कैबिनेट की बिना मंजूरी के 7.216 हेक्टेयर भूमि दिल्ली की यूरेको कैंपआउट्स प्राइवेट लिमिटेड को लीज पर सौंपी गई है। फर्म ने तारबंदी कर आदिवासियों का रास्ता रोक दिया। यहीं से ही आदिवासियों का पातालकोट के गांवों में आने-जाने का रास्ता है। उनके लिए अब पांच फीट का रास्ता बचा है। नियमों के तहत सरकारी जमीन को निजी हाथों में हस्तांतरित करने का प्रस्ताव कैबिनेट में जाता है, लेकिन इस मामले में इसका पालन नहीं किया गया।
सूत्रों के अनुसार पर्यटन विकास निगम की तत्कालीन प्रबंध संचालक छबि भारद्वाज ने इस सौदे का प्रस्ताव दो बार लौटा दिया था, लेकिन पर्यटन सचिव हरिरंजन राव जमीन को दिल्ली की फर्म को लीज पर देने पर अड़े रहे। उनके दबाव में खुद छिंदवाड़ा कलेक्टर फर्म को जमीन सुपुर्द करने पातालकोट पहुंचे थे।
पटवा और तपन फैसले से अनजान
भा जपा सरकार में पर्यटन मंत्री रहे सुरेंद्र पटवा और पर्यटन विकास निगम के तत्कालीन अध्यक्ष तपन भौमिक ने इस समूचे मामले से अनभिज्ञता जाहिर की है। पटवा का कहना है कि उन्हें पातालकोट मेंं जमीन लीज पर देने के बारे में कोई जानकारी नहीं है। आदिवासियों का रास्ता रोका गया है तो कार्रवाई होनी चाहिए। उधर, तपन भौमिक ने कहा कि टूरिज्म बोर्ड बनने पर संपत्तियों का मामला बोर्ड के पास चला गया था।
पर्यटन के नाम पर संपत्तियों की बंदरबांट
प र्यटन विभाग की जमीन और होटलों को निजी हाथों में सौंपने का खेल हरिरंजन राव के पर्यटन सचिव बनने के बाद शुरू हुआ। वे शिवराज सरकार में लंबे समय इस पद पर रहे हैं। वर्तमान में वे पर्यटन के प्रमुख सचिव हैं। उनके कार्यकाल में 2016 में ऐसी पर्यटन नीति तैयार की, जिसमें तय किया कि ईको और साहसिक पर्यटन में निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकारी जमीन लीज पर दी जा सकेंगी। फरवरी 2017 में पचमढ़ी में हुई पर्यटन कैबिनेट बैठक में पर्यटन निवेश के लिए बोर्ड गठन का निर्णय लिया गया।
जून 2017 में बोर्ड की पहली बैठक में मुख्यमंत्री को अध्यक्ष मनोनीत किया गया। इसका एमडी हरिरंजन राव को ही नियुक्त करके उन्हें सारे अधिकार थमा दिए गए। पातालकोट जमीन को लीज पर देने की प्रक्रिया पर्यटन विकास निगम ने प्रोसेस मैनेजर के रूप में पूरी की। इसके पीछे दिमाग राव का ही रहा। उन्होंने जान बूझकर इसकी अनुमति कैबिनेट से नहीं ली। उन्हें आशंका थी कि कैबिनेट में जाने पर मामला फंस सकता है।
निजी हाथों में सरकारी भूमि देना गलत
&सामान्यत: सरकार को आदिवासी या पर्यटन की जमीन प्राइवेट कंपनी को नहीं देनी चाहिए। सरकार को ही उसका विकास करके संचालित करना चाहिए। सामान्यत: जमीन किसी निजी व्यक्ति या कंपनी को दी जाती है, तो उसका प्रस्ताव कैबिनेट में भी लाना चाहिए।
निर्मला बुच , पूर्व मुख्य सचिव