वोटिंग ट्रेंड देखें तो शहरी वोटर भाजपा के पक्ष में अधिक रहते हैं। वहीं, ग्रामीण व पिछड़े इलाकों ने ज्यादातर कांग्रेस का साथ दिया है। इस बार कारण परिस्थितियां बदली हुई हैं। वोटर को घर से निकालकर बूथ तक लाना ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।
भाजपा में दो मोर्चों पर एक साथ काम हो रहा है। उपचुनाव वाली सीटों पर शहरी इलाकों में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाना और वोटरों से ज्यादा से ज्यादा कनेक्ट होना। दूसरा ग्रामीण, आदिवासी व पिछड़े इलाकों में पार्टी के आधार को बढ़ाना। नए वोटरों पर ज्यादा फोकस है। ग्वालियर-चंबल इलाके पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, क्योंकि यहां 16 सीट हैं।
पिछड़ों पर ज्यादा जोर
कांग्रेस उपचुनाव में अपने परंपरागत वोट बैंक को अधिक फोकस कर रही है। इसके तहत ग्रामीण, आदिवासी, पिछड़े व स्लम इलाकों में अधिक जोर दिया जा रहा है। यह तबका कोरोना की उतनी परवाह नहीं करता। उस पर इन इलाकों में पार्टी का अच्छा वोट बैंक है। ग्वालियर-चंबल इलाका पार्टी के लिए शहरी व ग्रामीण स्तर पर प्राथमिकता में हैं।
सत्तारुढ भाजपा के लिए अपने वोट बैंक को समझाना और नए वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षिक करके शहरी व प्रबुद्धजन वाले इलाकों में बाहर लाना बड़ी चुनौती है। वहीं, ग्रामीण, आदिवासी और पिछड़े इलाकों में अभी कोरोना संक्रमण का कहर शहरी इलाकों की तुलना में कम है, इस कारण वहां ज्यादा वोटिंग हो सकती है। इन सभी पहलुओं का भी दोनों दल आकलन कर रहे हैं।
1985 में भाजपा को ढहाकर कांग्रेस ने सत्ता पाई, तब 16.42 फीसदी वोट ज्यादा लिए थे। फिर 1990 में भाजपा ने 5.76 फीसदी वोट ज्यादा लेकर सत्ता वापस ली। 1993 में फिर सत्ता बदल गई, लेकिन कांग्रेस को भाजपा से महज 1.85 फीसदी वोट ज्यादा मिले। इसके बाद 1998 में 1.31 फीसदी वोट ज्यादा लाकर दिग्विजय सरकार बरकरार रही, लेकिन 2003 में भाजपा ने 10.89 फीसदी वोट ज्यादा लेकर जो सत्ता पाई तो फिर कांग्रेस सत्ता से 2018 तक दूर ही रही।