दरअसल मप्र के 43 लाख और भोपाल के दो लाख पेंशनर्स और कर्मचारियों को फिलहाल यह नई पेंशन मिलना तय नहीं है। जानकारी के अनुसार ये वे पेंशनर्स हैं जो 1 सितंबर 2014 के बाद रिटायर हुए हैं। वहीं अभी जो कर्मचारी कारखानों, केंद्र-राज्य के कई सार्वजनिक उपक्रमों, निगम मंडलों में कार्यरत हैं, वे भी इस दायरे में आएंगे।
ऐसे समझें पूरा मामला…
सुप्रीम कोर्ट ने दाे साल पहले चार अक्टूबर को आरसी गुप्ता विरुद्ध ईपीएफओ के मामले में सुनवाई करते हुए हायर पेंशन देने संबंधी आदेश दिए थे।
इस पर अमल करते हुए पिछले साल 23 मार्च को तत्कालीन केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने लोकसभा में सभी पेंशनर्स- अंशदाताओं यानी कर्मचारियों को हायर पेंशन देने की घोषणा कर दी थी। साथ ही उसी दिन देर शाम कर्मचारी भविष्य निधि संगठन दिल्ली ने भी हायर पेंशन के बारे में आदेश जारी किए थे।
यह आदेश आने के बाद हरियाणा, पंजाब,केरल सहित हिमाचल प्रदेश में भी 1 सितंबर 2014 के बाद रिटायर हुए पेंशनर्स को हायर पेंशन दे दी गई थी। वहीं ईपीएफओ शिमला ने भी 220 पेंशनर्स को इसका लाभ दे दिया था।
जिसके बाद 2014 के आदेश का हवाला देते हुए पिछले महीने इन्हें यह पेंशन देना बंद कर दिया गया। रीजनल आफिस ने शिमला हाईकोर्ट में केविएट तक दायर कर दी। जबकि भटिंडा दफ्तर ने भी ऐसा ही किया।
जबकि मप्र में रीजनल आफिस ने एक सितंबर 2014 के बाद के रिटायर हुए कर्मचारियों को हायर पेंशन नहीं दी, लेकिन इस दायरे से बाहर के 400 पेंशनर्स को हायर पेंशन का लाभ दिया जा चुका है।
येे है वजह…
बताया जाता है कि इसके पीछे वजह यह है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन(ईपीएफओ)द्वारा 22 अगस्त 2014 को जारी आदेश के आधार पर शिमला और भटिंडा रीजनल आफिस ने ऐसे सैकड़ों पेंशनर्स को दी गई हायर पेंशन वापस ले ली है। इसका असर मप्र पर भी पड़ेगा।
होगा यह नुकसान : हायर पेंशन के दायरे में आने वाले पेंशनर्स को पुरानी पेंशन की तुलना में दस गुना ज्यादा तक हायर पेंशन मिल गई थी। 1 सितंबर 2014 के बाद वालों को हायर पेंशन नहीं मिली तो उन्हें इतना ही नुकसान होगा।
जानिये 2014 का आदेश : ईपीएफओ ने 22 अगस्त 2014 को एक आदेश जारी किया था। इसमें हायर पेंशन का विकल्प बंद कर दिया गया था। जानिये कैसे और कहा उलझा है मामला : ENCC यानि एम्प्लाइज नेशनल को-ऑर्डिनेशन कमेटी से मिली जानकारी के अनुसार एम्पलाइज पेंशन स्कीम 1995 के पहले पेंशन स्कीम 1971 लागू थी।
इसमें कर्मचारी के वेतन से 1.16 और नियोक्ता का अंशदान भी 1.16 फीसदी था। इस योजना में कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद कोई राशि नहीं मिलती थी, लेकिन कर्मचारी की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को 200 रुपए हर महीने पेंशन दी जाती थी।
इस स्कीम को ईपीएस 1995 में मर्ज कर दिया गया। इसकी शुरूआत में न्यूनतम पेंशन 500 और अधिकतम 1750 रुपए हर महीने तय की गई थी। केंद्र सरकार ने 19 अगस्त 2014 को न्यूनतम पेंशन बढ़ाकर 1000 रुपए कर दी थी।
गजट नोटिफिकेशन भी जारी किया गया था। इसमें न्यूनतम वेतन 5000 रुपए तय किया गया था। इसे 2001 में बढ़ाकर 6500 रुपए कर दिया। कर्मचारियों से अंशदान के तौर पर लेने वाली राशि 417 से बढ़ाकर 541 रुपए कर दी गई। अब पेंशन योग्य वेतन की सीमा 15 हजार रु. है।
बैठक के बाद देंगे चुनौती : सामने आ रही जानकारी के अनुसार एम्प्लाइज नेशनल को-ऑर्डिनेशन कमेटी के प्रतिनिधियों की 30 अक्टूबर को राष्ट्रीय बैठक के दौरान दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के वकीलाें से बात की जाएगी।
वहीं चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने हायर पेंशन संबंधी आदेश में कट आफ डेट का जिक्र ही नहीं किया। अत: बातचीत के बाद याचिका का मसौदा तैयार कर ईपीएफओ के आदेश को चुनौती दी जाएगी।