गाना सुनकर रो पड़ी थी लता जी
2004 में प्रदर्शित फिल्म ‘वो तेरा नाम था’ से गीतकार शकील आजमी की जिंदगी में सुनहरी कामयाबी का दौर शुरू हो गया। उन्होंने सुबह हुई दिन निकल रहा है… गाना लिखा था। अलका यागनिक रिकॉर्डिंग के समय गाते-गाते भावुक हो गईं और वहीं अपनी मां को बुलाकर यह गाना सुनाया। जब संगीतकार रूपकुमार राठौर ने यह गीत लताजी को सुनाया, तो उन्होंने रुपकुमार को कहा कि तुमने इतना अच्छा गीत मुझसे क्यों नहीं गवाया। उनका ये गाना आज भी जयपुर ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन पर हर सुबह की शुरुआत में बजाया जाता है।
अभिनव को मुल्क बनाने से मना किया था
अभुनव सिन्हा ने लखनऊ में हुई घटना के बाद मूल्क फिल्म बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने मुझे गानें लिखने को कहा। इस तरह के सब्जेक्ट पर बनी धोखा और जिद जैसी फिल्मों के लिए मैं गीत लिख चुका था। ये फिल्म सुपर फ्लॉप रही। मैंने अनुभव से कहा कि आपकी फिल्म भी फ्लॉप हो जाएगा, लेकिन वे नहीं माने। मेरा मानना है कि जैसे शोले को फिर से नहीं बनाया जा सकता, कुछ उसी तरह की फिल्म मूल्क भी है।
जिंदगी का विलेन ही हीरो बन गया
आजमगढ़ (यूपी) में जन्में शकील मां की मौते के बाद मैं बड़ौदा नानी के घर चला गए। उनका कहना है कि मेरे मामा जिंदगी के सबसे बड़े विलेन थे, लेकिन आज वो मेरे हीरो है। खेती-किसानी परिवार से होने के कारण बचपन में मैं गोबर फेंकने का काम भी करता था। पढ़ाई में भी कभी मन नहीं लगा। चौथीं क्लास में घर से सौ रुपए चोरी कर मुंबई भाग गया। एक साल बाद वापस आया। छठवीं क्लास में फिर भागा, उसके बाद कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। घरवाले में मुझे सबसे नकारा इंसान समझते थे। आज में घर में सबका फेवरेट हूं। वो चाहते थे कि मैं भी मेरे दोस्त-रिश्तेदारों की तरह गल्फ कंट्री जाकर छोटा-मोटा काम करूं, लेकिन ईश्वर ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था।
दिल में तड़प होना जरूरी है
शकील का कहना है कि दिल में शायर बनने की तड़प थी। सो बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद जिंदगी के तजुर्बों ने ऐसा इल्म दिया कि लिखने लगे। ये सिलसिला काफी लंबा चला। फिर मुकद्दर मेहरबान हुआ। मां का प्यार नहीं मिला, इसे आज भी हर महिला में तलाश रहा हूं। जिंदगी में सक्सेस पाने के लिए तड़प होना, दुख पाना और जख्म खाना जरूरी है। सफलता के लिए अलग होने के साथ अच्छा इंसान होना भी जरूरी है।