नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-2021 की रिपोर्ट में कुछ राहत देने वाले तो कुछ चौकाने वाले आंकड़े भी सामने आए हैं। क्या देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है या क्या शिशु मृत्यु दर कम हुई है? इसमें मध्य प्रदेश के क्या हाल हैं?
आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में...।
मध्यप्रदेश चौथे पायदान पर
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश में 0-5 साल तक के शिशु मृत्यु दर में 8 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। 2015-16 में प्रति एक हजार जन्मे शिशुओं पर 50 की मृत्यु दर थी। जबकि 2019-21 में यह घटकर 42 पर आ गई है। राज्यों की बात करें तो मध्य प्रदेश के आंकड़े इसे देश में चौथे पायदान पर ले जाते हैं। आज भी यहां ये दर 49 है। हालांकि स्थिति सुधरी है। 2015 में ये आंकड़े 65 थे। इससे मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर था।

बाकि राज्यों की रिपोर्ट क्या कहती है?
इसमें सबसे खराब प्रदर्शन उत्तर प्रदेश का रहा। यहां ये रेट हर एक हजार जन्मे बच्चों में 60 है। इसका मतलब है कि हर एक हजार में से 60 बच्चे 5 साल से कम उम्र में ही मर जाते हैं। इसके बाद इस सूची में बिहार और छत्तीसगढ़ हैं। सबसे बेहतरीन प्रदर्शन केरल और पुडुचेरी ने किया है। यहां का आंकड़ा क्रमशः 5.2 और 3.9 है। अगर इसी में विकास दर की बात करें तो केरल ने कुछ खास काम नहीं किया है। क्योंकि 2015-2016 में ये 7.1 था। यानि 2 से भी कम अंकों का सुधार हुआ है। वहीं पुडुचेरी 5 साल तक के शिशु मृत्यु दर को 20 से 3.5 पर ले आया है।

शिशु मृत्यु दर के आंकड़ें क्या कहते हैं?
अगर शिशु मृत्यु दर (इन्फेंट मोर्टेलिटी रेट) के आंकड़ें देखे तो पिछले 28 सालों में देश में ये दर 56% कम हुई है। 2019-21 के आंकड़ें कहते हैं कि हर 1000 जन्में बच्चों में से 35 बच्चों की मृत्यु 1 साल के अंदर ही हो गयी। यही दर 2015-16 के सर्वे में 41 थी।
क्या ये दर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग है?
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21 के रिपोर्ट्स में सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरों में ये संख्या कम है। शहरों में जन्म से 5 साल तक के शिशुओं की मृत्यु दर 1000 में से 32 है, जबकि गांवों में यह 46 हो गई है।

इसके पीछे के कारण क्या हैं?
पारिवारिक संपत्ति यानी परिवार की आर्थिक स्थिति भी इसमें एक बहुत बड़ा कारण है। आंकड़ों के अनुसार सबसे कम आर्थिक स्थिति वाले ग्रुप में जन्म से 5 साल तक शिशुओं की मृत्यु दर एक हजार में 59 है। जबकि यही दर घने समूह में 20 रह जाती है।
दूसरा कारण दो बच्चों के बीच अंतर का है। दो बच्चों के बीच गैप ज़्यादा है, तो इनकी मृत्यु की संभावना कम हो जाती है। इसके अलावा तीन साल का गैप होने पर मृत्यु दर दोगुनी से कम हो जाती है।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि मृत्यु दर लड़कियों से ज़्यादा लड़कों की है। आंकड़ों के मुताबिक लड़कियों की मृत्यु दर 40 और लड़कों की 44 है। पहले भी कुछ यही हाल था। 2015-16 में लड़कों की मृत्यु दर 52 थी और लड़कों की 48 थी।

लड़कियों की मृत्यु दर में कमी क्यों आई
लड़कियों की मृत्यु दर में कमी का कारण भी सरकार की कई योजनाएं हैं। बच्चियों के पैदा होने पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है। मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं भी इसके पीछे प्रमुख कारण है। मध्य प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री लाडली योजना के तहत सबसे पहली किस्त बच्ची जन्म के समय दी जाती है। जिन लड़कियों का जन्म अस्पताल में होता है उस वक्त उन्हें 11 हजार रुपए दिए जाते हैं। जबकि बेटी के घर पर जन्म लेने पर उसे 10 हजार रुपए दिए जाते हैं। ऐसे ही पूरे देश में अलग-अलग योजनाएं चल रही हैं। इसके अलावा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, भाग्यश्री योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, मुख्यमंत्री राजश्री योजना आदि शामिल हैं।
आखिर क्यों केरल की शिशु मृत्यु दर अच्छी है? मध्य प्रदेश सरकार वहाँ से क्या सीख सकती हैं। मां की शिक्षा और अमीरी-गरीबी भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। केरल की बेहतरीन शिक्षा दर ही शिशु मृत्यु दर कम होने के पीछे की एक बड़ी वजह है। मां अगर पढ़ी-लिखी होगी तो वे अपने बच्चों के लिए बेहतर फैसले ले पाती हैं और सुरक्षित माहौल दे पाती हैं।