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प्रदेश में एक डॉक्टर करता है साढ़े 18 हजार पशुओं का इलाज

locationभोपालPublished: Jun 23, 2019 07:35:07 am

Submitted by:

Arun Tiwari

– चिकित्सकों की संख्या बढ़ाने निजी कॉलेजों को मिलेगी मान्यता- सरकार कर रही है नियमों में संशोधन
 
 

सरकार की पशुपालकों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा, गायों पर पड़ सकती है भारी

सरकार की पशुपालकों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा, गायों पर पड़ सकती है भारी

भोपाल : प्रदेश में इंसानों के साथ-साथ पशुओं की स्वास्थ्य व्यवस्था भी चरमराई हुई है। राज्य में 18500 पशुओं के हिस्से में एक डॉक्टर आता है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि आयोग के हिसाब से पांच हजार पशुओं पर एक डॉक्टर होना चाहिए। राज्य के कुल पशुओं की संख्या के मान से देखा जाए तो नेशनल कमीशन के मापदंड पूरा करने के लिए प्रदेश को 26 साल और लग जाएंगे। इन हालातों को सुधारने के लिए सरकार अब कुछ नियमों में संशोधन करने जा रही है।

सरकार अब निजी महाविद्यालयों को भी पशु चिकित्सा की पढ़ाई की अनुमति देगी ताकि प्रदेश में वेटरनरी डॉक्टरों की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सके। मध्यप्रदेश संभवत: देश का ऐसा पहला राज्य है जो इस तरह की पहल शुरु कर रहा है। संशोधन विधेयक विधानसभा के पावस सत्र में ही पेश किया जाएगा। विधेयक को विधि विभाग की मंजूरी मिल गई है लेकिन उसका अभी कैबिनेट में आना बाकी है।

ये है प्रदेश की स्थिति :

प्रदेश की अर्थव्यवस्था का मुख्यत: कृषि पर आधारित है। कृषि और पशुपालन एक दूसरे के पूरक हैं। प्रदेश की 19वीं पशु संगणना 2012 के अनुसार प्रदेश में लगभग 363 लाख पशुधन है और 119 लाख कुक्कुट हैं। प्रदेश में 169 लाख परिवार पशुपालन कर अपनी आजीविका चलाते हैं। प्रदेश की आर्थिक उन्नति के लिए पशुपालकों का आर्थिक स्तर बढ़ाना आवश्यक है। पशुपालकों की उत्पादकता बढ़ाने और लागत कम करने के लिए पर्याप्त संख्या में पशुचिकित्सकों का होना जरुरी है।

नेशनल कमीशन ऑन एग्रीकल्चर की अनुशंसा के हिसाब से 5 हजार पशुओं पर एक डॉक्टर होना चाहिए। मध्यप्रदेश राज्य पशु चिकित्सा परिषद में 31 मार्च 2019 तक कुल 3731 वेटरनरी डॉक्टरों ने रजिस्ट्रेशन कराया। इनमें से 99 डॉक्टरों का पंजीयन निरस्त किया गया,1318 डॉक्टरों का पंजीयन अवैध पाया गया। प्रदेश में कुल 1957 पशु चिकित्सकों का पंजीयन वैध है। इसी हिसाब से 18500 पशुओं पर एक डॉक्टर कार्यरत है। पशुओं की संख्या के हिसाब से 7266 डॉक्टरों की आवश्यकता है जिसको पूरा करने के लिए वर्तमान शैक्षणिक व्यवस्था में 26 साल लगेंगे।

ये है पशु चिकित्सा की शैक्षणिक व्यवस्था :

प्रदेश में पशु चिकित्सा विज्ञान विश्व विद्यालय अधिनियम के तहत नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्व विद्यालय 2009 को स्थापित किया गया। वर्तमान में नानाजी देशमुख यूनिवर्सिटी,जबलपुर के अधीन तीन पशु चिकित्सा कॉलेज आते हैं। ये कॉलेज जबलपुर, महू और रीवा में संचालित हैं। इन कॉलेजों में पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन ग्रेजुएट की उपाधि के लिए सालाना 261 सीट उपलब्ध हैं। इन सीटों में राज्य के लिए 201, भारतीय पशु चिकित्सा परिषद के लिए 36 और गैर आवासीय भारतीय के लिए 24 सीट आवंटित हैं। इस तरह प्रदेश लिए महज 201 सीट ही सालाना उपलब्ध हैं।

बदला जा रहा है ये नियम :

पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय अधिनियम की धार चार एक के अनुसार प्रदेश में पशु चिकित्सा और मत्स्य पालन विज्ञान में शिक्षा देने के लिए यूनिवर्सिटी के महाविद्यालयों के अलावा कोई नया कॉलेज स्थापित नहीं किया जा सकता। यानी गैर शासकीय शिक्षण संस्था नहीं खोली जा सकती। लेकिन अब वेटरनरी मेडिकल की दयनीय स्थिति देखते हुए सरकार इस नियम में संशोधन करने जा रही है। अब प्रदेश में पशु चिकित्सा में निजी क्षेत्रों के लिए दरवाजे खोले जा रहे हैं। इस विधेयक के पारित होने के बाद प्रदेश में पशु चिकित्सा के लिए प्राइवेट कॉलेज खोले जा सकते हैं। सरकार को लगता है कि इससे रोजगार के नए अवसर प्राप्त होने के साथ ही पर्याप्त संख्या में वेटरनरी डॉक्टर भी उपलब्ध हो सकेंगे।

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