पन्द्रह साल बाद भाजपा को अपदस्थ कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार को जैन आयोग की जांच रिपोर्ट की प्रतिलिपि तो मिल गई, लेकिन इससे पहले प्रशासनिक स्तर पर हुई जांच के साथ भेजा गया दास का प्रतिवेदन नहीं मिल पा रहा है। कांग्रेस सरकार ने वचन पत्र में किए गए वादे के अनुरूप आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा के मौजूदा सत्र में पेश करने का निर्णय लिया है।
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दास ने बनाई थी जांच कमेटी
पेंशन घोटाले पर जैन आयोग के गठन से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के निर्देश पर दास की निगरानी में 26 अप्रैल 2005 को पांच सदस्यीय समिति बनी थी। समिति ने पाया कि कैलाश विजयवर्गीय की अध्यक्षता में 26 फरवरी 2000 को हुई बैठक में पेंशन बांटने के लिए केंद्र के नियमों को ही बदल दिया। इसमें पेंशन राष्ट्रीयकृत बैंक या डाकघर से बंटनी थी, लेकिन निगम ने सहकारी संस्थाओं से बांटने का निर्णय लिया।
तब 56,358 व्यक्तियों को सहकारी संस्थाओं से पेंशन बांटी जाती थी। इनमें से 36,358 पेंशनधारियों का रेकॉर्ड ही नहीं मिला। दास ने इस रिपोर्ट के आधार पर प्रतिवेदन तैयार कर सरकार को भेजा था। इसमें उन्होंने पूरे घोटाले के लिए कैलाश को सीधे तौर पर जिम्मेदार माना। इस प्रतिवेदन के नहीं मिलने से कांग्रेस सरकार आगे कदम नहीं बढा पा रही है।
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सरकार संतुष्ट नहीं जांच आयोग की रिपोर्ट से
सूत्रों का कहना है कि सरकार के स्तर पर जस्टिस एनके जैन आयोग की रिपोर्ट की प्रति का परीक्षण हो रहा है। सरकार रिपोर्ट के तथ्यों से संतुष्ट नहीं है। इसे देखते सरकार दास के प्रतिवेदन को भी खंगाल रही है, जिसमें कैलाश को दोषी माना है। सूत्रों का दावा है कि परीक्षण करने के बाद सरकार इस मामले की दोबारा जांच कराने पर विचार कर सकती है। इस संबंध में विधि विभाग से भी परामर्श लिया जा रहा है।
अशोक दास, तत्कालीन संभागायुक्त इंदौर : मैंने जांच रिपोर्ट के साथ सरकार को अपना प्रतिवेदन दिया था। मैं किसी के दबाव में नहीं आया और न ही अपना प्रतिवेदन बदला। मेरे बाद सरकार ने जैन जांच आयोग गठित किया था। इस बारे में कुछ कहना ठीक नहीं।