ऐसे हुआ था पद्मावती का विवाह
चित्तौड़ की महरानी रानी पद्मावती अपनी सुदरंता के लिए पूरे भारत में जानी जाती थीं। बता दें कि रानी पद्मावती के अस्तित्व को लेकर इतिहास किसी भी प्रकार का कोई भी दस्तावेज मौजूद नही है, लेकिन चित्तोड़ में रानी पद्मावती की छाप दिखाई देती है। बेहद खूबसूरत रानी पद्मावती अपने पिता गंधर्वसेन और माता चम्पावती के सिंहाला में रहती थीं। यहीं पर उन्होंनें अपना पूरा जीवन व्यतीत किया। बताया जाता है कि उनके पास एक बोलने वाला तोता “हीरामणि” था। बहुत खूबसूरत होने के कारण पिता गंधर्वसेन ने पद्मावती के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। इस स्वयंवर में आस-पास के सभी हिन्दू-राजपूत राजाओ को बुलाया गया था। इस स्वयंवर में एक छोटे से राज्य के राजा मलखान सिंह भी विवाह की इच्छा को लेकर शामिल हुए थे। साथ ही इस स्वयंवर में चित्तोड़ के राजा रावल रतन सिंह रानी नागमती के होते हुए भी शामिल हुए और उन्होंने मलखान सिंह को पराजित कर पद्मावती से विवाह भी कर लिया था क्योंकि राजा रावल रतन सिंह स्वयंवर के विजेता थे। वे स्वयंवर के बाद वे अपनी सुंदर रानी पद्मावती के साथ चित्तोड़ लौट आये थे।
अलाउद्दीन खिलजी ने किया था आक्रमण
12 वीं और 13 वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के आक्रमणकारीयो की ताकत धीरे-धीरे बढ़ रही थी। इसके चलते सुल्तान ने दोबारा मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने सुंदर रानी पद्मावती को पाने के इरादे से चित्तोड़ पर भी आक्रमण कर दिया था। उन दिनों चित्तोड़ राजपूत राजा रावल रतन सिंह के शासन में था, जो एक बहादुर और साहसी योद्धा भी थे। एक प्रिय पति होने के साथ ही वे एक बेहतर शासक भी थे, इसके साथ ही रावल सिंह को कला में भी काफी रूचि थी। उनके दरबार में काफी बुद्धिमान लोग थे, उनमे से एक संगीतकार राघव चेतन भी था। ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी आज भी नहीं है की राघव चेतन एक जादूगर भी थे। वे अपनी इस कला का उपयोग शत्रुओं को चकमा या अचंभित करने के लिये आपातकालीन समय में ही करते थे लेकिन राघव सिंह के कारनामे सभी के सामने आने के बाद राजा बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाले जाने का भी आदेश दिया था। और उनके चेहरे को काला कर उन्हें गधे पर बिठाकर राज्य में घुमाने का आदेश भी दिया था। इस घटना के बाद वे राजा के सबसे कट्टर दुश्मनों में शामिल हो गए थे।
मन ही मन पद्मावती को चाहते थे अलाउद्दीन खिलजी
राघव चेतन ने दिल्ली की तरफ जाने की ठानी और वहां जाकर वे दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को चित्तोड़ पर आक्रमण करने के लिये मनाने की कोशिश करते रहते। दिल्ली आने के बाद राघव चेतन दिल्ली के पास ही वाले जंगल में रहने लगे थे, जहां सुल्तान अक्सर शिकार करने के लिये आया करते थे। एक दिन सुल्तान के शिकार की आवाज सुनते ही राघव ने अपनी बांसुरी बजाना शुरू कर दी। जब राघव चेतन की धुन सुल्तान की सेना और उन्हें सुनाई दी तो वे सभी आश्चर्यचकित हो गए थे की इस घने जंगल में कौन इतनी मधुर ध्वनि से बांसुरी बजा रहा होगा। सुल्तान ने अपने सैनिको को बांसुरी बजाने वाले इंसान को ढूंढ़ने का आदेश दिया और जब राघव चेतन स्वयं उनके सामने आये तब सुल्तान ने उनसे अपने साथ दिल्ली के दरबार में आने को कहा। तभी राघव चेतन ने सुल्तान से कहा कि वह एक साधारण संगीतकार ही है और ऐसे ही और भी बहुत से गुण है उसमें और जब राघव चेतन ने अलाउद्दीन को रानी पद्मावती की सुन्दरता के बारे में बताया तो अलाउद्दीन मन ही मन रानी पद्मावती को चाहने लगे थे।
पद्मावती की सुन्दरता को देखने के उत्सुक थे अलाउद्दीन
