दरअसल मध्य प्रदेश का अशोकनगर जिला उत्तर प्रदेश में नोएडा की तरह ही नेताओं में कुख्यात है, दोनों ही जगहों के बारे में माना जाता है कि जो भी मुख्यमंत्री यहां आता है, वह अपनी कुर्सी गंवा देता है।
भले ही इस बार यहां स्वयं सीएम शिवराज नहीं आ रहे हों, लेकिन उन्हीं के प्रचार के लिए अमित शाह का आना कुछ कार्यकर्ताओं को अशोक नगर के मिथक के चलते परेशान कर रहा है।
अब यहां अमित शाह भी फिसले:-
अशोक नगर के मिथक के बीच एक ओर नया वाक्या उस समय जुड़ गया जब यहां रोड-शो कर रहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रथ से फिसल गए। जिसके बाद कई लोगों के मुंह से ये तक निकल आया कि लो अब गई सरकार…
अशोक नगर के मिथक के बीच एक ओर नया वाक्या उस समय जुड़ गया जब यहां रोड-शो कर रहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रथ से फिसल गए। जिसके बाद कई लोगों के मुंह से ये तक निकल आया कि लो अब गई सरकार…
जो भी आता है अपनी कुर्सी गंवा देता है… 28 नवंबर को मध्य प्रदेश में चुनाव होना है और ऐसे में अशोकनगर याद आना कोई नई बात नहीं है, दरअसल ये क्षेत्र मध्य प्रदेश के नोएडा की तरह है। नोएडा की तरह इस जिले को लेकर भी यह अंधविश्वास है कि जो भी मुख्यमंत्री यहां आता है, वह अपनी कुर्सी गंवा देता है। इसीलिए बड़े-बडे़ नेता यहां आने से डरते हैं।
वहीं इसी सब के चलते यह भी चर्चा है कि मध्य प्रदेश में पिछले 14 साल से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी जब तक मुमकिन हुआ, अशोकनगर जाना टालते रहे। 2013 में उन्होंने एक बार अशोकनगर जाने की बात कही, लेकिन गए नहीं।
24 अगस्त 2017 को उन्हें अशोकनगर कलेक्ट्रेट की नई इमारत के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने आमंत्रण स्वीकार किया, लेकिन वह गए नहीं। विपक्षी नेता ज्योतिरादित्य कई मौकों पर शिवराज की खिंचाई कर चुके हैं कि सूबे का मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें राज्य के इस हिस्से में भी आना चाहिए।
2018 की शुरुआत में जब अशोकनगर की एक विधानसभा सीट मुंगावली में उपचुनाव होना था, तब शिवराज मुंगावली गए थे। इसे यूं देखा जा सकता है कि वह अशोकनगर गए भी और नहीं भी गए।
वहीं जानकारों का कहना है कि क्या अशोकनगर वाकई मुख्यमंत्रियों की कुर्सियां खा लेता है, इसका एक और टेस्ट 11 दिसंबर को होगा, जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव का फैसला आएगा। दरअसल उत्तर प्रदेश के नोएडा के बारे में एक मिथक प्रसिद्ध है कि जो भी मुख्यमंत्री यहां आता है, वह अपनी कुर्सी गंवा बैठता है। भले ही इस मिथक पर चोट करते हुए उप्र के वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ वहां गए थे, लेकिन इसके बावजूद लोग आज भी इसे सीएम के लिए कुख्यात ही मानते हैं।
जानकारी के अनुसार इस मिथक की शुरुआत 1982 में हुई थी, जब कांग्रेस सत्ता में थी और विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री थे। वह अपने कार्यकाल के दौरान एक बार नोएडा आए और जुलाई 1982 में मुख्यमंत्री नहीं रहे।
वीपी सिंह के बाद इस लिस्ट में वीर बहादुर सिंह, एनडी तिवारी, मुलायम सिंह यादव और मायावती अपना नाम जुड़वा चुके हैं। वहीं राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव ने नोएडा आने का जोखिम नहीं उठाया।
