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मां, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं: पवैया

locationभोपालPublished: Mar 09, 2018 07:52:09 pm

Submitted by:

Kuldeep Saraswat

घर के बुजुर्गों से मिलने वाले नैतिक मूल्यों और पारंपरिक ज्ञान की पाठशाला गुरुकुल…

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भोपाल। मातृभाषा में काम करने वाले देश दुनिया में अव्वल हैं। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने हिन्दुस्तान और हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।

हिंदी विश्वविद्यालय ने मातृभाषा में कोर्स शुरू कर विद्यार्थियों की राह आसान कर दी है। अब अंग्रेजी भाषा किसी के केरियर में बैरियर नहीं रही है। यह बात उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय और मेपकॉस्ट् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में कही।
कार्यशाला का उद्देश्य बताते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज ने कहा कि देश की कई संस्थाएं और हिंदी ग्रंथ अकादमी मातृभाषा में किताब लिखने एवं प्रकाशित कर रही हैं। इससे हिंदी भाषी विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। कार्यक्रम के मुख्य मंत्री पवैया ने कहा कि इजराइल, जापान के साथ विश्व के जिन 20 देशों ने अपनी मातृभाषा से समझौता नहीं किया, वह सकल घरेलू उत्पाद के मामले में अव्वल है।
पवैया के मुताबिक घर के बुजुर्गों से मिलने वाले नैतिक मूल्यों और पारंपरिक ज्ञान की पाठशाला गुरुकुल की जगह अंग्रेजी माध्यम से चलने वाले स्कूलों ने ले ली।

सत्र में होम्योपैथी के विशेषज्ञ डॉ. एके द्विवेदी और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश में केन्द्रीय हिंदी सलाहकार डॉ. रीता सिंह, छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक शशांक शर्मा, बिहार ग्रंथ अकादमी के प्रकाशन अधिकारी विश्वनाथ प्रसाद, मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के रिसर्च एसोसिएट, चक्रेश जैन आदि ने अपने विचार रखे। अंत में विश्वाविद्यालय के कुलसचिव डॉ. एसके पारे ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
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मातृभाषा में शिक्षा और रिसर्च पर चिंतन की जरूरत
कार्यशाला में मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के महानिदेशक डॉ. नवीन चंद्रा ने बताया कि विज्ञान और तकनीकी को बढ़ावा देने के लिए मातृभाषा हिंदी जरूरी है।
दुनिया के सभी देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा और रिसर्च का काम कर रहे हैं। हमें भी इस दिशा में चिंतन करने की जरूरत है। कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष प्रो. अवनीश कुमार ने बताया कि भाषा के बिना संस्कृति और साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती। भाषा ही जीविकोपार्जन का साधन है। भाषा के बिना विकास, चिंतन एवं आत्मअभिव्यक्ति संभव नहीं है।
मातृभाषा से ही देश का विकास और मानवजीवन के स्तर को सुधारा जा सकता है। पहले सत्र में अभियांत्रिकी विषय पर जीबी पंत विश्वविद्यालय पंत नगर के निदेशक डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि पाठ्यक्रम से संबंधित पुस्‍तकों को हिंदी और भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किया जाना समय की मांग है।
माइक्रोसॉफ्ट में हिंदी का प्रयोग
सत्र में डॉ. बालेन्दु‍ शर्मा ने ‘माइक्रोसॉफ्ट में हिंदी का प्रयोगÓ विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उपनिषदों की परंपरा में अध्यात्म व विज्ञान का समन्वय दिखाई देता है। प्राचीन समाज में भी वैज्ञानिक चेतना दिखाई देती है।
सूचना क्रांति के युग में 5 प्रतिशत लोग अंग्रेजी और 95 प्रतिशत मातृभाषा बोलते हैं। सत्र की अध्यक्षता कर रहे मध्यप्रदेश ग्रंथ अकादमी के निदेशक डॉ. सुरेन्द्र बिहारी गोस्वामी ने कहा कि ग्रंथ अकादमी कोर्स आधारित किताब लिखने और प्रकाशित करवाने के लिए अनुदान देती है।
दूसरे सत्र में वरिष्ठ दंत चिकित्सक डॉ. चंद्रेश शुक्ला ने चिकित्सा के क्षेत्र में हिंदी भाषा में किताबे लिखे जाने की वकालत की। डॉ. शुक्ला के अनुसार मेडिकल के क्षेत्र में विकसित देश अपनी भाषा में किताबे प्रकाशित कर रहे हैं।

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