करीब साढ़े छह साल की लंबे इंतजार के बाद झाबुआ के कड़कनाथ के नाम भौगोलिक पहचान यानी जीआई का चिन्ह रजिस्टर किया गया है। इसके लिए कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड के स्थापित संगठन ग्रामीण विकास ट्रस्ट के झाबुआ स्थित केंद्र ने आवेदन किया था। यह जीआई टैग 7 फरवरी 2022 तक वैध रहेगा। 30 जुलाई को इसकी औपचारिक घोषणा कर दी गई।
अनूठी खासियत के कारण जीआई टैग जीआई टैग ऐसे उत्पादों को दिया जाता है जो अनूठी खासियत रखते हैं। जीआई टैग के कारण निर्यात के रास्ते खुलेंगे और कड़कनाथ चिकन की देश ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी व्यवसायिक पहचान बनेगी। जिसके कारण झाबुआ के कड़कनाथ के ग्राहकों को इस मांस की गुणवत्ता का भरोसा मिलेगा।
कड़कनाथ में औषधीय गुण
झाबुआ के कड़कनाथ को कालामासी भी कहा जाता है, इसकी त्वचा,कलगी और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। कड़कनाथ के मांस में चर्बी नहीं होती और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है, इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।
झाबुआ के कड़कनाथ को कालामासी भी कहा जाता है, इसकी त्वचा,कलगी और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। कड़कनाथ के मांस में चर्बी नहीं होती और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है, इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।
कड़कनाथ चिकन की मांग इसलिये भी बढ़ती जा रही है, क्योंकि इसमें अलग स्वाद के साथ औषधीय गुण भी होते हैं । कड़कनाथ अन्य मुर्गों के मुकाबले काफी महंगी कीमत पर बिकता है। छह साल से चल रही लड़ाई
झाबुआ की गैर सरकारी संस्था ने 8 फरवरी 2012 को कड़कनाथ मुर्गे को लेकर जीआई टैग की अर्जी दी थी। लंबे इंतजार और संघर्ष के बाद अंतिम फैसला हो पाया। इससे पहले ही एक निजी कम्पनी ने यह दावा किया था कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मुर्गे की इस प्रजाति को अनोखे ढंग से पालकर संरक्षित किया जा रहा है।
जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री ने झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे का मध्यप्रदेश का दावा मार्च में शुरूआती तौर पर मंजूर कर लिया था और 28 मार्च को अपने जर्नल में इसका प्रकाशन भी कर दिया था लेकिन नियम के अनुसार 120 दिन का समय दावा,आपत्ति के लिए होता है इसलिए चार महीने बाद 30 जुलाई को इसकी औपचारिक घोषणा कर दी गई।
कड़कनाथ मुर्गा अब हमारा हो गया है, जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्र,चेन्नई ने कड़कनाथ के काले मांस को जिओ टैग दे दिया है, ये मध्यप्रदेश के लिए बड़ी कामयाबी है क्योंकि इसके लिए हम छह साल से इंतजार कर रहे थे।
– डॉ भगवान मंगनानी अतिरिक्त उपसंचालक,पशुपालन विभाग,मप्र –