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मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग बना विवादित प्रश्नों का आयोग

locationभोपालPublished: Jun 27, 2022 07:31:25 pm

आयोग एक संवैधानिक निकाय है। जिसमें सीनियर आईएएस अधिकारी होते हैं जिनका खर्च जनता टैक्स के करोड़ों रूपए से चलता है। और पूरे साल भर में दो सौ प्रश्न का एक पेपर बिना विवाद के सही से न बना पाए तो यह सवाल खड़ा होता है कि आयोग और हमारा सिस्टम कितना लाचार है।

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रूपेश कुमार मिश्रा

प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा आयोजित करवाने वाले मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग से अब युवाओं का भरोसा डगमगाता जा रहा है। दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल में भी एमपीपीएससी अपनी नकारात्मक खबरों को लेकर ट्रेंड कर रहा है। यदि आप गूगल में एमपीपीएसी टाइप करते हैं तो आयोग के खामियों की खबरों का अंबार लग जाएगा। इसके पीछे का कारण पिछले कई सालों से प्रश्नपत्रों में होने वाली गलतियां है। सवाल खड़ा होता है कि आखिर किस आधार पर प्रश्नपत्र बनाए जाते हैं और दूसरा सवाल की पहले से हुई गलतियों से आयोग सबक क्यों नहीं सीखता है। गलतियों का सिलसिला लगातार क्यों चलता आ रहा है।

आयोग एक संवैधानिक निकाय है। जिसमें सीनियर आईएएस अधिकारी होते हैं जिनका खर्च जनता टैक्स के करोड़ों रूपए से चलता है। और पूरे साल भर में दो सौ प्रश्न का एक पेपर बिना विवाद के सही से न बना पाए तो यह सवाल खड़ा होता है कि आयोग और हमारा सिस्टम कितना लाचार है। अब तो यह एक सामान्य सी प्रक्रिया हो चली है कि एमपीपीएससी की प्रत्येक भर्ती कोर्ट का रास्ता जरूर तय करेगी। जब प्री के पेपर में ये हाल है जहां 15 से 20 प्रश्न गलत होना एक सामान्य बात बन गई है। तो मेन्स का प्रबंधन किस आधार पर होता होगा।

19 जून 2022 की गलती

19 जून 2022 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में कश्मीर से जुड़ा प्रश्न जो भारत की संप्रभुता और अखंड़ता के खिलाफ था उस प्रश्न को पूछा गया। इससे स्पष्ट होता है कि आयोग पिछली गलतियों से सबक नहीं लेता है।

2021 के प्रथम प्रश्नपत्र में पूछे गए विवादित प्रश्न

भारत शासन अधिनियम 1935, उदेश्य प्रस्ताव, तुर्रा कलंगी, राज्य मानवाधिकार आयोग, एमपी के अंतराराष्ट्रीय हवाई अड्डे, आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22, राज्य संविधान सभा, वर्चुअल की बोर्ड, फॉस्फेट परीक्षण।

12 जनवरी 2020 की गलती

12 जनवरी 2020 को आयोजित मध्यप्रदेश राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा में भील जनजाति से जुड़े प्रश्न(दूसरे प्रश्न पत्र) में भील समाज के बारे में अपमानजनक कथन व प्रश्न पूछे गए। जिसके कारण मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के प्रश्न बनाने वाले व्यक्ति पर अनसूचित जाति- जनजाति निवारण अधिनियम- 1989 के तहत एफआईआर दर्ज हुई।

गलती आयोग की लेकिन हर्जाना अभ्यर्थी भरे

यह भी एक नैतिकता का प्रश्न है कि जब फॉर्म भरते समय परीक्षार्थी से कोई गलती होती है तब आपत्ति पर सुधार करने के लिए अभ्यर्थी पैसा देता है। और जब इस प्रकार के मामलों में प्रश्नों को लेकर आयोग से गलती होती है। तभी भी आपत्ति लगाने और प्रमाण उपलब्ध कराने के पैसे विद्यार्थी ही क्यों भरे…आयोग क्यों नहीं।
2019-20 का परिणाम अटका 2021 का पता नहीं

पिछले कई वर्षों से तैयारी कर रहे अभ्यर्थी अनिल गुप्ता ने कहा कि हम अपना मनोबल भी कब तक बरकरार रखे। साल 2019-20 के अंतिम परीक्षा परिणाम अभी तक जारी नहीं किए हुए हैं। और 2021 की परीक्षा का क्या भविष्य होगा यह भी संदेह के दायरे में है।

