रूपेश मिश्रा
झीलों की नगरी उदयपुर में हालही में कांग्रेस पार्टी ने चिंतन शिविर का आयोजन किया तो मानों ऐसा लगा जैसे पार्टी अब सचमुच अपने तेवर और कलेवर में बदलाव करेगी। क्योंकि एक बाद एक कई हार देखने और पार्टी की राष्ट्रीय फलक से लेकर राज्यों तक कमजोर होती धार के मद्देनजर ये लगा कि पार्टी अब कुछ बड़े बदलाव करेगी। खैर चिंतन शिविर में जैसे धड़ाधड़ प्रस्ताव पारित किए उससे ऐसा लगा भी। जैसे- एक परिवार- एक टिकट, युवाओं और सीनियर नेताओँ को 50-50 टिकट, अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं और आदिवासियों को बराबर प्रतिनिधित्व। लेकिन कांग्रेस पार्टी की हालही में जारी हुई राज्यसभा के उम्मीदवारों की सूची देखेंगे तो उपरोक्त फॉर्मूले की कोई भी झलक नजर नहीं आती है। सूची देखकर ऐसा ही लगता है जैसे खुद के बनाए कायदों को ही कांग्रेस आलाकमान ने रौद दिया हो। और वहीं पारंपरिक नाम पढ़कर ऐसा लग रहा है जैसे पार्टी ने दिल्ली दरबार के वफादारों को इनाम दिया हो।
घऱ के हाथ मलते रहे बाहरी बाजी मार गए
छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नाम तो इतने चौकाने वाले रहे कि जब से सूची जारी हुई है तब से इस बात की चर्चा है कि क्या दोनों ही प्रदेशों में कोई भी एक योग्य नेता नहीं था जो बाहरी नेताओँ को लाना पड़ा। क्या दोनों ही प्रदेशों के मुख्यमंत्री दिल्ली दरबार में लोकल नेता की पैरवी करने में असमर्थ थे। ये तमाम सवाल दोनों की सूबे में कल से गूंज रहे हैं। बता दें राजस्थान से रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी का नाम पार्टी ने तय किया है। जबकि छत्तीसगढ़ से राजीव शुक्ला और रंजीता रंजन का नाम तय हुआ। बता दें इन उपरोक्त नेताओँ का दोनों ही प्रदेशों से कोई दूर- दूर का वास्ता नहीं है। और उससे भी बड़ी हैरानी ये है कि दोनों ही प्रदेशों में कम से कम एक नाम जोड़ने की भी हिमाकत दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं जुटा पाए। कुलमिलाकर दिल्ली दरबार के सामने दोनों ही मुख्यमंत्रियों की एक न चली।
...तो फिर गुलजार होगी बागियों की बगिया
कुलमिलाकर जिस प्रकार के नाम कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा के लिए फाइनल किए है उससे सियासी विश्लेषक बता रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी की बगिया एक बार फिर से बागियों से गुलजार होने वाली है। राजस्थान में लोकल नेताओं के गुस्से का ज्वार कल से ही सोशल मीडिया के माध्यम से फूट रहा है। छत्तीसगढ़ में भी जबरदस्त रोष है। जबकि पवन खेड़ा और आचार्य प्रमोद जैसे नेता भी आलाकमान पर निशाना साध रहे हैं। गुलाम नबी और आनंद शर्मा का नाम इस सूची से गायब होना तो सबको चौका ही रहा है।