दरअसल, मध्यप्रदेश में सत्ता का फिलहाल एक ही केंद्र रहा है। राजभवन में जो भी गर्वनर आए, उन्होंने राजनीतिक सक्रियता न के बराबर ही रखी। यही वजह थी कि कभी राजभवन सत्ता के एक केंद्र के तौर पर दिखाई नहीं दिया। या कहें कि राजभवन में सत्ता के महत्वाकांक्षी लोगों को आश्रय भी नहीं मिला। जिससे कभी सरकार के लिए राजभवन से मुश्किलें खड़ी नहीं हुईं। लेकिन मध्यप्रदेश की नई राज्यपाल बनीं आनंदीबेन पटेल ने जब से राजभवन में प्रवेश किया है। यहां का माहौल पूरी तरह से बदल गया है। उनके काम करने के अंदाज से मध्यप्रदेश की अफसरशाही कदमताल करने की तैयारियों में जुट गई है। कुल मिलाकर उन्होंने सालों से सुस्त पड़े लाट साब के घर में अचानक से राजनीतिक गर्माहट ला दी है। सरकार से लेकर हर किसी की निगाह में फिलहाल लाट साब का घर ही है।
दरअसल, पिछले कई सालों से मध्यप्रदेश का राजभवन कम सक्रिय था। आनंदीबेन पटेल से पहले गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली के पास मध्यप्रदेश का अतिरिक्त प्रभार था। उनकी मध्यप्रदेश में कोई दिलचस्पी नहीं थी, यही कारण था कि वह बमुश्किल ही मध्यप्रदेश में आते थे। सक्रियता के नाम पर सिर्फ सरकारी खानापूर्ति तक ही सीमित रहती थी। उसके पहले मध्यप्रदेश के सक्रिय राज्यपाल के तौर पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव काम कर रहे थे। कांग्रेसी राज्यपाल होने के बाद भी उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। कई दफा लगा कि वह स्वास्थ्य कारणों के चलते इस्तीफा दे देंगे, लेकिन उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद ही राजभवन को छोड़ा। हालांकि इस दौरान वह राजभवन से ज्यादा अस्पताल में ही नजर आते थे। सो, राजभवन पूरी तरह एक्टिव ही नजर नहीं आया। सिर्फ सरकारी फाइलों पर दस्तखत के अलावा कभी राज्यपाल का दखल सरकार के भीतर नजर नहीं आया। व्यापमं में नाम आने के बाद उन्होंने अपनी सक्रियता न के बराबर ही कर दी थी। उनका मिलना जुलना भी आम लोगों के साथ लगभग बंद हो गया था।
नई राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने पहले दिन से ही सक्रियता दिखाई है। पहले बस से सफर कर यहां आईं और दूसरे दिन शपथ ग्रहण के बाद आंगनबाड़ी देखने निकल गई। उसके बाद उन्होंने गोशालाओं का हाल देखा। फिर राजभवन में पीडब्ल्यूडी के अफसरों को बुलाकर क्लास ली। राजभवन के भीतर चल रहे कामकाज की लेट—लतीफी पर नाराजगी जताई। हालांकि उनकी इस मीटिंग से सरकार के भीतर नाराजगी नजर आई है। सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि राजभवन इस तरह से कोई भी काम नहीं करता है। बल्कि उसे सरकार को निर्देशित करना चाहिए था। हालांकि मामला राजभवन का होने के कारण कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है।
राज्यपाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी को भी राजनीतिक रूप से जोड़कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने मध्यप्रदेश सरकार पर अपना सीधा नियंत्रण स्थापित करने के लिए राज्यपाल के तौर पर आनंदीबेन पटेल को भेजा है। वह मध्यप्रदेश के कामकाज को खुद समझना चाहते हैं। दरअसल, हाल ही में आईबी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार के कामकाज पर कई सवाल खड़े किए हैं। इसके साथ ही सत्ता और संगठन में समन्वय की कमी का जिक्र किया है। फिलहाल सरकार से जुड़े सूत्रों का मानना है कि मैडम गर्वनर ने जिस तेजी से काम शुरू किया है, उससे एक बात पूरी तरह से साफ है कि वह सरकारी कामकाज में अपना पूरा दखल रखेंगी। राजनीति से जुड़े लोग यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि गर्वनर साब अब भी अपने मुख्यमंत्री के ओहरे से बाहर नहीं निकली हैं। वह बतौर गर्वनर नहीं, बल्कि बतौर मुख्यमंत्री काम करना चाह रही हैं। लेकिन ऐसा बोलने वालों की संख्या सीमित है और यह लोग खुलकर नहीं बोल रहे हैं।
आनंदीबेन पटेल ने एक बात पूरी तरह से साफ कर दी है कि वह मध्यप्रदेश के अफसरों पर भरोसा नहीं जाहिर करेंगी। वह अपने साथ एक ओएसडी गुजराज से लेकर आई हैं। उन्होंने यहां भी अफसरों की मीटिंग से लेकर लोगों से मिलने तक अपने पुराने ओएसडी से ही संपर्क में रहने की बात कही। यहां तक की कुछ सरकार से नाराज लोगों ने उनसे मुलाकात कर दुखड़ा सुनाने की कोशिश की तो उन्होंने उन सभी को भी अपने पुराने ओएसडी का नंबर दिया और संपर्क में रहने को कहा। कुल मिलाकर माना जा रहा है कि मैडम गर्वनर के साथ उनके पुराने अफसर ही राजभवन में कामकाज संभालेंगे।