scriptNational level award will be given on PP sir's birthday | देखें video : पीपी सर के जन्मदिन पर मिलेगा राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार | Patrika News

देखें video : पीपी सर के जन्मदिन पर मिलेगा राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार

locationभोपालPublished: Mar 18, 2023 01:10:47 am

Submitted by:

yashwant janoriya

गांधी भवन में एमसीयू के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेन्द्र पाल सिंह के लिए श्रद्धांजलि कार्यक्रम

गांधी भवन में एमसीयू के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेन्द्र पाल सिंह के लिए श्रद्धांजलि कार्यक्रम
गांधी भवन में एमसीयू के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेन्द्र पाल सिंह के लिए श्रद्धांजलि कार्यक्रम
भोपाल. शुक्रवार शाम राजधानी में देश के अलग-अलग कोने से पीपी सर के चाहने वाले और छात्र उन्हें याद करने पहुंचे। गांधी भवन में एमसीयू के पूर्व प्राध्यापक और रोजगार और निर्माण के संपादक पुष्पेन्द्र पाल ङ्क्षसह को श्रद्धांजलि अर्पित करने स्मृति सभा हुई। कई छात्रों, सामाजिक संस्थाओं, संगठनों और मित्रों ने उनके साथ बिताए अपने अनुभव साझा किए। स्मृति सभा में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने श्रद्धांजलि अर्पित कर कहा कि पीपी सर ने पत्रकारिता के क्षेत्र में हजारों पत्रकारों को जन्म दिया। मेरा सौभाग्य है कि मुझे भी उनके साथ काम करने का मौका मिला। उन्होंने पत्रकारिता के छात्रों को बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। वो हमारे समाज के लिए एक उदाहरण थे। कार्यक्रम में पूर्व छात्रों ने पीपी सर के जन्मदिन पर राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार देने की घोषणा की है।
उनकी यादों को भुला पाना बहुत मुश्किल है...
जीते हुए व्यक्ति के साथ तो सब रहते हैं, पीपी सर हारे हुए के साथ खड़े रहते थे, वे हारे का सहारा थे। उन्होंने हमेशा दूसरों की उम्मीद को संभाला है। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राजेश बादल ने आगे कहा कि उनकी यादों को भुला पाना बहुत मुश्किल है। पता ही नहीं चला पुष्पेंद्र पाल कब पीपी सर बन गए। उन्होंने कई हीरे तराशे हैं।
अनाथ शब्द को पहली बार महसूस किया...
आनंद प्रधान ने कहा पीपी एक जैविक शिक्षक थे, उनमें अलग तरह का जुनून था। वे शरीर से चले जरूर गए हैं लेकिन अपने विद्यार्थियों में हमेशा ङ्क्षजदा रहेंगे। देश के हर कोने में पीपी सर के छात्र हैं जो उनके मूल्यों को आगे लेकर जाएंगे। इसी कड़ी में डॉ विजय बहादुर ङ्क्षसह ने कहा कि पुष्पेन्द्र ङ्क्षसह मरे नहीं परिस्थितियां ऐसी बनाई कि इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं था। अब उनके जैसे शिक्षकों का होना बहुत मुश्किल हो गया है जो स्वयं में एक संस्था हों। वे अपने शिष्यों के बीच ही जीते थे।
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