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1984 का वो रोचक चुनाव आज भी याद है इन शहरों में रहने वालों को, जाने क्या हुआ था खास

locationभोपालPublished: Apr 18, 2019 06:53:23 am

भिंड-दतिया में चुनाव: दो परिवार के बीच मुकाबले में जूदेव जीते, वसुंधरा हारीं…

kishan singh judev with rajeev gandhi

1984 का वो रोचक चुनाव आज भी याद है इन शहरों में रहने वालों को, जाने क्या हुआ था खास

भोपाल। भिंड-दतिया संसदीय क्षेत्र में सबसे रोचक चुनाव 1984 का रहा है। इस चुनाव में कांगे्रस से दतिया परिवार के महाराज किशन जूदेव और भाजपा से वसुंधरा राजे सिंधिया चुनाव मैदान में थीं।

वसुंधरा को पराजय का सामना करना पड़ा था। उनको 106757 और किशन सिंह जूदेव को 194160 मत प्राप्त हुए थे। इस चुनाव की सबसे रोचक बात यह है कि दोनों ही प्रत्याशी पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे।

वसुंधरा राजे भाजपा की संस्थापक सदस्य विजयाराजे सिंधिया की पुत्री होने के नाते राजनीतिक पृष्ठभूमि की थींं, जबकि किशन जूदेव गैर राजनीतिक थे। उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया पहली बार राजनीति के मैदान में लेकर आए थे।

वहीं, विजयाराजे सिंधिया अपनी पुत्री वसुंधरा को मध्यप्रदेश की राजनीति में स्थापित करना चाहती थीं। दतिया से लोकसभा प्रत्याशी उतारे जाने के बाद लोगों ने कांग्रेस का साथ दिया था और भाजपा को नकार दिया था।

ससुराल की राजनीति आई रास
वसुंधराराजे सिंधिया ने पहला चुनाव हारने के बाद दोबारा यहां से चुनाव नहीं लड़ा। इसके बाद उन्होंने ससुराल में राजनीति की और वहीं स्थापित हो गईं।

वर्ष 1984 में भिंड-दतिया संसदीय क्षेत्र से चुनाव हारने के बाद उन्होंने छह माह बाद राजस्थान के धौलपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा और चुनाव जीतीं। इसके बाद वह 1989 में राजस्थान के झालावाड़ से लोकसभा का चुनाव लड़ीं।

भावुक होकर रो पड़े थे जूदेव
इस चुनाव का रोचक किस्सा यह भी है कि कांग्रेस प्रत्याशी किशन जूदेव गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से होने की वजह से अपने भाषणों के दौरान कई बार मंचों पर भावुक हुए और उनकी आंखें झलक आईं।
किला चौक पर आखिरी सभा के दौरान तो वह इतने भावुक हो गए कि मतदाताओं के सामने रो पड़े। इससे उनके पक्ष में माहौल बन गया।

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कानाफूसी :-

बैठक में बाउंसर का क्या काम: चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं तो सभी प्रकार के हथकंडे अपना पड़ेंगे। विरोधियों को शांत करना है तो मतदाताओं के नखरे भी सहना है।
प्रदेश की एक हॉट सीट पर नेताजी सब कुछ कर रहे हैं। संसदीय क्षेत्र में हाल ही में एक बैठक के दौरान मंच पर बाउंसर देखकर कार्यकर्ताओं के कान खड़े हो गए। वे समझ नहीं पाए कि यहां बाउंसर का क्या काम।
बाद में पता चला कि पार्टी के एक असंतुष्ट नेता यहां गड़बड़ कर रहे हैं। बैठक में भी ऐसा ही अंदेशा था, इसलिए बाउंसरों को बुलाना पड़ा।

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