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7 सीटों पर भ्रष्टाचार से भी बड़ा चुनावी मुद्दा है अफीम, सरकार अपनी निगरानी में कराती है खेती

locationभोपालPublished: Oct 02, 2018 10:22:43 am

Submitted by:

shailendra tiwari

अफीम! एक मादक पदार्थ है।

opium farmers

7 सीटों पर भ्रष्टाचार से भी बड़ा चुनावी मुद्दा है अफीम, सरकार अपनी निगरानी में कराती है खेती

भोपाल. अफीम! एक मादक पदार्थ है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दों के बीच मध्यप्रदेश में अफीम भी एक चुनावी मुद्दा है। हालांकि अफीम एक मादक पदार्थ है उसके बाद भी मध्यप्रदेश के नीमच और मंदसौर में किसानों के लिए अफीम सबसे बड़े चुनावी मुद्दों में से एक है। अफीम की खेती केन्दर् सरकार खुद अपनी निगरानी में कराती है। बिना सरकारी अनुमति के देश के किसी भी हिस्से में इसकी खेती नहीं की जा सकती है।
मालवा के नीमच और मंदसौर जिले में अफीम चुनाव के बड़े मुद्दों में से एक है। विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव प्रदेश के इन दो जिलों में अफीम एक बड़ा चुनावी मुद्दा माना जाता है। नीमच जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं जबकि मंदसौर जिले में चार विधानसभा सीटें हैं। वहीं, संसदीय सीट की बात करें तो का दोनों जिलों की सातों विधानसभा सीटों को मिलाकर मंदसौर संसदीय क्षेत्र बनता है। 16 लाख मतदाताओं वाले इस संसदीय क्षेत्र के बारे में ऐसा कहा जाता है कि दुनिया की सबसे अधिक वैध अफीम की खेती यहीं होती है। लाखों परिवार यहां अफीम की खेती से जुड़ा है। जानकारोंका कहना है कि ये अफीम की खेती से जुड़े परिवार जिस राजनीतिक दल को अपना समर्थन देते हैं जीत उसी की मानी जाती है। इसी को देखते हुए राजनीतिक दल भी अफीम उत्पादक किसानों को साधने में जुट गए हैं औऱ सरकार ने नई अफीम नीति की घोषणा की है।
अभी भाजपा का है कब्जा: मंदसौर जिले की मंदसौर, मल्हारगढ़ और गरोठ सीट में भाजपा का कब्जा है जबकि जबकि सुवासरा में कांग्रेस का वहीं, नीमच जिले की नीमच, मनासा और जावद तीनों ही सीटों पर भाजपा का कब्जा है। अफीम उत्पादक मालवा अंचल की मंदसौर संसदीय सीट पर अफीम उत्पादक किसान ही निर्णायक वोट बैंक की भूमिका मे रहते हैं। चुनाव आते ही इन किसानों से जुडे मुदों पर भी पार्टियां अपना ध्यान रखती है और इन्हें लुभाने के लिए नीतियां तय करती हैं। अर संसदीय सीट की बात की जाए तो मंदौसर सीट पर भाजपा का ही कब्जा रहा है लेकिन 2014 के चुनावों में यहां से कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन ने जीत दर्ज की थी। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा अफीम किसानों को लुभाने में जुट गई है। इस इलाके में किसान अफीम की खेती करता था, लेकिन सरकार की पॉलिसी ऐसी आई कि अफीम के पट्टे कम होते चले गए।
घटते पट्टों ने तोड़ी कमर: अफीम की खेती के लिए सरकार की नीतियों के कारण घटते पट्‍टों ने अफीम किसानों की कमर तोड़ दी। वहीं, डोडा चूरा की पॉलिसी ने भी किसानों का बहुत नुकसान पहुंचाया है। सरकार की नई अफीम नीति में किसानों को अच्छी खबर दी है। 1998-1999 से 2002-2003 तक के बीच कम औसत के कारण अफीम के लाइसेंस रद्द कर दिए थे ऐसे किसानों को सरकार नई अफीम निती में एक किलो प्रति हेक्‍यर औसत कम करके उन्‍हें पुनः पट्टे जारी करेगी। उन अफीम किसानों को वर्ष 2002-03 से लगाकर 2016-17 तक के पट्टे मिलेगें जिनके पट्टे कम औसत के कारण काट दिये गयें थे। पात्र किसानों को 10-10 आरी के पट्टे दिये जाएंगे।

मंदसौर गोली कांड के बाद सरकार से नाराजगी: 6 जून 2017 को मंदसौर में हुए किसानों के हिंसक प्रदर्शन में शिवराज सरकार बैकफुट पर आ गई थी। किसान आंदोलन में करीब छह लोगों की जान चली गई थी। हिंसा के बाद बिगड़े हालात के बाद प्रदेश में शांति स्थापित करने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उपवास किया था। सरकार किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए नई अफीम नीति को सहारा बना रही है।
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