खरीदने के साथ ही रिपेयरिंग कराने का सिलसिला शुरू हो जाता है। जानकारों का कहना है कि प्लानिंग में कमी के चलते ऐसा होता है। इन सरकारी निर्माण एजेंसियों के कुछ प्रोजेक्ट तो वर्षों पहले पूरे हो गए, लेकिन आवास अभी तक अलॉट नहीं हो पाए।
निर्माण के दो वर्षों तक प्रॉपटी नहीं बिकती है तो मूल्य हृास गणना कर कम कीमत पर बेचा जाना चाहिए, लेकिन कुछ प्रोजेक्ट्स में ऐसा नहीं किया जा रहा है।
हाउसिंग बोर्ड की अयोध्या नगर योजना फेस-5 में 112 ईडब्ल्यूएस आवास गरीबों के लिए बनाए गए थे। इन आवासों का निर्माण निर्माण वर्ष 2005-06 में किया गया था।इसी तरह बैरागढ़ चीचली में गौरव नगर प्रोजेक्ट में 1200 आवास बनाए जाने थे। दिसंबर 2015 में शुरू इस प्रोजेक्ट को दो वर्ष में ही पूरा करना था। अधिकांश आवास बन चुके हैं, लेकिन आवंटन बहुत कम का हुआ है।
ईडब्ल्यूएस भवन बिक गए फिर भी एलआइजी भवन बड़ी संख्या में खाली पड़े हैं। कुछ ब्लॉक में अभी तक काम चल ही रहा है। खरीदार आगे नहीं आ रहे। बताया गया कि हाउसिंग बोर्ड के पास 458 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की संपत्तियां पिछले तीन वर्षों से बिना बिकी पड़ी हैं।
बीडीए के भी कई प्रोजेक्ट अधूरे
बीडीए में अभी भी 100 करोड़ रुपए की आवासीय, 55 करोड़ रुपए की व्यावसायिक और 82 करोड़ रुपए की सार्वजनिक, व अर्ध सार्वजनिक प्रॉपर्टी मिलाकर 237 करोड़ रुपए से अधिक की प्रॉपर्टी बिना बिकी पड़ी हुई है।
बीडीए ने इस वर्ष 304 करोड़ रुपए के बजट में पुराने प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए अपने खजाने से 130 करोड़ रुपए खर्च करने का लक्ष्य रखा है। शेष राशि इन्हीं प्रोजेक्ट की बिक्री से जुटाई जाएगी। संस्थागत खर्च और वेतन, भत्तों पर 185 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
राजधानी में बीडीए के भी कई प्रोजेक्ट अधूरे हैं, जिनमें 782 आवास वाली महालक्ष्मी योजना में अभी तक आवासों का कार्य पूरा नहीं हो सका है। प्रोजेक्ट को लगभग पांच साल हो चुके हैं, लेकिन न तो आवास पूरे हुए और न ही डेप्रीशिएशन लागू किया गया।
इसी तरह बीडीए के घरौंदा सलैया प्रोजेक्ट में 1104 आवासों का विकास कार्य, बर्रई चरण-1 प्रोजेक्ट 1974 आवासों का पहुंच मार्ग, स्ट्रीट लाइट आदि, नवीबाग योजना में 516 आवास, बर्रई चरण-2 व 3 में 2 हजार आवास, होशंगाबाद रोड पर विद्यानगर फेस-2 तथा फेस-3 एक्सटेंशन, पुराने बाजार पुलिस लाइन में परी बाजार रिडेंसीफिकेशन आदि कार्य पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं।
एक्सपर्ट व्यू
शासकीय आवास की उम्र लगभग 40-50 वर्ष से अधिक नहीं मानी जा सकती। हाउसिंग बोर्ड या बीडीए जैसी सरकारी निर्माण एजेंसियों के आवास कम बिकने के पीछे दो चीजें अहम हैं, एक तो इनके निर्माण की लागत में स्टाफ आदि का खर्च एक बिल्डर की अपेक्षा कई गुना अधिक होता है। इससे प्रॉपटी बहुत महंगी हो जाती है और बिकने में दिक्कत आती है। दूसरा प्राइवेट बिल्डर को कुछ अनएकाउंटेड रकम कैश में भी दी जा सकती है, जबकि सरकारी एजेंसियों को पूरी रकम एक नम्बर में ही देनी होती है।
– अमोघ गुप्ता, एमपी चैप्टर अध्यक्ष, ऑल इंडिया आर्किटेक्ट एसोसिएशन
हम तो प्रॉपर्टी की यथास्थिति बताकर बेचते हैं, जिसे पसंद आए तो ले, नहीं पसंद आए तो नहीं ले। दो साल बाद डेप्रीशिएन काउंट कर कीमत तय की जाती है।
– एसके मेहर, अपर आयुक्त, मप्र हाउसिंग बोर्ड
फ्लैट या भवन की उम्र तो कोई तकनीकी जानकार ही बता सकता है। बिना बिकी प्रॉपर्टी का री-वैल्युएशन कर वर्तमान रेट से कीमत तय की जाती है।
– एमपी सिंह, डिप्टी सीईओ, बीडीए