बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी के एनएसएस में कार्य करते हुए उन्होंने न केवल युवाओं को समाज सेवा के प्रति प्रेरित करते हैं, बल्कि खुद भी कई सामाजिक कार्यों में भागीदारी निभाते हैं। अभी पिछले दिनों ही पत्रिका की ओर से भोपाल शहर में बावड़ी को सवांरने के लिए किए गए कार्य में भी इन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी। युवा दिवस पर हम आपको आज उन्हीं राहुल सिंह से मिला रहे हैं जिन्हें प्रदेश के कई युवा अब अपना प्रेरक, अग्रज और तो और रोल मॉडल तक मानने लगे हैं।
उनका कहना है कि आज के दौर में जब भी युवाओं के विषय पर चर्चा होती है, तो सभी एकमत से यही कहते दिखते हैं कि आज के युवा जोशीले, गर्वीले व ऊर्जा से भरपूर हैं! ऐसे में प्रदेश के तकरीबन हर जिले में कोई न कोई ऐसा युवा जरूर है जो युवा शक्ति के स्त्रोत के रूप में दिखाई देता है। अब चाहे समाज सेवा हो, राजनीति या कोई अन्य क्षेत्र हर ओर युवाओं का ही बोलबाला है।
ये सच भी है, आज की युवा पीढ़ी के लिए क्षेत्र में अपार संभावना है। वह जिस क्षेत्र में योग्यता रखता है उसमें आगे बढ़ने के लिए प्रयास करता है। आज जहां देश आगे की ओर अग्रसर हैं वहीं युवा इसे लगातार शक्ति प्रदान कर रहे हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में भी युवा कहीं पीछे नहीं है।
इस संबंध में आज युवा दिवस पर हमने भोपाल स्थित बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी के राष्ट्रीय सेवा योजना में कार्यरत राहुल सिंह परिहार से युवा और समाज सेवा विषय पर बातचीत की।
युवा और समाज सेवा पर बातचीत के दौरान राहुल परिहार ने बताया कि वे एक लंबे अरसे से समाज सेवा से जुड़े हुए हैं। एनएसएस में ही छात्र रूप से जुड़े रहने के चलते अब तक उन्हें करीब 23 वर्ष हो चुके हैं। समाज सेवा से जुड़ाव होने के चलते ही उन्हें इसी को अपने करियर के रूप में आगे बढ़ाया।
समाज सेवा के बारे में उनका कहना है कि आज का युवा समाज के प्रति तेजी से जागरूक हो रहा है। इसी के चलते वह समाज को बहुत कुछ देना भी चाहता है।
आज का युवा बहुत संवेदनशील है,वहीं जो युवा एनएसएस से जुड़े रहते हैं माना भविष्य में वे अपने रोजगार को लेकर इधर उधर हो जाते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि उसमें फिर भी वो भावना रहती ही है, तभी कहीं भी जब समाज से जुड़े कार्यों की बात आती है तो सबसे पहले यही युवा सामने आता है।
युवाओं के संबंध में व उनके छोटी छोटी बातों पर आपस में नाराज हो जाने के संबंध में जब उनसे पूछा गया तो उनका कहना था युवाओं को संगठित रखना एक आसान प्रक्रिया नहीं है। मैंने खुद कई तरह से इस पर सोचा है और कार्य किया है। दरअसल कई जगह कार्य के दौरान मैंने पाया कि अलग अलग लोगों की अपनी अपनी सोच होती है। इनमें समन्वय बैठाना ही संगठित करने का मूल तत्व है। सोच के अंतर को हम कम करके व एक दूसरे की भावनाओं की कदर करके ही हम संगठित रह सकते हैं।