मुख्य सचिव एसआर मोहंती के स्तर पर विभाग प्रमुखों के साथ विभागीय बजट चैप्टर को फाइनल करना शुरू कर दिया गया है। महीने के अंत में बजट निर्धारण की संयुक्त बैठक हो सकती है। यह कांग्रेस सरकार का पहला मुख्य बजट होगा, इसलिए वित्तीय चुनौतियों के बीच इस पर सबकी निगाहें रहेंगी।
ये हावी कर्जमाफी का बोझ
कांग्रेस सरकार के पहले बजट में किसान कर्जमाफी का बोझ हावी रहेगा। सरकार ने अभी तक 5000 करोड़ का बजट किया था, जबकि कर्जमाफी के लिए 38 हजार करोड़ से ज्यादा की जरूरत है। इस वित्तीय सत्र पर कर्जमाफी दबाव रहेगा। आने वाले समय में निकाय और पंचायत चुनाव होना है, इसलिए सरकार के सामने इससे पूर्व ही पूरा कर्ज माफ करने का दबाव रहेगा।
वचन-पत्र के वादों का दबाव
कांग्रेस सरकार पर पहले मुख्य बजट में वचन-पत्र के वादों को पूरा करने का दबाव भी रहेगा। सरकार ने अभी तक 83 वादे पूरे करने का दावा किया है, जबकि 750 से ज्यादा वादे वचन-पत्र में शामिल हैं। सरकार ने वित्तीय आवश्यकता वाले वादों को अलग छांट लिया है, लेकिन इनमें से कुछ को इसी बजट में शामिल करना होगा। इसमें विकास और निर्माण कामों से संबंधित वादे भारी खर्च वाले हैं।
15 प्रतिशत बढ़ोतरी भी मुश्किल
इस बार बजट में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी भी बेहद मुश्किल है। 2018-19 का मुख्य बजट 2.04 लाख करोड़ का था। बजट में औसत 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है, लेकिन सरकारी खजाने की खस्ता हालत के कारण इस बार 15 प्रतिशत की वृद्धि भी बेहद मुश्किल है। फिलहाल सभी विभागों की बजट मांगों में कटौती की प्रक्रिया चल रही है, ताकि बजट को तय सीमा में लाया जा सके। इस बार बाजट 2.20 लाख करोड़ के आस-पास रहने की उम्मीद की जा रही है।
सीएस के सामने कटौती की चुनौती
सीएस ने प्रत्येक विभाग के एसीएस और पीएस को बुलाकर बजट मांग को फाइनल रूप देना शुरू किया है। इस हफ्ते से बैठकें शुरू कर दी हंै। इसमें बजट मांगों को 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि लिमिट में लाने के लिए कटौती की जानी है। वचन-पत्र के वादे, पिछली सरकार के भुगतान और निर्माण कामों के भुगतान के दबाव के कारण मुश्किल हालात हैं।
12000 करोड़ से ज्यादा पुराना बकाया
पिछली भाजपा सरकार के समय का ही 12 हजार करोड़ से ज्यादा का भुगतान विभागों में बाकी है। सरकार के समय के शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, पुल-पुलिया, सडक़ सहित अन्य निर्माण कामों के बिलों की लंबी कतार है, जो कि विधानसभा चुनाव आने के कारण अटक गई थी। बाद में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता से और देरी हुई।
छा चुका है वेतन का संकट
नई कांग्रेस सरकार के आने के ठीक पहले से सरकारी खजाने में तंगहाली के हालात हैं। यहां तक कि सिंतबर 2018 में चुनावी खर्चों के बोझ के कारण वेतन-भत्तों का संकट छा चुका है। उस समय आकस्मिक निधि से वेतन भुगतान किए गए, जिनका समायोजन अब तक नहीं किया गया है। इस समयोजन का बोझ भी नए बजट पर आएगा।