भोपाल

लाखों की ठगी में बैंक, मैनेजर और टेलीकॉम कंपनी देगी 35 लाख का हर्जाना

पहला फैसला: इंटरनेट बैंकिंग ठगी के मामले में कोर्ट ऑफ एक्जीक्यूटिंग ऑफिसर ने सुनाया फैसला, डुप्लीकेट सिम से ठगी को दिया गया था अंजाम

भोपालOct 02, 2018 / 01:08 am

manish kushwah

patrika news

भोपाल. तीन साल पहले ऑनलाइन बंैकिंग ठगी का शिकार हुए कारोबारी को बैंक, बैंक मैनेजर और मोबाइल कम्पनी मिलकर 35 लाख रुपए का हर्जाना देंगे। साइबर मामलों की सुनवाई करने वाली प्रदेश की एकमात्र कोर्ट, ‘कोर्ट ऑफ एक्जीक्यूटिंग ऑफिसर ने सोमवार को अब तक के सबसे बड़े हर्जाने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने बैंक ऑफ इंडिया को बैकिंग खातों की सुरक्षा में कमी एवं आइडिया कम्पनी को डुप्लीकेट सिम देने की प्रक्रिया में लापरवाही का दोषी पाया। यह कोर्ट का तीसरा और ऑनलाइ बैंकिंग फ्रॉड मामले में पहला फैसला है।
डुप्लीकेट सिम से ठगी : इंटरनेट बैंकिंग खातों से जुड़े मोबाइल नम्बर की डुप्लीकेट सिम निकलवाकर एवं ओटीपी हासिल कर ठगी की गई। दम्पती ने सितम्बर २०१७ में प्रकरण दर्ज करवाया था।
दो खातों से उड़ाए थे लाखों रुपए
करबला निवासी रियल एस्टेट कारोबारी सैय्यद सुल्तान जमील एवं उनकी पत्नी फरहा जमील के अकाउंट बैंक ऑफ इंडिया की प्रोफेसर कॉलोनी शाखा में थे। सुल्तान जमील के खाते से 25 जुलाई 2015 को 26 लाख एवं फरहा के खाते से 13 जुलाई को 18 लाख 90 हजार रुपए ठगों ने अपने खातों में ट्रांसफर कर ली। दम्पती को 29 जुलाई को ठगी का पता चला तो साइबर सेल में शिकायत की। पुलिस ने ठगों के खातों से नौ लाख रु. वापस ट्रांसफर करवाए, लेकिन ३५ लाख से अधिक की राशि रिकवर नहीं हो सकी।
पीडि़त ले सकते हैं हर्जाना
साइबर लॉ एक्सपर्ट और मामले में पैरवी करने वाले यशदीप चतुर्वेदी का कहना है कि इंटरनेट बंैकिंग और एटीएम संचालन के दौरान यदि उपयोगकर्ता अपने खातों और पासवर्ड की जानकारी शेयर नहीं करता है और ठगी हो जाती है तो बैंक जिम्मेदार होता है। एेसे मामले वल्लभ भवन के आइटी डिपार्टमेंट में संचालित कोर्ट में दायर किए जा सकते है।
सुरक्षा के इंतजाम न करने का पाया दोषी
ए क साल चली सुनवाई में कोर्ट ने पाया कि बैंक ऑफ इंडिया के सॉफ्टवेयर में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। विदेशों के आइपी एडे्रस से खातों में सेंध लगने पर भी अलर्ट मैसेज जनरेट नहीं हुआ। जज प्रमोद अग्रवाल ने पाया कि टेलीकॉम कम्पनी आइडिया ने भी फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस से डुप्लीकेट सिम जारी करते समय पर्याप्त सावधानी नहीं बरती, दस्तावेज मिलान और हस्ताक्षर तक नहीं देखे। खातों में कितनी राशि है और उनसे कौन से मोबाइल नम्बर जुड़े हैं यह जानकारी भी लीक हुई, साथ ही इतने बड़े ट्रांजेक्शन की जानकारी खाताधारक को समय पर नहीं दी गई।
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