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राजधानी के अस्पतालों की हालत खराब: राज्य के अस्पतालों से लेकर केन्द्रीय बीएमएचआरसी और एम्स तक में कैंसर के सर्वसुविधायुक्त विभाग नहीं!

locationभोपालPublished: Sep 03, 2019 12:17:26 pm

कैंसर के एक हजार मरीज, लेकिन सरकारी अस्पताल कर रहे निराश…

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भोपाल। 38 वर्षीय सुचित्रा (परिवर्तित नाम) को दो साल पहले पेट में गठान हुई। इसे ऑपरेशन से निकाल दिया, लेकिन फिर बढ़ गई। निजी अस्पताल ने कैंसर की आशंका व्यक्त की।

जब वे जांच के लिए हमीदिया पहुंचीं तो बायोप्सी जांच के अलावा कोई सुविधा नहीं थी। सुचिता एम्स व बीएमएचारसी गईं, लेकिन वहां भी व्यवस्था न होने पर निजी अस्पताल में कीमोथैरेपी लेनी पड़ी। इस पर चार लाख रुपए खर्च हुए। सुचिता की तरह शहर में एक हजार से ज्यादा कैंसर मरीज हैं, जो सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के चलते निजी अस्पताल जाने को मजबूर हैं।
हमीदिया अस्पताल
यहां ऑन्कोलॉजी मेडिसिन का कोई विशेषज्ञ नहीं है। कैंसर मरीजों को दूसरे अस्पताल जाना पड़ता है। रेडियोथैरेपी विभाग में सिंकाई के लिए अब भी 35 साल पुरानी कोबाल्ट मशीन का उपयोग हो रहा है। यह मशीन भी दम तोड़ रही है। तीन महीने में इसका रेडियोएक्टिव पदार्थ खत्म हो जाएगा तो मशीन बंद हो जाएगी।
100-125 मरीज रोज
हमीदिया अस्पताल की ओपीडी में कैंसर के हर रोज 100 से 125 मरीज पहुंचते हैं। इनमें से 40 से 45 मरीज ऐसे होते हैं, जिन्हें सघन उपचार की जरूरत होती है।

नए चिकित्सकों की भर्ती और लीनियर एक्सीलरेटर के लिए कवायद चल रही है। एमआरआई के बाद लीनियर एक्सीलरेटर मरीजों के लिए बड़ी सौगात होगी।
– डॉ.अरुणा कुमर, डीन, जीएमसी
राजधानी के अस्पतालों में हालात इतने खराब :-

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स- AIIMS )
एम्स भोपाल में भी कैंसर विशेषज्ञ नहीं हैं। अस्पताल में कैंसर सर्जन हंै, लेकिन मरीजों को कीमोथैरेपी या अन्य के लिए निजी अस्पताल जाना पड़ता है। मरीज बाहरी डॉक्टर से परामर्श लेकर एम्स में इलाज करवाते हैं।
रोजाना 50 मरीज
एम्स में रोजाना 50 से ज्यादा मरीज आते हैं, जिन्हें कैंसर डिपार्टमेंट में रैफर किया जाता है। हालांकि यहां डॉक्टर न होने के चलते उन्हें मायूस होकर लौटना पड़ता है।

चिकित्सकों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है। बंकर बनने का काम पूरा हो चुका है। जल्द सिंकाई की सुविधा शुरू हो जाएगी।
– डॉ.मनीषा श्रीवास्तव, अधीक्षक, एम्स भोपाल
जेपी में हुई थी ट्रेनिंग
सरकार ने जेपी अस्पताल के मेडिसिन विशेषज्ञों को कैंसर स्क्रीनिंग की ट्रेनिंग दिलाई थी। हालांकि कैंसर के लिए ओपीडी आज तक शुरू नहीं हुई।

बढ़ रहे हैं 15% मरीज
पांच साल में कैंसर मरीजों की संख्या 50 फीसदी बढ़ी है। विशेषज्ञों के मुताबिक हर साल शहर में कैंसर मरीजों की संख्या 15 से 20त्न तक बढ़ जाती है।
बीएमएचआरसी…
गैस पीडि़तों के सबसे बड़े अस्पताल में कैंसर के मरीजों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। पिछले साल यहां के एकमात्र सर्जन ने अस्पताल छोड़ दिया था, जिससे भर्ती मरीजों तक को परेशानी का सामना करना पड़ा।
इन मरीजों को आनन-फानन में निजी अस्पतालों भर्ती किया गया। इसके बाद से यहां कोई डॉक्टर नहीं है। ऐसे में यहां हर रोज आने वाले 150 मरीजों को सिर्फ ओपीडी में देखा जाता है, भर्ती के लिए निजी अस्पताल जाना पड़ता है।
अस्पताल में धीरे-धीरे विभाग बंद होते जा रहे हैं। केन्द्र सरकार इस मामले में गंभीर नहीं है। हम कई बार इसको लेकर कोर्ट में भी जा चुके हैं।
– अब्दुल जब्बार, समाजसेवी

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