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एक बदनाम विभाग है जो देता है बस तारीख पर तारीख

locationभोपालPublished: Jan 16, 2019 01:38:03 am

Submitted by:

dinesh Binole

pressureएनजीटी में मेंबर नहीं होने से अटकी सुनवाई, नए प्रकरणों की संख्या भी बची केवल 20 प्रतिशत

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भोपाल. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की भोपाल स्थित सेंट्रल जोन बेंच में पिछले लगभग एक साल से सुनवाई बंद है। रोज कॉज लिस्ट तो जारी होती है लेकिन उसमें अगली तारीख लग जाती है। इसका प्रभाव सीधा आम लोगों पर पड़ रहा है क्योंकि पर्यावरण संरक्षण के लिए जिम्मेदार एजेंसियों ने भी उसकी चिंता करना छोड़ दिया है। सरकारी विभाग और एजेंसियां एनजीटी द्वारा जारी किए गए पुराने आदेशों पर भी अमल नहीं कर रही हैं। राजधानी में ही एनजीटी के आदेश के बावजूद न तो डेयरियों और स्लॉटर हाउस को शहर के बाहर शिफ्ट किया गया और न सीवेज फार्मिंग पर रोक लग सकी। न तो वन क्षेत्र में निर्माण रूके और शाहपुरा झील की सफाई हो पाई। सुनवाई बंद होने से एनजीटी में आने वाले प्रकरणों की संख्या भी पिछले सालों की तुलना में मात्र 20 फीसदी के आसपास ही बची है।
गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन ने 1 फरवरी 2018 को भोपाल बेंच में पदस्थ जुडीशियल मेंबर जस्टिस रघुवेन्द्र एस राठौर और एक्सपर्ट मेंबर सत्यवान सिंह गर्बयाल का ट्रांसफर दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बेंच कर दिया था। हालांकि इसके पहले भी जुडीशियल मेंबर के बीमार होने के चलते पिछले दो माह से नियमित सुनवाई नहीं हो पा रही थी। उसके बाद से अभी तक भोपाल की सेंट्रल जोन बेंच में कोई मेंबर नियुक्त नहीं हुए हैं। इससे सुनवाई लगभग ठप्प है। अक्टूबर 2018 से हफ्ते में एक दिन वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई शुरू की गई। इसमें दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बेंच के सदस्य ही भोपाल के मामलों की वीसी से सुनवाई करते हैं। लेकिन इसमें भी एक दिन में 4-5 मामलों पर ही सुनवाई हो पाती है। कभी वहां पर ज्यादा वर्क लोड होने के चलते सुनवाई आगे बढ़ा दी जाती है। सुनवाई के भय से नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला प्रशासन, नगरीय प्रशासन विभाग आदि के अधिकारी सक्रिय हो जाते थे। शहर से जुड़े विभिन्न मामलों में कार्रवाई आगे बढ़ जाती थी। लेकिन अब नियमित सुनवाई नहीं होने पर इन एजेंसियों ने भी कार्रवाई बंद कर दी है।
500 से अधिक प्रकरण अटके, नए प्रकरण भी बहुत कम

एनजीटी की सेंट्रल जोन बेंच में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ तीन राज्यों के पर्यावरण संबंधी मामलों की सुनवाई होती है। यहां अभी 500 से अधिक प्रकरण पेंडिंग हैं जिन पर नियमित सुनवाई नहीं होने से कार्रवाई अटकी हुई है। पिछले सालों की तुलना में नए प्रकरणों की संख्या भी महज 20 फीसदी के करीब बची है। कई लोग प्रकरण तैयार कर बैठे हैं लेकिन वे याचिका लगाने के लिए सदस्यों की नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।
एनजीटी के आदेश जिन पर कार्रवाई अटकी

डेयरी शिफ्टिंग- भोपाल में शिफ्टिंग के लिए तय किए गए छह स्थानों में से केवल तीन स्थानों पर ही अधूरा विकास हुआ है। प्लॉट का आवंटन बंद। नतीजा शहर की सड़कों पर आवारा पशु घूम रहे हैं।
स्लॉटर हाउस- ननि ने नए सिरे से टेंडर कर कंपनी तय की है। लेकिन अभी यही तय नहीं वह आदमपुर छावनी में कहां बनेगा।
सीवेज फार्मिंग- एनजीटी के सीवेज के पानी से सिर्फ फूलों की खेती के आदेश के बावजूद शाहपुरा गांव, करारिया आदि क्षेत्रों में सीवेज फार्मिंग हो रही है।

भोपाल इंसीनरेटर- पर्यावरण अनुमति नहीं ले पाने की स्थिति में मार्च से बंद करने का आदेश जारी किया गया है। लेकिन अभी तक बंद नहीं किया गया।
कलियासोत नदी किनारे निर्माण- एनजीटी ने 33 मीटर के दायरे में आने वाले निर्माण हटाने के आदेश दिए थे लेकिन अभी तक अमल नहीं।
अभी बेंच में कोई मेंबर पदस्थ नहीं हैं इसलिए प्रकरणों में आगे की तारीखें दी जा रही हैं। नियुक्तियां केन्द्र सरकार को करना है। इसकी कार्रवाई चल रही है, जल्द मेंबर नियुक्त होने की संभावना है। सुनवाई नहीं होने के बावजूद हम विभिन्न मामलों में संबंधित विभागों और एजेंसियों से प्रोग्रेस रिपोर्ट ले रहे हैं। एनजीटी के जो आदेश हैं उन पर भी अमल सुनिश्चित किया जाएगा।
– सुशील कुमार, रजिस्ट्रार एनजीटी सेंट्रल जोन बेंच भोपाल
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