वहीं इसके अलावा भी प्रदेश के जिला अस्पतालों सहित अनेक सरकारी अस्पताल भी इन दिनों खुद बीमार बने हुए हैं, लेकिन अब तक सरकार की ओर से उन्हें सुधारने के लिए क्या कुछ प्लान किया गया है, इस संबंध में कोई जानकारी सामने नहीं आई है। ऐसे में अभी ये अस्पताल तक अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे हैं।
कोविड के बाद अन्य अस्पताल जहां ऑक्सीजन व्यवस्था को दुरुस्त कर रहे हैं, वहीं कस्तूरबा में आधे बेड पर ऑक्सीजन सप्लाई ही नहीं है। यहां 300 में से सिर्फ 150 बिस्तरों पर ही ऑक्सीजन की व्यवस्था है। इसमें से भी 20 आईसीयू के बिस्तर हैं। अगर कोरोना जैसे हालात एक बार फिर बनते हैं तो यहां मरीजों को भर्ती करना मुश्किल हो जाएगा।
वहीं दूसरी ओर प्रदेश के कई जिलों में अव्यवस्था और अन्य समस्याओं से जुझ रहे सरकारी अस्पतालों को सुधारने का कोई सरकारी रोडमैप तैयार किया भी जा रहा है कि नहीं इस संबंध में किसी प्रकार की सूचना मौजूद नहीं है। सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्थाओं की बानगी पिछले दिनों ही राजगढ़ ब्यावरा के सरकारी अस्पताल व गुना के जिला अस्पताल में देखने को मिली थी, ये स्थितियां कब मरीजों पर मौत बनकर टूटेंगी इसका कोई भरोसा नहीं, लेकिन इसके बावजूद सरकार अब तक उस पर मौन साधे दिख रही है।
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कस्तूरबा अस्पताल के आंकड़े:
– 300 बिस्तरों की क्षमता
– 800 मरीज रोज ओपीडी में
– 24000 मरीज हर महीने ओपीडी में
– 32 डॉक्टर कर कर रहे काम
– 150 बिस्तरों पर अॅक्सीजन
डॉक्टरों की कमी तो है लेकिन इसका असर मरीजों पर नहीं होता। मरीजों का इलाज इनपैनल्ड अस्पतालों में हो जाता है। ऑक्सीजन से लेकर मरीजो की जांच की पर्याप्त व्यवस्था है।
– शरीफ खान, पीआरओ, भेल
कितने कर्मचारी और परिजन कस्तूरबा अस्पताल पर निर्भर
– 5409 कर्मचारी
– 21900 परिवार के सदस्य
– 10800 सेवानिवृत कर्मचारी
– 18100 सेवानिवृत कर्मचारी के परिवार
– 407 सीआईएसएफ
– 1157 सीआईएसएफ परिजन
– 981 विधवा कर्मचारी
– 1036 परिवार
मरीज बढ़ते गए डॉक्टर हुए कम
जानकारी के मुताबिक करीब दस साल पहले अस्पताल में ओपीडी में सिर्फ 500 मरीज ही पहुंचते थे। इनके इलाज के लिए अस्पताल में 150 चिकित्सक थे। अब ओपीडी मे मरीजों की संख्या बढ़कर 800 से ज्यादा हो गई लेकिन डॉक्टर कम हो गए।