2019 से पहले मान्य था यह नियम

साल 2019 से पहले प्रश्न के उत्तर के लिए एक विकल्प को ही सही माना जाता था। अन्यथा प्रश्न हटाना पड़ता था। लेकिन अब दो या तीन प्रश्न के उत्तर सही माने जा सकते हैं। इससे भी स्पष्ट होता है कि आयोग सटिक प्रश्न उत्तर निर्मित नहीं कर सकता है। इसी तरह 2015, 2017 और 2018 में आयोजित प्रारंभिक परीक्षाओँ में कई प्रश्नों के उत्तर गलत थे। तब आयोग द्वारा बोनस अंस प्रदान किए गए थे। इससे पहले नियम था कि ऐसे प्रश्न सीधे निरस्त कर दिए जाते थे।

आयोग की गड़बड़ी पर जानकारों की राय

विगत वर्षों में प्रश्नपत्रों में पूछे प्रश्न फिर उनके दिए गए उत्तर इन अनुभवहीन पेपर सेटर के कारण आयोग की विश्वसनियता को कम कर रहे हैं। कुछ बिदुओं पर विचार करें तो हतासा होती है। पिछले दशकों में विशेषज्ञों द्वारा प्रश्न बनवाये जाते रहे हैं पर अब ऐसा प्रतीत नहीं होता।

अनिल शर्मा, प्रतियोगी परीक्षा विशेषज्ञ, इंदौर

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पिछले 8 वर्षों से पीएससी के छात्रों की लगातार तैयारी करवा रहा हूं। छात्रों के मन में अब आयोग को लेकर प्रश्चचिंह खड़े होने लगे हैं। ये ठीक बात नहीं है। कितनी विषय परिस्थियों में एक छात्र तैयारी करता है और एक झटके में उसके अरमानों में पानी फिर जाता है।

नीरज पांडे, फैकल्टी, कोचिंग संस्थान भोपाल

 

साल दर साल सवालों की गड़बड़ी को लेकर एमपीपीएससी के चेयरमैन डॉ राकेश लाल मेहरा से खासबात
सवाल- आयोग प्रश्नों को लेकर बार- बार गलतियां क्यों करता है?

जवाब- आयोग के साथ गोपनियता रहती है। पेपर सेटर पेपर सेट करके सीधे प्रेस में भेजते हैं। मॉडरेटर भी होते हैं। सामान्य तौर पर विवाद नहीं होता है लेकिन कश्मीर मुद्दे को लेकर विवाद हो गया। ये पेपर सेटर की पूरी गलती है। जो होना था हो गया उसके लिए हम कठोर कार्रवाई कर चुके हैं। कई बार एक ही प्रश्न के अलग- अलग पुस्तकों में संदर्भ अलग- अलग होते हैं। इसके लिए बच्चों को आपत्ति दर्ज करवाने के लिए सात दिन का समय भी देते हैं। और आपत्ति सही होती है तो पैसे भी बच्चों के रिफंड कर देते हैं।

सवाल- पहले तो प्रश्न गलत होने पर निरस्त हो जाते थे अब क्यों नहीं?

जवाब- अभी भी सवालों को निरस्त करते हैं। सात दिनों के बाद एक एक्सपर्ट कमेटी बैठती है। उनका मूल्यांकन करती है, संदर्भों से मिलान करती है सभी पहलूओं का। सीधे सवालों को निरस्त नहीं किया जाता है। पहले विद्वानों की समिति बनती है उसके आधार पर निर्णय होता है।

सवाल- आपको नहीं लगता आयोग पर से अभ्यर्थियों का भरोसा डगमगा रहा है?

जवाब- देखिए आयोग भी एक भरोसे पर ही काम करता है। किसी विशेषज्ञ को भरोसा सौंपता है कि आप ढंग से काम करेंगे और तय गाइडलाइन का पालन करेंगे। आयोग भी उसी भरोसे की संस्कृति पर ही काम करता है। अब आयोग का अध्यक्ष पहले ही पेपर देख ले या मूल्यांकन कर ले तो गोपनियता भंग हो जाएगी। पेपर आउट हो जाएगा। कम से कम आयोग के सामने ऐसा कभी नहीं हुआ कि पेपर आउट हो या प्रश्न लीक हो।

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