आइए, जानते हैं अशोकनगर के रिकॉर्ड के बारे में…
नोएडा से भी पहले अशोकनगर के मिथक की शुरूआत का पहला मामला 1975 में आया था, लेकिन तब इसे तवज्जो नहीं दी गई। जबकि 1977 में अशोकनगर आने के बाद 1979 में हुई दूसरी घटना के बाद से ही नेता अशोकनगर से कन्नी काटने लगे। जिसके लगातार सामने आई घटनाओं ने इसे नेताओं के लिए कुख्यात घोषित कर दिया।
पहला मामला: एमपी में 1975 में कांग्रेस की सरकार थी और प्रकाश चंद्र सेठी मुख्यमंत्री थे। इसी साल वह पार्टी के एक अधिवेशन के लिए अशोकनगर आए और इसी साल 22 दिसंबर को उन्हें राजनीतिक कारणों से कुर्सी छोड़नी पड़ी।
नोएडा से भी पहले अशोकनगर के मिथक की शुरूआत का पहला मामला 1975 में आया था, लेकिन तब इसे तवज्जो नहीं दी गई। जबकि 1977 में अशोकनगर आने के बाद 1979 में हुई दूसरी घटना के बाद से ही नेता अशोकनगर से कन्नी काटने लगे। जिसके लगातार सामने आई घटनाओं ने इसे नेताओं के लिए कुख्यात घोषित कर दिया।
पहला मामला: एमपी में 1975 में कांग्रेस की सरकार थी और प्रकाश चंद्र सेठी मुख्यमंत्री थे। इसी साल वह पार्टी के एक अधिवेशन के लिए अशोकनगर आए और इसी साल 22 दिसंबर को उन्हें राजनीतिक कारणों से कुर्सी छोड़नी पड़ी।
दूसरा मामला: विद्याचरण शुक्ला और श्यामा चरण शुक्ला भाई कभी एमपी और छत्तीसगढ़ की सियासत के बड़े नाम हुआ करते थे। विद्याचरण केंद्र की और श्यामाचरण मध्य प्रदेश की राजनीति देखते थे। वहीं साल 1977 में श्यामा चरण मुख्यमंत्री रहते तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने अशोकनगर आए। इसके करीब दो साल बाद जब सूबे में राष्ट्रपति शासन लगने से उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी।
तीसरा मामला: अर्जुन सिंह 1985 में एमपी के मुख्यमंत्री थे और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। इस दौरान अर्जुन सिंह ने भी अशोकनगर का दौरा किया। इसी बीच सियासी हालात ऐसे बन गए कि पार्टी ने अर्जुन सिंह को मध्य प्रदेश से पंजाब भेजने का फैसला किया। उन्हें पंजाब का गवर्नर बना दिया गया।
चौथा मामला: इस लिस्ट में मोतीलाल वोरा का नाम 1988 में शामिल हुआ। वोरा उस समय रेलमंत्री रहे माधवराव सिंधिया के साथ अशोकनगर के रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज का उद्घाटन करने अशोकनगर पहुंचे थे। इसके कुछ वक्त बाद वोरा भी मुख्यमंत्री नहीं रहे।
पांचवा मामला: भाजपा से सीएम रहे सुंदरलाल पटवा भी 1992 में अशोकनगर गए थे। उन्हें जैन समाज के पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए बुलाया गया था। उनके कार्यकाल के दौरान ही अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था, तो पटवा को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।
छठवां मामला: यहां तक की कांग्रेस के मध्य प्रदेश में अब तक के आखिरी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सत्ता गंवाने के साथ भी अशोकनगर का मिथक ही जुड़ा है। खास बात ये है कि वह अपने चुनाव के लिए नहीं, बल्कि किसी और को चुनाव लड़ाने अशोकनगर गए थे। 2001 में माधवराव सिंधिया के देहांत के बाद खाली हुई संसदी सीट पर पार्टी ने उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट दिया।
दिग्विजय उन्हीं का प्रचार करने अशोकनगर गए थे। सिंधिया तो उपचुनाव जीत गए, लेकिन 2003 में दिग्विजय ने सत्ता गंवा दी।