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पाकिस्तान ने जेल में पांच महीने तक बेइंतेहा यातनाएं दीं, पसलियां टूट गईं, कई फ्रेक्चर हो गए पर मुंह नहीं खोला

locationभोपालPublished: Oct 08, 2019 01:48:27 pm

Submitted by:

hitesh sharma

एयरफोर्स डे आज : एयरफोर्स के जांबाज अफसरों ने देश की रक्षा के लिए नहीं की जान की परवाह

पाकिस्तान ने जेल में पांच महीने तक बेइंतेहा यातनाएं दीं, पसलियां टूट गईं, कई फ्रेक्चर हो गए पर मुंह नहीं खोला

पाकिस्तान ने जेल में पांच महीने तक बेइंतेहा यातनाएं दीं, पसलियां टूट गईं, कई फ्रेक्चर हो गए पर मुंह नहीं खोला

भोपाल। पाकिस्तान से भारत ने चार युद्ध लड़े। हर बार हमारे दुश्मन को मुंह की खानी पड़ी। युद्ध में सेना ने हर मोर्चे पर दुश्मन को करारी शिकस्त दी। एयरफोर्स ने थल सेना के साथ मोर्चा संभालते हुए दुश्मन की हर साजिश को नाकाम कर दिया। आठ अक्टूबर को एयरफोर्स डे मौके पर पत्रिका प्लस ने सेना के जाबांज अधिकारियों से जाना कि कैसे उन्होंने युद्ध के दौरान अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की रक्षा के लिए मोर्चा संभाले रखा।

वीरता चक्र से किया सम्मानित
1971 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के रूप में पश्चिमी सेक्टर में तैनात था। आदेश मिला कि पाकिस्तान की चिश्तिया मंडी इलाके में टैंकों को ध्वस्त करना है। 5 दिसंबर को पता चला कि बहावलपुर में 15 टैंकों को लेकर ट्रेन गुजर रही है। मैंने दो बार गोला-बारूद का डिपो उड़ा दिया। दुश्मन की तरफ से एंटी एयरक्रॉफ्ट गन से विमानों पर हमला किया जा रहा था। मेरे प्लेन पर हिट हुआ और विमान जलने लगा। मैं पैराशूट की मदद से नीचे उतरा तो पता चला कि वह पाकिस्तान की सीमा थी। मुझे युद्धबंदी बनाकर रावलपिंडी जेल में रखा गया। पाकिस्तानी बेइंतेहा यातनाएं दे रहे थे। मेरी ट्रेनिंग ऐसी थी कि वे कुछ भी उगलवा नहीं पाए। जब टार्चर करते तो मैं माइंड लॉक कर लेता। पांच महीने बाद समझौते के तहत 8 मई 1972 को मुझे रेडक्रॉस को सौंपा गया। मेरी रिब्स टूटी थीं, मल्टीपल फ्रेक्चर व लंग्स में इंफेक्शन था।
एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया, वीरता चक्र
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IMAGE CREDIT: patrika
1965 वॉर में दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया
1965 में मैं पठानकोट में पोस्टेड था। युद्ध शुरू होने के दौरान मैं छुट्टी पर था। तब सभी के पास फोन नहीं होते थे। ऑल इंडिया रेडियो से सूचना मिली कि छुट्टी रद्द कर सभी को अपनी यूनिट में बुलाया गया है। मैं पहुंचा तो देखा स्टेशन पर मूव कॉम्बेट एयर पेट्रोलिंग चल रही थी। हमें गन फ्री यानी दुश्मन को देखते ही मारने के आदेश मिले थे। रेडियो से हमें दुश्मन जहाजों की पोजिशन भेजी जाती थी, जैसे ही अटैक होता, हम भी फायरिंग करते। रात में ब्लैक आउट हो जाता था। कई बार 24 घंटे ड्यूटी होती थी। एक रात दुश्मन ने हमारे स्टेशन पर बम गिराया, तो एक प्लेन नष्ट हो गया। 6 सितंबर की रात अचानक कई स्टेशन पर हमले हुए। जिसमें हमने 4 एयरक्रॉफ्ट खो दिए। हमारी टीम जोश में थी। हमने उनके हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया।
एयर कमाडोर आरके पाल, वीएम
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24 घंटे लगातार काम कर हेलिकॉप्टर्स को किया सेफ

करगिल वॉर के समय मेरी पोस्टिंग उधमपुर में थी। वहां मैं चीफ इंजीनियर ऑफिसर था। सूचना मिली कि करगिल में घुसपैठ हुई। दुश्मन का पता लगाने के लिए यूनिट से हेलिकॉप्टर्स भेजे गए। सर्वे में दुश्मनों की कई हिल्स पर मूवमेंट दिखाई दी। सर्वे में यह भी तय हुआ कि उन पर किस तरह अटैक करना है। एयरफोर्स को आदेश था कि अटैक तो करना है, लेकिन एलओसी क्रॉस नहीं करनी है। हमारी यूनिट में लगातार फाइटर प्लेन आते थे। पूरी यूनिट उनमें बॉम्स और मिसाइल लोड करती थी। हम सभी थके हुए थे, गलतियां होने की आशंका भी थी, लेकिन पूरी टीम में इतना जोश था कि हमने लगातार 24 घंटे काम करते हुए हर मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया। दुश्मन पर हमला करते समय हेलिकॉप्टर्स पर ज्यादा खतरा रहता था, क्योंकि दुश्मनों के पास शोल्डर लॉन्चर मिसाइल थी। उन पर बुलेटपूफ्र प्लेट्स लगाने का फैसला लिया गया। ये सभी के लिए टफ टास्क था, क्योंकि इससे हेलिकॉप्टर का लोड काफी बढ़ जाता। उन्हें लगाने के लिए हमारे पास कुछ ही घंटों का समय था। हमने एक के बाद एक हेलिकॉफ्टर को सेफ कर लड़ाई के लिए तैयार किया।
एयर वाइस मार्शल पीके श्रीवास्तव, वीएसएम
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फॉर्मेशन देख दुश्मन नहीं कर पाया हमला
1983 में मैंने एयरफोर्स ज्वॉइन की। पहली पोस्टिंग में मुझे युद्ध वाहक विमान चालक के रूप में नियुक्ति मिली। सबसे पहले मैंने मिग-21 की ट्रेनिंग ली। इस प्लेन पर मैंने करीब एक हजार घंटे फ्लाइंग की। इसके बाद 1989 में मिग-29 को फ्लाई करना शुरू किया। मैंने अपने सेवाकाल के दौरान करीब 3 हजार घंटे की फ्लाइंग की है। करगिल युद्ध के समय हमारे जगुआर और मिराज विमान दुश्मनों पर बॉम्बिग करते थे। पाकिस्तानी फाइटर प्लेन उन्हें निशाना बनाने की कोशिश करते थे। हमारा काम दुश्मन जहाज से उनकी रक्षा करना था। हमारा फॉर्मेशन कुछ इस तरह का होता था कि दुश्मन जहाज हमला करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। कई बार टाइगर हिल पर से दुश्मन फायरिंग करते थे। फ्लैश की मदद या ऊंचाई पर जाकर हम अपना बचाव करते थे। हमारे साथी विंग कमांडर अजय आहूजा के मिग-21 पर स्ट्रिंगर मिसाइल से हमला हुआ था। वे दुश्मन के इलाके में गिरे और उनकी निर्मम हत्या कर दी गई थी।
एयर कमाडोर मृगेन्द्र सिंह, वीएसएम
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