जी हां, इस युवक ने इंग्लिश चैनल पार कर लिया। सत्येंद्र वहां जाने से पहले भोपाल झील में प्रेक्टिस कर खुद को टेस्ट करना चाहते थे, लेकिन भोपाल प्रशासन के रवैये से वे आज भी बेहद खफा हैं। सत्येंद्र बताते हैं कि वे खुद को टेस्ट करने के लिए भोपाल की बड़ी झील में तैरना चाहते थे, लेकिन की आवेदनों को अनदेखा कर दिया गया। इंदौर में सरकारी क्लर्क के पद पर काम करने वाले सत्येंद्र चाहते थे कि वे अपने लोगों के सामने तैरें, इसलिए 2016 में भोपाल प्रशासन को खत लिखकर मांग की, लेकिन उसके आवेदन को कूड़े की टोकरी में डाल दिया गया। इधर, तत्कालीन उप खेल निदेशक उपेंद्र जैन कहते हैं कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं आया था।
12 घंटे लगातार 12 डिग्री तापमान में तैरकर रचा इतिहास
सत्येंद्र बताते हैं कि इंग्लिश चैनल का चैलेंज् पूरा करने के लिए उसने 12 घंटे तक 12 डिग्री तापमान में चैनल पार किया। सत्येंद्र ने बताया कि कम तापमान से डर नहीं लगा, लेकिन जेलिफिस से जरूर डर था, लेकिन कोई हादसा नहीं हुआ।
सत्येंद्र करते हैं प्रशासन के व्यवहार के सामने उसने हार नहीं मानी। सत्येंद्र बताते हैं कि शारीरिक रूप से दिव्यांग लोगों को प्रोत्साहन देने के लिए ही वे यह सब कर रहे थे। वे कहते हैं कि मैं यह साबित करना चाहता था कि हम लोग भी सुपरमैन और सुपरविमन हो सकते हैं। लेकिन, प्रशासन के व्यवहार से मेरा इरादा और मजबूत हो गया।
सन 2014 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सत्येंद्र को विक्रम पुरस्कार से सम्मानित किया था। इंग्लिश चैनल पार करने के लिए घर को रख दिया गिरवी
सत्येंद्र बताता है कि उसकी आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है। सरकारी विभाग में क्लर्क की नौकरी करने वाले सत्येंद्र जैसे-तैसे अपना और परिवार का गुजारा करते हैं। वे बताते हैं कि जब मुझे फंड की जरूरत पड़ी तो कोई साथ नहीं था। कुछ निजी संस्थाओं ने मदद की, लेकिन वह भी काफी नहीं थी। सत्येंद्र कहते हैं कि IAS आफिसर पी. नरहरी ने उनकी मदद की, जिस कारण वे उनका अहसान मानते हैं। इसके बावजूद उन्हें अपनी जिद के आगे घर गिरवी रखना पड़ा।
सत्येंद्र बताते हैं कि इंग्लिश चैनल पार करने के लिए जिन से भी उन्होंने कर्ज लिया है वे अब इसे चुकाने के लिए चिंता कर रहे हैं। सत्येंद्र कहते हैं कि जब इंग्लिश चैनल पार कर सकते हैं तो इसके लिए भी कोई न कोई रास्ता निकल ही जाएगा।
ग्वालियर के रहने वाले सत्येंद्र (31) कहते हैं कि दिव्यांग होने के कारण उन्हें हमेशा ताने मिलते थे, लेकिन इससे निराश होने की बजाय उन्होंने इसे अपनी ताकत बना लिया। गांव के नजदीक ही बैसली नदी में तैराकी शुरू की थी।