दरअसल, मारपीट के मामले में पवई विधायक प्रहलाद सिंह लोधी को विशेष अदालत ने दो साल की सजा सुनाई। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाला देते हुए विधायक की सदस्यता खत्म कर दी। इसके साथ ही विधानसभी में उनके सारे एकाउंट बंद कर दिए गए और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं पर रोक लगा दी गई। इसके बाद भाजपा विधायक हाईकोर्ट गए और भाजपा नेताओं ने कई बार राज्यपाल से मुलाकात की।
इसके साथ ही पवई विधानसभा सीट के रिक्त होने की अधिसूचना भी जारी कर दी गई थी। भाजपा नेताओं ने इसका विरोध किया था लेकिन विधानसभा अध्यक्ष प्रहलाद सिंह लोधी की सदस्यता को लेकर अड़े रहे इस दौरान कांग्रेस ने भी कहा कि प्रहलाद सिंह लोधी किसी भी तरह से विधानसभा नहीं जाएंगे।
प्रहलाद सिंह लोधी को जबलपुर हाइकोर्ट से सजा में स्टे मिल गया और 7 जवनरी 2020 तक उनकी सजा में रोक लगा दी गई। जिसके बाद भाजपा, प्रहलाद सिंह लोधी के बहाली की मांग करने लगी लेकिन स्पीकर ने उन्हें बहाल नहीं किया। इस दौरान राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष के टकराव की खबरें भी सामने आईं और राज्य सरकार विधायक प्रहलाद सिंह लोधी के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार को झटका लगा और भाजपा विधायक के हक में फैसला आया।
अंत में सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता को बहाल कर दिया। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव से मुलाकात के बाद विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने यह निर्णय लिया। सदस्यता बहाली के साथ ही पवई विधानसभा रिक्त किए जाने की आधिसूचना भी रद्द हो गई। इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष एमपी प्रजापति ने कहा- मैंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर फैसला लिया है कोई जल्दबाजी में फैसला नहीं लिया।
प्रहलाद सिंह लोधी की सदस्यता खत्म करने के आदेश के साथ ही मध्यप्रदेश में भाजपा विधायकों की संख्या 107 हो गई थी। लेकिन अब सदस्यता बहाल होने के बाद पार्टी के विधायकों की संख्या 108 हो गई है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 109 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन झाबुआ उपचुनाव में हार के बाद भाजपा की संख्या 108 हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अऩुसार अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो सदस्यता खत्म हो जाएगी। साथ ही वह अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता है। यह फैसला जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होती है। क्योंकि इसी धारा के तहत आपराधिक रिकॉर्ड वाले जनप्रतिनिधियों को अयोग्यता से संरक्षण हासिल है।