पिछले तीन दशक यानी 1980 से अब तक के चुनाव देखें, तो नौ विधानसभा चुनाव में सीटों पर प्रत्याशी भले ही बदलते रहे, लेकिन भाजपा-कांग्रेस ने अपने किले की रखवाली और सेंधमारी में खूब जोर-आजमाइश की। प्रदेश की कुछ विधानसभा सीटों का मिजाज तो हर दस साल में बदलता गया।
ऐसी रही सियासी स्थिति
प्रदेश में 2003 से 2018 तक का युग भाजपा का कहलाता है। 2003 से 2018 तक भांडेर, अशोकनगर और नेपानगर सीट भाजपा के पास ही रही, लेकिन 2018 में कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया। इसमें नेपानगर उपचुनाव में ढह गई थी। वहीं, आगर पर तीन दशक यानी नौ विधानसभा चुनाव में सात बार भाजपा काबिज हुई, जबकि केवल दो बार कांग्रेस को मौका मिला।
पोहरी, अम्बाह, अशोकनगर, में तो 1985 के बाद कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत का स्वाद चखा था। भांडेर, मुरैना, दिमनी और बड़ामलहारा पर 1993 के बाद कांग्रेस 2018 में आ सकी। बसपा, भाजश और निर्दलीय दोनों ही पार्टियों के समीकरण चुनिंदा सीटों पर बनाते-बिगाड़ते रहे। हालांकि, तीन दशक का सियासी इतिहास बताता है कि दोनों पार्टियों के लिए इस बार आसान राह नहीं है। क्योंकि, कुछ गढ़ रूपी सीटें हैं, तो ऐसी सीटें भी हैं, जो बार-बार सियासी माहौल बदलती रही हैं।
इनमें गोहद, जौरा, बदनावर सहित आधा दर्जन सीटें हैं। कुछ सीटें ऐसी भी रहीं, जिनका गठन बाद में हुआ जिसके चलते उनका तीन दशक का इतिहास नहीं है, लेकिन उन सीटों पर भी पार्टी बदलती रही। अभी उपचुनाव वाली 28 में से केवल आगर को छोड़कर बाकी पर कांग्रेस विधायक थे।
1980 से 2018 तक जीत की स्थिति
सीट भाजपा कांग्रेस अन्य निर्दलीय
डबरा 04 04 01 00
भांडेर 04 04 01 00
मेहगांव 02 04 01 02
गोहद 05 03 01 00
ग्वालियर 05 03 01 00
ग्वालियर पूर्व 02 01 00 00
मुरैना 05 03 01 00
दिमनी 06 02 01 00
करैरा 03 05 01 00
पोहरी 04 03 01 01
सुमावली 03 03 03 00
मुंगावली 03 06 00 00
अम्बाह 04 03 02 00
बमोरी 01 02 00 00
अशोकनगर 05 03 01 00
जौरा 04 01 04 00
बदनावर 04 05 00 00
हाटपिपलिया 05 04 00 00
सांवेर 05 04 00 00
सुवासरा 05 04 00 00
मांधाता 02 01 00 00
नेपानगर 04 05 00 00
सुरखी 03 05 00 01
बड़ा मलहरा 05 03 01 00
अनूपपुर 03 06 00 00
सांची 06 03 00 00
ब्यावरा 04 04 00 01
आगर 07 02 00 00