इधर, एमपी नगर थाना पुलिस का तर्क है कि सबसे अधिक कमर्शियल क्षेत्र में थाना होने के कारण काम का बोझ अधिक है इसके कारण समय पर जाली नोटों के मामलों की छानबीन और आरोपियों की गिरफ्तारी में देरी होती है। एक तर्क यह भी है कि जिन बैंकों में जाली नोट के प्रकरण आते हैं, वे बैंक पुलिस को सहयोग नहीं करते हैं। जबकि बैंकों के पास जाली नोट से संबंधित पूरी जानकारी होती है। ग्राहकों के खाता नंबर, सीसीटीवी फूटेज सहित अन्य जानकारी होने के बावजूद पुलिस को उपलब्ध नहीं करवाई जाती है, इसके कारण आरोपियों का पता नहीं चल पाता है।
जांच में गति लाने लिखा पत्र
एमपी नगर पुलिस की ढीलपोल को देखते हुए आरबीआई प्रशासन ने पत्र लिखा है। इसमें चिंता जाहिर की गई है कि बाजार में हर साल जाली नोटों का कारोबार बढ़ रहा है, लेकिन जांच के नतीजे सकारात्मक नहीं है। 2018 में 8 केस में 28 लाख 10 हजार 600 रुपए जाली नोट पकड़े गए थे, जबकि 2019 में यह आंकड़ा बढकऱ 4 केस में 1 करोड़ 6 लाख 39 हजार 560 रुपए जाली नोट पकड़े गए। यह सभी नोट अलग-अलग बैंकों में पहुंचे हैं, लेकिन बैंकों ने आरोपियों को पकडऩे में सहयोग नहीं किया, इसके कारण आरोपी पकड़ में नहीं आ पाए। बैंकों को इस बात का भय होता है कि उनके ग्राहकों का भरोसा कम होगा, इसलिए सीधे वे इस मामले की जानकारी उजागर करने से बचते हैं।
इसलिए बैंक-पुलिस बेफिक्र
बैंकों में आने वाले जाली नोट को बट्टा में डाल देते हैं। बैंक अपने स्तर पर नोट लाने वाले ग्राहकों-संदिग्धों की जांच अपने स्तर पर नहीं करवाते। बैंक प्रबंधन ऐसे मामलों की सूचना और जाली नोट पुलिस के हवाले करके निश्चिंत हो जाते हैं। वहीं, पुलिस भी बैंकों के इन मामलों के आरोपियों तक पहुंचने को समय की बर्बादी ही मानती है। दोनों को आरोपियों का पता लगाने की फिक्र नहीं होती है।
नोडल थाना प्रभारी मनीष राय का कहना है कि प्रकरणों में जांच पूरी कर ली गई है। सभी प्रकरणों का निराकरण कर लिया है।