मप्र सरकार के इस बोनस को अनुबंध के तहत नहीं मानते हुए अतिशेष गेहूं का उपार्जन बंद कर दिया है। अब स्टेट सिविल सप्लाईज के अधिकारी लगातार पत्राचार कर रहे हैं, ताकि मामला सुलझ जाए। खरीदी, भुगतान में देरी की वजह से प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति न खराब हो।
ऐसे समझे पत्राचार भारतीय खाद्य निगम के डिप्टी जनरल मैनेजर प्रोक्यूरमेंट पीसी सिंह ने हाल में केंद्र सरकार के अंडर सेक्रेटरी जय प्रकाश को पत्र लिखकर बताया है कि किसानों को गेहूं खरीदी में 160 रुपए प्रति क्विंटल का बोनस घोषित किया है। उन्होंने अंडर सेक्रेटरी को 23 अगस्त 2016 को केंद्र सरकार व मप्र सरकार के बीच हुए एमओयू का हवाला देकर बताया कि इस तरह के बोनस का भार पूरी तरह राज्य सरकार को वहन करना है।
ऐसे में उन्होंने स्पष्ट किया कि वह वार्षिक आवंटन से अधिक गेहूं नहीं उठा रहे हैं। प्रमुख सचिव खाद्य नीलम शमीराव को भी एफसीआई ने पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट कर दी है। इस पत्र के तीन दिन बाद मप्र स्टेट सिविल सप्लाईज कॉरपोरेशन की एमडी सोफिया फारूखी ने एफसीआई मध्यक्षेत्र महाप्रबंधक को पत्र लिखकर बताया कि प्रदेश सरकार के 160 रुपए के बोनस को समर्थन मूल्य में न जोड़ा जाए।
एफसीआई ने यदि केंद्रीय पूल में गेहूं का उपार्जन नहीं किया तो प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति बन जाएगी। प्रदेश के पास भंडारण क्षमता बेहद कम है, ऐसे में उपार्जन न रोका जाए। फारूखी के अनुसार एफसीआई को कहीं पूछने की जरूरत नहीं है। उसका रूटीन का काम है, करना चाहिए।
प्रदेश में गेहूं की स्थिति वर्ष 2018-19 में करीब 85 लाख टन गेहूं उत्पादन की स्थिति है। मप्र की कुल जरूरत करीब 30 लाख टन है। ऐसे में 55 लाख टन गेहूं एफसीआई को अन्य राज्यों में जरूरत के हिसाब से ले जाना होगा। यहां भंडारण की स्थिति भी ठीक नहीं है। यदि एफसीआई हाथ खड़े करती है तो 55 लाख टन गेहूं पर संकट बढ़ जाएगा।