ताओं ने पाया कि स्मार्टफोन की बैटरी से कार्बन मोनोऑक्साइड सहित 100 से अधिक खतरनाक गैसें निकलती हैं। जिनसे त्वचा, आंख और नासिका मार्ग में जलन जैसे रोग होने के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। जाहिर है चार्ज करने के दौरान ज्यादा गर्म होने पर बैटरियां फट सकती हैं, ऐसे कई मामले दुनियाभर में सामने भी आ चुके हैं। बैटरी फटने के मामले जब सामने आए तो डेल कंपनी ने वर्ष 2006 में अपने लाखों लैपटॉप को बाजार से बाहर ही कर दिया, जबकि सैमसंग के नोट-7 में आग लगने के मामले सामने आए थे। सैमसंग ने भी मोबाइलों को बाजार से वापस मंगवा लिया था, इसलिए चार्ज करते समय मोबाइल का उपयोग करने के लिए मना किया जाता है।

– कुछ सावधानी भी जरूरी है
दोनों यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की मानें तो भले ही बैटरियों से गैस कम मात्रा में निकलती है, लेकिन आप यदि कार में या किसी भी बंद कमरे या स्थान पर हैं और बैटरियों से कार्बन मोनोऑक्साइड निकल रही है, तो यह घातक साबित हो सकती है। हालांकि स्वास्थ्य और पर्यावरण पर लिथियम बैटरी से पडऩे वाले प्रभाव से बचने के लिए बैटरी गर्म होने पर मोबाइल का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है। साथ ही बैटरी को कभी भी फुल चार्ज न करें। बार-बार मोबाइल को चार्जिंग पर नहीं लगाएं। यूएसबी केबल या डाटा बैंक से मोबाइल चार्ज करने से बचें और कंपनी के चार्जर से ही मोबाइल चार्ज करें। हालांकि, ऐसा बहुत ही कम लोग करते हैं और इन बैटरियों का उपयोग तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसे लोगों में जागरुकता का अभाव और नासमझी दोनों ही कहा जा सकता है, लेकिन सबसे गंभीर बात ये है कि दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण की लोगों से अपील करने वाली सरकार ही इसके प्रति सचेत नहीं है। सरकार के इस रवैया का ही नतीजा है कि एक तरफ तो पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं में अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन जीवनशैली में बदलाव का प्रयास शायद कोई नहीं कर रहा है। जिसके भीषण परिणाम हमें भविष्य में भुगतने पर सकते हैं।

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