मां के हैं तीन रूप
मां है ममता, मां है क्षमता, मां है निर्मल,
बच्चों की रक्षा की छतरी मां है केवल
बच्चों के चेहरों पर देखे अगर उदासी, जब तक दूर न हो तब तक मां रहती है बेकल
अपनी जरूरतों में करके सदा कटौती,
बच्चों की शिक्षा में, मां बनती है सम्बल
ये माना नदियां शीतल होती हैं लेकिन,
नदी नहीं दुनिया की कोई मां-सी शीतल
एक साथ ही मां के अद्भुत तीन रूप हैं, दया का दरिया, दवा की बूटी, दुआ का आंचल
प्रो. अजहर हाशमी
डॉ. रेनू मिश्रा प्रोफेसर और यूपीएससी टॉपर आदित्य मिश्रा की मां
यूपीएससी में पहले आईआरएस और फिर आईपीएस के लिए चयनित होने वाले आदित्य मिश्रा की मां डॉ. रेनू मिश्रा बताती हैं कि हमारी पूरी फैमिली एजुकेशन की फील्ड से ही है। यही एजूकेशन की वैल्यू बच्चों में भी गई हैं। जब मैं न्यूयॉर्क में रिसर्च के लिए थी तो बेटा भी साथ था। वहीं उसने देश सेवा में जाने का तय किया। इसी कारण उसने आईएएस बनने की ठानी। बेटी बहुत अच्छी सिंगर है। पर फिर भी वह एनएलआईयू दिल्ली में पढ़ रही है। आगे पिता की तरह एडवोकेट बनना चाहती है।
अपराजिता अग्रवाल, सोशल वर्कर
छोटी उम्र में मेरा एक्सीडेंट हुआ था। मैंने एक साल बेड पर गुजारा। 1996 में शादी हुई। इस दौरान डॉक्टरों ने कहा कि तुम शायद कभी मां न बन पाओ। वो शब्द मेरे लिए किसी सदमे में से कम नहीं थे। हालांकि, अभी मेरी दो बेटियां हैं। मां का जीवन में अलग ही महत्व होता है। मेरी मां का मुझ पर ऐसा कर्ज है जिसे मैं कभी उतार नहीं सकती। अब मैं भी एक अच्छी मां बनकर अपने फर्ज पूरे करने की कोशिश कर रही हूं। परिवार और काम को साथ मैनेज करना होता है। मैंने अपने दोनों बच्चों को हमेशा आजादी दी है। हमारे बीच अच्छी बॉडिंग है।
बिंदू ओबेरॉय, गृहिणी और दो सफल बच्चों की मां
जानी मानी रेडियो जॉकी आरजे मानसी की मां बिंदू ओबेरॉय कहती हैं कि बच्चे हमेशा मां के स्ट्रगल से सीखते हैं। मानसी को हमने अपनी पसंद से काम करने की आजादी दी यही उसकी सफलता का कारण बना। पहले वह एयरहोस्टेस बनी। फिर उसने आरजे के लिए ट्राय किया और करीब 3000 लोगों के बीच सिलेक्ट हुई। बेटा भी आईआईएम का टॉप स्कोरर बना।
डॉ. साधना बलवटे, लेखन में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
लेखन बचपन का शौक था। यह मां से मिला। मां पढऩा नहीं जानती थी, पर जब मैं उनसे कुछ पूछती तो मेरी हर समस्या का समाधान करती थी। बच्चों के प्रति यही प्यार अब अपने बच्चो को दे रही हूं। मैं पहले नूतन कॉलेज में पढ़ाती थी, वह जॉब बच्चों के लिए छोड़ दी ताकि बच्चों को समय दे सकूं। इसी बीच में घर पर ही जो लिख पाई उससे इस मुकाम तक पहुंची।
शिवानी घोष, सोशलवर्कर
घर में भले ही मेरे दो बच्चे हों, लेकिन मैं करीब दो सौ बच्चों की मां हूं। मुझे इसी रूप में पहचाना जाना अच्छा लगता है। समाज के एक वर्ग के लिए काम करना मुझे अच्छा लगता है। घर का माहौल देख मेरी बेटी बेंगलुरू से पढ़ाई करने के बाद जॉब नहीं, मेरे साथ समाजसेवा करना चाहती है। ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा अचीवमेंट है।
विनिता मेवाड़ा, डायटिशियन
मेरी मां ने मुझे पढऩे की आजादी दी। उसी का फल था कि 2016 में मुझे बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ के लिए राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार मिला। जब पहली बार मेंस्ट्रूअल साइकिल आई तो दोनों बहनों ने केक काटकर सेलिब्रेशन कराया। उन्होंने बताया कि ये कोई अपराध नहीं है। मैं भी अपनी बेटी के लिए ऐसा ही करूंगी।