विदिशा संसदीय सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी। तब से 2014 तक इस संसदीय सीट में अभी तक 15 चुनाव हुए हैं। 13 बार आ चुनाव और 2 बार उपचुनाव। यहां कांग्रेस अभी तक केवल दो बार ही जीत पाई है। यहां जनसंघ और भाजपा की ही दबदबा रहा है। 1967 में पहली बार इस सीट से महाराष्ट्र के विख्यात वैद्य पंडित शिव शर्मा ने जीत दर्ज की थी। इस जीत के साथ यहां पर जनसंघ का खाता खुला था।
विदिशा संसदीय सीट भाजपा के दिग्गजों की पहली पसंद रहती है। यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, शिवराज सरकार में वित्त मंत्री रहे राघवजी, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और रामपाल सिंह चुनाव जीत चुके हैं।
साल 1991 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था। इस सीट पर पहले भाजपा के राघवजी ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया था लेकिन नामांक के आखिरी समय में भाजपा ने अपना उम्मीदवार बदल दिया था। आडवाणी के कहने पर अटल बिहारी वाजपेयी यहां से चुनाव लड़ने आए। अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ संसदीय सीट से पहले ही नामांकन कर दिया था। आडवाणी ने योजना बनाई की लखनऊ के साथ अटल जी को एक सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ना चाहिए और आडवाणी ने अटलजी के लिए विदिशा संसदीय सीट चुनी थी। हालांकि दोनों सीटों पर जीतने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने पास लखनऊ सीट रखी और विदिशा संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया था।
अटल बिहारी वाजपेयी के इस्तीफा देने के बाद इस सीट में उपचुनाव हुए। भाजपा ने तब के बुदनी विधायक शिवराज सिंह चौहान को यहां से उम्मीदवार बनाया। उसके बाद शिवराज सिंह चौहान यहां से लगातार पांच बार चुनाव जीते।
2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पार्टी की कद्दावर नेता सुषमा स्वराज को इस सीट के लिए चुना। सुषमा स्वराज यहां से लगातार दो बार सांसद रहीं।