scriptन ट्रेन आई, न नर्मदा का पानी, पलट गई धार की कहानी | Neither train came, nor the waters of Narmada, the story of the rever | Patrika News

न ट्रेन आई, न नर्मदा का पानी, पलट गई धार की कहानी

locationभोपालPublished: Jan 09, 2019 06:56:58 pm

Submitted by:

anil chaudhary

वादों पर खरी नहीं उतर पाईं धार की सांसद, जनसंपर्क में भी पिछड़ींविधानसभा चुनाव में जनता ने बजाई खतरे की घंटी
 

Leaders started running marathons for tickets of Lok Sabha

mahamukabla-2018

चुनाव वर्ष भाजपा कांग्रेस
2013 विधानसभा 530541 (6 सीट) 542384 (2 सीट)
2014 लोकसभा 558387 454059
2018 विधानसभा 523456 (2 सीट) 743526 (6 सीट)
धार. मोदी लहर में कांग्रेस प्रत्याशी को करीब एक लाख वोटों से पराजित करने वाली धार-आंबेडकर नगर (महू) सांसद सावित्री ठाकुर के लिए विधानसभा चुनाव में खतरे की घंटी बज गई है। परिणाम पलटने के साथ ही इस सीट पर भाजपा 2.20 लाख वोटों से पीछे हो गई है। साढ़े चार साल बीतने के बाद भी सावित्री के वादों की ट्रेन धार नहीं पहुंच पाई। न ही नर्मदा जल मिला।
इंदौर-दाहोद रेल परियोजना लंबे समय से अटकी हुई है। सावित्री जब सांसद बनीं और राज्य के साथ केंद्र में भाजपा की सरकार आई, तो उम्मीद थी कि यह परियोजना पूरी होगी। औद्योगिक विकास के नाम पर जमीनों की बंदरबांट हुई, लेकिन लोगों को रोजगार नहीं मिल पाया। इतना ही नहीं वे जनसंपर्क के मामले में भी लोगों की अपेक्षाएं पूरी नहीं कर पाईं। नतीजन, इस बार विधानसभा चुनाव में क्षेत्र की आठ में से छह सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। भाजपा चार सीटों के नुकसान के साथ धार और महू सीट तक सिमटकर रह गई है। हाल के चुनाव में भाजपा के खिलाफ आदिवासियों की नाराजगी सामने आई थी। पार्टी ने उन्हें साधने की भरपूर कोशिश की, लेकिन सांसद सहित जो भी मध्यस्थ थे उनकी आदिवासियों ने एक नहीं सुनी।
– हर बार बदलते रहे समीकरण
1996 में केवल एक वोट से भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी ने 36 हजार वोट से इस सीट पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने भाजपा की उम्मीदवार हेमलता छतरसिंह दरबार को हराया था। इसके बाद 1999 से 2004 तक कांग्रेस के राजूखेड़ी ही यहां से सांसद रहे, लेकिन 2004 में राजूखेड़ी को टिकट नहीं देना कांग्रेस को भारी पड़ गया। भाजपा के छतरसिंह दरबार ने कांग्रेस के उमंग सिंघार को भारी मतों से हराया। इससे सबक लेकर 2009 में कांग्रेस ने फिर राजूखेड़ी को मैदान में उतारा। राजूखेड़ी ने जीत हासिल की, लेकिन वोटों का अंतर काफी कम रहा। वर्ष 2014 के चुनाव में फिर बाजी भाजपा के हाथ चली गई। मोदी लहर में सावित्री ने कांग्रेस के सिंघार को लगभग एक लाख वोटों से पराजित किया।
– संसद में नहीं बन सकीं आवाज
आदिवासी बाहुल्य धार पिछड़ेपन का शिकार है। उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण तो हुआ, लेकिन उद्योग नहीं लगे। अभी भी जमीन उद्योगपतियों के कब्जे में है और वहां केवल बोर्ड लगे हुए हैं। सावित्री ने उद्योग लगाकर रोजगार के साधन बढ़ाने का वादा भी पूरा नहीं किया। साढ़े चार साल में संसद में महज 64 सवाल लगाए और 13 डिबेट में हिस्सा लिया।
– ये रही खामियां
केंद्र तक आवाज नहीं पहुंचने के कारण रेल अब तक धार से नहीं गुजर सकी।
इंदौर तक पहुंच चुकी नर्मदा पेयजल परियोजना की धार से अब भी दूर है।
बड़े औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के बावजूद स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं मिल पाया।
औद्योगिक विकास में हाथ से जाती जमीन पर सांसद चुप्पी साधे रहीं।

लोगों को क्या तकलीफ हो रही है और उसे कैसे दूर कर सकते हैं, इस बारे में सांसद ने कभी सोचा ही नहीं। यहां कम आती हैं और दिल्ली में ये जताती हैं कि वे क्षेत्र के लिए काफी काम कर रही हैं।
– आत्माराम चौधरी, सकतली
जिस सरकारी जमीन पर आदिवासी बरसों से परिवार पाल रहे हैं, उसे अफसर छीन रहे हैं। ऐसे समय भी सांसद यह कहने नहीं आई कि उनके लिए सरकार और अच्छी योजना बना रही है या राहत दे रही है।
– देवप्रसाद गिरवाल, धामनोद
लोग पलायन को विवश हैं। बड़े-बड़े उद्योगतियों को अरबों की जमीन कौडिय़ों के दाम बांट दी गई, लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं दिया जा रहा है। सांसद ने कभी इनकी ओर भी पलटकर देखा।
– भूपेंद्र चौहान, धार
सांसद कब आती हैं, लोगों को मालूम नहीं। कुछ भी काम हो स्थानीय अधिकारियों के पास ही दौड़ लगाना पड़ती है। इतनी दूर से तो सांसद को ही आना पड़ेगा, क्योंकि हमारी विधानसभा भी इनके क्षेत्र मेें आती है।
– जीवन यादव, महू
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