बसपा प्रत्याशी के शामिल होने बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने खुलकर इसका विरोध किया था। मायावती ने यहां तक कह दिया था कि बसपा कमलनाथ सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेगी। हालांकि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उसके बाद डैमेज कंट्रोल किया था और बसपा विधायकों को मना लिया था। दरअसल, सियासी कहानी का सार ये नहीं है। मध्य प्रदेश विधानसभा में बसपा के दो विधायक हैं। जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम आये तो मायावती ने सबसे पहले कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया था।
जब कमलनाथ ने सीएम पद की शपथ ली तो बसपा विधायकों को उम्मीद थी कि उन्हें भी मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और बसपा में अदावत पहले से था, जिसे ताजा कर दिया ज्योतिरादित्य सिंधिया ने, सिंधिया ने लोकसभा चुनाव के दौरान गुना-शिवपुरी से चुनाव लड़ रहे बसपा प्रत्याशी लोकेन्द्र सिंह को कांग्रेस में शामिल कर दिया, जिसके बाद मायावती ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हालांकि समय रहते सब ठीक हो गया।
यहां तक तो सब ठीक चल रहा था लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में जिस तरह कांग्रेस में गुटबाजी देखने को मिली, उसे देखते हुए यहां की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने एग्जिट पोल आते ही कमलनाथ सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि यहां के तीन बड़े नेता पूरे चुनाव में कभी भी एक साथ नहीं दिखे। सिंधिया, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ कभी भी चुनाव प्रचार के दौरान एक साथ नहीं दिखे। इसे देखकर भाजपा नेताओं के लग गया कि प्रदेश कांग्रेस में सब ठीक नहीं है।
दूसरी सबसे बड़ी वजह विधायकों की नाराजगी है! सभी को पता है कि प्रदेश की कमलनाथ सरकार अल्पमत में है। मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा की सीट है। कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं यानि बहुमत से 2 कम। वहीं यहां कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के पास 109 विधायक हैं यानि बहूमत से 7 कम। इससे साफ है कि यहां की सरकार निर्दलीय और अन्य के भरोसे टिकी हुई है। मध्य प्रदेश में 4 निर्दलीय विधायक हैं, जबकि बसपा के सपा सपा के एक विधायक हैं। ये सात विधायक जिधर चले जाएंगे, उसकी सरकार बन जाएगी। अगर भाजपा को यहां सरकार बनानी है तो निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ बसपा और सपा विधायकों का समर्थन जरूरी है जबकि कमलनाथ को अपनी सरकार बचाने के लिए दो विधायकों की।
तीसरी सबसे बड़ी वजह है सरकार से नाराजगी! मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण निर्दलीय और बसपा सपा के विधायक तो नाराज हैं ही, साथ में कांग्रेस के विधायक भी नाराज हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान सतना से कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और आरोप लगाया था कि कमलनाथ सरकार उनके समाज के लोगों को सम्मान नहीं दे रही है। इसके अलवे कई बार ये भी खबर आयी कि डीएम-एसपी के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर भी कांग्रेस विधायक नाराज हैं। कहा तो ये भी जाता है कि कई विधायकों ने इस्तीफे तक की पेशकश कर दी, हालांकि बाद में इसे कंट्रोल कर लिया गया।
अब सबसे बड़ा सवाल उठता है 2019 लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल के नतीजे आने के बाद ही भाजपा नेता इस तरह के बयान देने लगे? लेकिन ऐसा नहीं है, भाजपा नेता पहले से ही इस तरह के बयान दे रहे हैं। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर ‘ऊपर’ से आदेश मिल जाए तो कल के कल कमलनाथ की सरकार गिर जाएगी। वहीं, एग्जिट पोल के नतीजे आने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि 23 मई के बाद 22 दिन भी नहीं रहेगी कमलनाथ सरकार। इधर, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने राज्यपाल को पत्र लिखकर विधानसभा की विशेष सत्र बुलाने की मांग कर दी। हालांकि इस पत्र में सदन में सरकार के ‘विश्वास’ परखने की बात नहीं लिखी गई है।
क्योंकि भाजपा नेताओं को पता है कि 6 महीने से पहले फ्लोर टेस्ट के लिए कमलनाथ सरकार को चुनौती नहीं दी जा सकती। इधर, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी साफ कर दिया है कि चार बार साबित कर चुके हैं और एक बार फिर फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं। कमलनाथ के इस बयान से साफ है कि उनके पास बहुमत का आंकड़ा है। तो फिर सवाल उठता है कि आखिर भाजपा इस तरह के बयान क्यों दे रही है। दरअसल, भाजपा चाहती है कि कुछ दिनों तक कमलनाथ, सरकार और अपने विधायकों को ‘बचाने’ में ही लगे रहें और प्रदेश तक ही सीमित रहें। बाकि जो होना होगा वह 23 मई के बाद ही होगा।