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Election 2018 : मध्यप्रदेश की सियासी तस्वीर साफ, जानिए किसकी बनेगी सरकार !

locationभोपालPublished: Dec 01, 2018 01:52:28 pm

Submitted by:

KRISHNAKANT SHUKLA

Election 2018 : एससी-एसटी की आरक्षित 82 सीटें साफ करेंगी मध्यप्रदेश की सियासी तस्वीर, अपेक्षा से ज्यादा मतदान होने से सभी की नजरें यहीं टिकीं

new government in madhya pradesh

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भोपाल. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बंपर वोटिंग हुई है। वोटरों का उत्साह कुछ सीटों पर अपेक्षा से बहुत आगे निकल गया।

अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग (एससी-एसटी) के लिए आरक्षित 82 सीटों में से 77 पर पिछली बार से ज्यादा वोट पड़े हैं। एससी की 13 और एसटी की 21 सीटों पर मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में 4 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है।

एसटी की अनूपपुर में पिछले चुनाव से 11.93 और गंधवानी में 11.38 प्रतिशत ज्यादा वोट पड़े, जो रेकॉर्ड है।
ज्यादा वोट को लेकर सभी दलों के अपने-अपने दावे हैं।

भाजपा इसे सरकार की उपलब्धि और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि का परिणाम बता रही है तो कांग्रेस इसे बदलाव के रूप में आंक रही है।

आंकड़े बताते हैं कि जिन सीटों पर पिछले चुनाव की तुलना में 4 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़ते हैं, उनमें से अधिकांश सीटों पर वर्तमान विधायक के प्रतिकूल परिणाम आते हैं। इस बार एससी आरक्षित जिन सीटों पर

मतदान 4 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है, उसमें से 12 भाजपा और एक बसपा के कब्जे में हैं। वहीं, 4 फीसदी से ज्यादा मतदान वाली एसटी की सीटों में 18 भाजपा, 2 कांग्रेस और 1 निर्दलीय के पास है।

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इन मुद्दों के कारण है खास नजर

पेसा एक्ट और पांचवीं अनुसूची को पूरी तरह लागू करने की मांग को लेकर आदिवासी वर्ग सरकार से नाराज है। छत्तीसगढ़ के बाद पत्थलगढ़ी आंदोलन मध्यप्रदेश भी पहुंचा और विंध्य के कुछ हिस्से और महाकौशल के गोंड, बैगा, कोल आदिवासियों में इस मुद्दे ने जमीन बनाई। इस इलाके की चार सीटों में अप्रत्याशित मतदान देखने में आया।

मालवा-निमाड़ में आदिवासी संगठन जयस सरकार के खिलाफ लामबंद हुआ। यहां भील-भिलाला जनजाति का बहुलता है। इसके इलाके की 14 से अधिक सीटों पर बंपर वोटिंग ने नए समीकरण के संकेत दिए हैं।

निमाड़ के धार, बड़वानी, अलीराजपुर, झाबुआ, खंडवा, खरगौन में नर्मदा विस्थापन की नाराजगी बनी रही। इसमें भी सरदार सरोवर के कारण निमाड़ के तीन जिलों आदिवासियों के बीच खासा आक्रोश पसरा।

एट्रोसिटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए बदलाव के बाद 2 अप्रैल को अनुसूचित जाति के भारत बंद करके सडक़ों पर उतर आया। इस दौरान ग्वालियर-चंबल अंचल में जमकर हिंसा हुई। हिंसा के बाद दलित वर्ग के आंदोलनकारियों पर हुई कार्रवाई ने इस वर्ग की नाराजगी को और बढ़ाया।

बाद में सदन में एट्रोसिटी एक्ट में सदन में संशोधन करके सरकार ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की, लेकिन इसके बाद उपजे सवर्ण आंदोलन से प्रदेश में वर्ग संघर्ष बढ़ गया। इससे भी दलित वर्ग में नाराजगी बढ़ी

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यह है 2013 की स्थिति

भाजपा ने अनुसूचित जाति वर्ग की 35 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें जीती थीं। कांगे्रेस को चार और बहुजन समाज पार्टी को तीन सीटें मिली थीं। इसी तरह आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 31 सीटें भाजपा, 15 कांग्रेस और महज एक निर्दलीय ने जीती थी।

इस तरह 82 में 59 सीटें भाजपा ने जीत कर सरकार बनाने के लिए एक बड़ा आधार यहां से खड़ा किया था। कांग्रेस परंपरागत दलित-आदिवासी वोट बैंक मेंं 2003 से लगी सेंध को पिछली बार भी नहीं भर पाई थी। इसी के चलते उसे सत्ता से दूर रहना पड़ा।

इस बार विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर दोनों प्रमुख सियासी दलों की नजर थी। इसी के साथ बसपा भी तैयारी में जुटी रही।

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