बताया गया है कि प्रदेश के सरकारी व निजी अस्पतालों में होने वाली मौतों में सबसे अधिक हार्ट अटैक से होना पाया गया है। प्री-नेटल चाइल्ड (गर्भावास्था) के दौरान मौत का आंकड़ा दूसरे नंबर पर है। यानी गर्भावस्था में मरने वाले भ्रूण का आंकड़ा भी चौंंकाने वाला है।
विभाग ने 31199 मौतों का विशलेषण कर इनके कारणों का पता लगाया है। अध्ययन में शामिल मौतों में मलेरिया भी है। इससे 523 मौतें होना पाया है, जो शासन के तमाम दावों की पोल खोलती हैं। विभाग का मानना है कि मलेरिया नियंत्रण पर इतना काम होने के बावजूद इससे मृत्यु होना चिंताजनक है।
सर्कुलेटरी डिजीस से 29 प्रतिशत मौतें हो रहीं।
गर्भावस्था में नवजातों की 23.8 प्रतिशत मौतें हो रहीं।
पैरासाइट डिजीस जैसे डेंगू व मलेरिया से 8.2 प्रतिशत मौतें हो रहीं।
संक्रमण से 8.2त्न मौतें होती हैं
अंगों के फेल होने व खून की कमी से 6.3 प्रतिशत मौतें होती हैं।
सांस व दमा आदि से 5.9 प्रतिशत मौतें होना पाया गया।
(अध्ययन में शामिल 31199 मृत्यु प्रकरणों का प्रतिशत है)
रेबीज से 22 मौतें, एड्स से एक भी नहीं दर्ज
रिपोर्ट में बताया गया है कि मप्र में अभी भी कुत्ते के काटने से होने वाले रोग रेबीज से मौतें हो रही हंै। अध्ययन में शामिल मृत्यु प्रकरणों में 22 मौतें रेबीज से होनी पाई गईं। वहीं, रिपोर्ट में एड्स जैसी बीमारी से प्रदेश में एक भी मौत होना नहीं पाया गया है। रिपोर्ट का सारांश देखकर विभाग के अफसर भी चकित हैं कि एड्स जैसी गंभीर बीमारी से मौत का आंकड़ा शून्य कैसे है?
मृत्यु के कारणों का पता लगाने के लिए यह अध्ययन किया गया है। अध्ययन का मकसद यह जानना है कि आखिर किन-किन वजहों से हमारे यहां मौते हो रही हैं। गोवा जैसे राज्य में हर मृत्यु का कारण पता लगाने के लिए प्रमाणीकरण किया जा रहा है। इससे हमें उस दिशा में काम करने का रास्ता मिल जाएगा। प्रदेश में सबसे अधिक सर्कुलेटरी डिजीस से मौत होना पाया गया है।
चितरंजन त्यागी, आयुक्त, आर्थिक एवं साख्यिकी