अधिक से अधिक प्रतिमा इतनी ऊंची होनी चाहिए कि हम प्रतिमा के चरणों में खड़े रहकर मस्तक पर चंदन तिलक लगा सके। इससे ज्यादा ऊंची प्रतिमाओं की स्थापना शास्त्र सम्मत नहीं है। ऊंची प्रतिमाओं की विधि विधान से पूजन में परेशानी आती है। इसलिए प्रतिमाओं की अधिकतम ऊंचाई आदमकद होना चाहिए।
दो प्रतिमाएं रखने का विधान भी गलत
पं.विष्णु राजौरिया का कहना है कि प्रतिमाओं की ऊंचाई जितनी कम होती है, उतनी ठीक तरीके से हम पूजा अर्चना कर पाते है। घरों में नित्य नैमित्तक पूजा में 9 अंगुल से ऊंची प्रतिमा नहीं होनी चाहिए। इसी प्रकार सार्वजनिक स्थानों पर भी प्रतिमा अधिक से अधिक आदमकद होनी चाहिए, ताकि हम आसानी से जमीन पर खड़े होकर प्रतिमा के मस्तक पर चंदन, कुमकुम लगाकर पूजा अर्चना कर सके। आजकल झांकियों में दो-दो प्रतिमाएं रखने का चलन भी बढ़ गया है, एक ऊंची प्रतिमा झांकी के रूप में स्थापित होती है,और एक पूजा के लिए छोटी प्रतिमा रखी जाती है। यह भी गलत है। एक ही प्रतिमा होनी चाहिए, जिसकी पूजा और दर्शन करने चाहिए।
शास्त्रोक्त नहीं ऊंची प्रतिमाओं की स्थापना
ज्योतिषाचार्य अंजना गुप्ता का कहना है कि ज्यादा ऊंची प्रतिमाओं की स्थापना शास्त्रोक्त नहीं है। घरों के बाहर १२ अंगुल से अधिक की प्रतिमाओं की स्थापना नहीं होनी चाहिए, ताकि हम आसानी से प्रतिमा की पूजा अर्चना कर सके। पहले तो जवारों को ही देवी के रूप में स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से प्रतिमाओं की स्थापना का चलन अधिक बढ़ गया है।
अब तो काफी ऊंची-ऊंची प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। ऊंची प्रतिमाओं को लाने, ले जाने, पूजा करने और विसर्जन करने में दिक्कत आती है। इसलिए प्रतिमाओं का आकार छोटा ही होना चाहिए। प्रतिमाएं शास्त्रोक्त प्रमाण से ही बनी होनी चाहिए। इसी प्रकार पीओपी की प्रतिमाओं का इस्तेमाल भी किया जाता है, यह भी शास्त्र अनुसार नहीं है।