इतना ही नहीं सरकार ने निवेशकों को भी प्याज गोदाम बनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। भंडारण की व्यवस्था न होने से कई किसान प्याज को दूसरे राज्य में बेचते हैं वहीं प्याज बचने पर हर साल जून-जुलाई में सडऩे के डर से मुफ्त के भाव में बेचने तक के लिए मजबूर हो जाते हैं। अक्टूबर तक प्रदेश की प्याज खत्म होने के बाद दाम महंगे होते हैं, एेसे में प्रदेश के व्यापारी महाराष्ट्र से प्याज लाकर यहां पर ऊँचे दामों में बेचते हैं।
कहने को तो उद्यानिकी विभाग में प्याज भंडारण के लिए किसानों गोदाम योजना बनी हुई है। इसमें किसानों को गोदाम निर्माण की लागत राशि की 50 फीसदी राशि अनुदान में दी जाती है। गोदाम बनाने के लिए किसानों के पास दो एकड़ की जमीन होना जरूरी है।
एक किसान को कम से कम 25 टन और अधिकतम 5० टन प्याज की क्षमता के गोदाम बनाने के लिए अनुदान दिया जाता है, लेकिन योजना का प्रचार-प्रसार न होने से इसका असर शून्य ही रहा है। अब तक मात्र 4 हजार किसानों ने ही इस योजना में प्याज के गोदाम बनाए हैं। इनकी क्षमता मात्र साढ़े ३ लाख मीट्रिक टन प्याज भंडारण करने की है।
सरकार ने घटाई स्टॉक की क्षमता
केन्द्र सरकार ने हाल ही में 3 दिसंबर 2019 को व्यापारियों के लिए प्याज स्टॉक करने की क्षमता घटा दी है। पहले थोक व्यापारियों के लिए स्टाक की क्षमता 50 टन और रिटेलर के लिए 10 टन था, लेकिन सरकार ने जमा खोरी को देखते हुए थोक कारोबारियों के लिए 25 और रिटेलर के लिए 5 टन कर दिया है।
इसके साथ ही खाद्य विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे प्याज जमाखोरों पर कार्रवाई करें और मंडियों में आने वाली प्याज पर नजर रखे। इसमें इस बात रिपोर्ट का आकलन करें कि कितनी प्याज रोजाना आ रही है और उसको शहर के कौन-कौन से व्यापारी खरीद रहे हैं। स्टाक से अधिक प्याज जमा करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करें।
वर्जन —
– अशोक कुमार वर्मा, एमडी वेयर हाउसिंग कारपोरेशन मप्र
विभाग किसानों को प्याज का गोदाम बनाने के लिए 50 फीसदी तक अनुदान देता है। बड़ी मात्रा में प्याज भंडारण का काम किसान नहीं, व्यापारी करते हैं। विभाग में पीपीपी मोड पर गोदाम बनाने की कोई योजना नहीं है।
– काली दुरई, कमिश्नर उद्यानिकी संचालनालय मप्र