वे अपनी इस विरासत को अगली को सौंपना चाहते हैं। पुरातत्व विभाग के अधीक्षक पद से सेवानिवृत डॉ. व्यास ने पाषण युग के पत्थरों से लेकर, इतिहास और पांचांग पर काफी काम किया है। उन्होंने बताया कि भारत में सदा से पांचांग का विशेष महत्व रहा है। तीज त्योहारों के साथ ही ग्रहों की चाल का इन पांचांग में वर्णन होता था। ऐसे करीब 60 से अधिक पांचांग सहेजकर रखे हैं जिनका जिक्र सिर्फ किताबों में होता है।
समृद्ध विरासत का दर्शन
डॉ. व्यास के अनुसार पांचांग हमारी समृद्ध विरासत का दर्शन कराते हैं। हजारों साल पहले कैसे हमारे पूर्वजों ने भविष्य की बात कह दी थी, इसमें भी पांचांग की बड़ी भागीदारी रही है। वे मानते हैं पांचांग को प्रकाशित करने में अलग-अलग दौर में अलग-अलग साधनों का उपयोग जरूर किया गया है, लेकिन पांचांग की विश्वसनीयता पर कभी सवाल खड़े नहीं हुए।
102 साल पुराना हाथ से लिखा पंचांग
डॉ. व्यास के खजाने में 1872 में हाथ से लिखा गया पांचांग भी मौजूद है। इसमें हाथ से लिखे पांचांग के अलावा उभरे हुए अक्षरों के लिथोपे्रस पांचांग से लेकर ट्रेडल प्रिंटिंग और डिजिटल युग के पांचांग भी हैं।
युवाओं से कराएंगे रूबरू
डॉ. व्यास मानते हैं कि हमारी विरासत अलमारियों में बंद नहीं रहना चाहिए। इसी के चलते वे इन पांचांग को स्कूली बच्चों के साथ ही शहर के दर्शनार्थ रखना चाहते हैं। इस रविवार को वे सारांश रंग शिविर द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में इन पांचांग को कोलार के ललितानगर स्थित प्रज्ञा हाइस्कूल में प्रदर्शन करेंगे। यहां 1872 का हाथ का लिखा व लिथोप्रेस पांचांग भी उपलब्ध रहेगा।