अलाउद्दीन अपने राज्य में गये और अपनी सेना को चित्तोड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया, ताकि वे बेहद खुबसूरत रानी पद्मावती को हासिल कर सके और अपने महल में ला सके। चित्तोड़ पहुंचते ही अलाउद्दीन खिलजी के हाथ निराशा लगी क्योंकि उन्होंने पाया की चित्तोड़ को चारों तरफ से सुरक्षित तरीके से सुरक्षा प्रदान की गयी है लेकिन वे रानी पद्मावती की सुन्दरता को देखने का और ज्यादा इंतजार नही करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने राजा रतन सिंह के लिये यह सन्देश भेजा की वे रानी पद्मावती को बहन मानते है और उनसे मिलना चाहते है। इसे सुनने के बाद निराश रतन सिंह को साम्राज्य को तीव्र प्रकोप से बचाने का एक मौका दिखाई दिया। रानी पद्मावती ने अलाउद्दीन को उनके प्रतिबिम्ब को आईने में देखने की मंजूरी दे दी थी। अलाउद्दीन ने भी निर्णय लिया की वे रानी पद्मावती को किसी भी हाल में हासिल कर ही लेंगे। अपने कैंप ने वापिस आते समय अलाउद्दीन कुछ समय तक राजा रतन सिंह के साथ ही थे। सही मौका देखते ही अलाउद्दीन ने राजा रतन सिंह को बंदी बना लिया और बदले में रानी पद्मावती को देने के लिये कहा।
राजा रतन सिंह को बना लिया बंदी
सोनगरा के चौहान राजपूत जनरल गोरा और बादल ने सुल्तान को उन्हीं के खेल में पराजित करने की ठानी और कहा की अगली सुबह उन्हें रानी पद्मावती दे दी जायेंगी। उसी दिन 150 पालकी (जिसे पूरी तरह से सजाकर, ढककर उस समय में चार इंसानों द्वारा एक स्थान से स्थान पर ले जाया जाता था। उस समय इसका उपयोग शाही महिलाएं एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाने के लिए करती थी) मंगवाई और उन्हें किले से अलाउद्दीन के कैंप तक ले जाया गया और पालकियों को वहीं रोका गया जहां राजा रतन सिंह को बंदी बनाकर रखा गया था। जब राजा ने देखा की पालकियां चित्तोड़ से आयी है तो राजा को लगा की उसमे रानी भी आयी होगी और ऐसा सोचकर ही वे शर्मिंदा हो गये थे लेकिन जब उन्होंने देखा की पालकी से बाहर रानी नहीं बल्कि उनकी महिला कामगार निकली है और सभी पालकियां सैनिको से भरी हुई है तो वे पूरी तरह से अचंभित थे।
अलाउद्दीन के कैंप पर किया गया आक्रमण
सैनिको ने पालकी से बाहर निकालकर तुरंत अलाउद्दीन के कैंप पर आक्रमण कर दिया और सफलता से राजा रतन सिंह को छुड़ा लियाजिसमें दोनों राजपूत जनरल ने बलपूर्वक और साहस दिखाकर अलाउद्दीन की सेना का सामना किया था और रतन सिंह को उन्होंने सुरक्षित रूप से महल में पंहुचा दिया था। यहां पर रानी पद्मावती उनका इंतजार कर रही थी। इस बात को सुनते ही सुल्तान आग-बबूला हो चुका था और उसने तुरंत चित्तोड़ पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। सुल्तान की आर्मी ने चित्तोड़ की सुरक्षा दिवार को तोड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा करने में वे सफल नही हो सके। तभी अलाउद्दीन ने किले को चारो तरफ से घेरना शुरू कर दिया। ऐसा पाते ही राजा रतन सिंह ने सभी राजपूतो को आदेश दे दिया की सभी द्वार खोलकर अलाउद्दीन की सेना का सामना करें। रतन सिंह की सेना अपेक्षानुसार खिलजी के लड़ाकों के सामने ढेर हो गई और खुद रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। ये सूचना पाकर रानी पद्मावती ने चित्तौड़ की औरतों से कहा कि अब हमारे पास दो विकल्प हैं या तो हम जौहर कर लें या फिर विजयी सेना के समक्ष अपना निरादर सहें।
लिया ‘जौहर’ करने का निर्णय
जौहर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शाही महिलाएं अपने दुश्मन के साथ रहने की बजाए स्वयं को एक विशाल अग्निकुंड में न्योछावर कर देती है। इस तरह खुद का जौहर कर उन्होंने आत्महत्या कर ली थी जिसमें एक विशाल अग्निकुंड में चित्तोड़ की सभी महिलाएं खुशी से कूद गयी थीं। इस विनाशकारी विजय के बाद अलाउद्दीन की सेना केवल राख और जले हुए शरीर को देखने के लिये किले में आ सकी। आज भी चित्तोड़ की महिलाओं के जौहर करने की बात को लोग गर्व से याद करते है। जिन्होंने दुश्मनों के साथ रहने की बजाये स्वयं को आग में न्योछावर करने की ठानी थी। रानी पद्मावती के बलिदान को इतिहास में सुवर्ण अक्षरों से लिखा गया है। आज भी इस कहानी को सुनने के लिए लोग उत्सुक रहते हैं।