उनकी लिखित सहमति न होने के कारण राज्य सरकार ने उनका नाम डीजीपी की पैनल में मान्य न करने को लेकर पत्र लिखा था, लेकिन केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय के मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस पर राज्य सरकार को ही गलत ठहरा दिया है।
सिंह ने सीधे तौर पर कहा है कि जौहरी को पैनल में मान्य या अमान्य करने का फैसला डीओपीटी स्तर से ही होगा। वर्तमान में जौहरी भारत सरकार में बीएसएफ डीजी के पद पर काम कर रहे हैं।
दरअसल, पूरा घटनाक्रम सीएम कमलनाथ की मौजूदा डीजीपी वीके सिंह से नाराजगी के बाद बदल गया था। राजगढ़ कलेक्टर निधि निवेदिता के थप्पड़-कांड पर सीएम डीजीपी से नाराज हो गए थे। इसके चलते राज्य सरकार ने जौहरी की लिखित सहमति डीजीपी पद के लिए न होने का हवाला देकर पत्र लिख दिया था।
यूपीएससी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि नवंबर 2019 में डीजीपी पद के लिए डीपीसी हुई थी, तब पैनल में जौहरी का नाम सहमति के साथ शामिल किया गया था। बैठक में मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव एसआर मोहंती भी मौजूद थे। उन्होंने उस समय किसी भी तरह की कोई आपत्ति जाहिर नहीं की थी।
यदि जौहरी की लिखित सहमति के बिना उनका नाम शामिल करना सही नहीं था, तो उस समय मोहंती को अपनी लिखित आपत्ति दर्ज कराना थी। सूत्रों का कहना है कि अब चार माह बाद संवैधानिक संस्था के फैसले का अमान्य ठहराना पूरी तरह से गलत है।
एेसे में राज्य सरकार के डीपीसी फिर से कराने के प्रस्ताव को मान्य नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे ने डीजीपी की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने राज्य सरकार पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करने का आरोप लगाया है।
दुबे ने याचिका में कहा है कि प्रकाश सिंह की याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी को दो साल से पहले न हटाने और कार्यवाहक डीजीपी न बनाने को लेकर जो फैसला दिया है राज्य सरकार उसका पालन नहीं कर रही है।
राजेंद्र कुमार के अवसर घटेंगे- जौहरी के मध्यप्रदेश लौटने की स्थिति में रेडियो-टेलीकम्युनिकेशन एडीजी राजेंद्र कुमार के डीजीपी बनने की संभावना कम हो सकती है। राजेन्द्र कुमार अगस्त और जौहरी सितंबर २०२० में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। नियमानुसार सेवानिवृत्ति के ६ माह से कम होने पर डीजीपी के लिए चयन नहीं हो सकता, लेकिन यदि पैनल में किसी अफसर का नाम है तो यह फार्मूला उन पर लागू नहीं होगा।
यूपीएससी के पैनल में जौहरी का नाम दूसरे नंबर पर है। जबकि राजेंद्र कुमार का नाम छठवें नंबर पर है। जौहरी का नाम पैनल से हटने की स्थिति में ही राजेंद्र कुमार का नाम पैनल में शामिल हो सकता है। यूपीएससी यदि राज्य सरकार के प्रस्ताव को अमान्य करती है तो यदि जौहरी का नाम पैनल में रहता है, तो राजेंद्र कुमार के डीजीपी बनने के संभावना फिलहाल खत्म हो जाएगी।
पैनल में दूसरे नंबर परा मप्र पुलिस सुधार में स्पेशल डीजी मैथलीशरण गुप्त का नाम है, किंतु सरकार उन्हें डीजीपी बनाने में सहमत नहीं है। इस कारण उनके बाद वाले नामों पर विचार हो रहा है।