अवैध रूप से मछली पकडऩे का बड़ा उदाहरण
छोटे तालाब में दो वर्ष पूर्व मछली मारने या पकडऩे के लिए जहरीले गोले तक पानी में मिलाए जाते रहे हैं। इन गोलों की रिपोर्ट मई २०२० में लखनऊ लैब से मिली इसके बाद केस एनजीटी में गया। पीसीबी की तरफ से इन पर ३० लाख ६० हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। जिसकी वसूली अभी तक नहीं हुई, विशेषज्ञों ने इस गतिविधि से छोटे तालाब को नुकसान होना भी बताया है। दरअसल मिट्टी के गोलों में लेड आर्सेनिक और मरक्यूरिक केमिकल की पुष्टि हुई थी। इसके बाद भी उसी संस्था को ठेका देने की तैयारी शुरू हो गई, लेकिन संभागायुक्त का विरोध होने से फिलहाल मामला अटका हुआ है।
सुबह से जब जाते हैं, अधिकारियों को दिखते नहीं
मछली पकडऩे के लिए काफी लोग खटलापुरा घाट में नाले की तरफ जमा हो जाते हैं। ये क्षेत्र एेसा है कि यहां से गुजरने वाले हर अधिकारी की निगाह इन पर पड़ती है। लेकिन कोई इन्हें रोकता या टोकता तक नहीं है। खटलापुरा घाट पर कुछ समय पूर्व हुए हादसे से सबक लेते हुए नगर निगम ने काफी इंजताम किए, लेकिन इन लोगों के लिए कोई इंतजाम नहीं किए गए। उल्टा नाले को छिपाने के लिए हरे रंग का कपड़ा और लगा दिया है। इस कारण ये लोग दिखते भी नहीं हैं। अगर किसी दिन कोई हादसा हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा।
मत्स्य विभाग ने लंबे समय से कार्रवाई नहीं की
इधर मत्स्य विभाग में अधिकारियों का आलम ये है कि उन्होंने लंबे समय से कार्रवाई ही नहीं की। यही नहीं वे तालाबों में मछली पालन के लिए लगाए गए स्टील केज का निरीक्षण करने भी नहीं जाते। भले ही ठेकेदार कितनी मनमानी करता रहे। एक एेसे ही मामले में फर्जी केज को लेकर बैंक से गलत तरीके से सब्सिडी लेने का मामला भी प्रकाश में आया था, लेकिन उसमें भी आगे बात नहीं बनी।
वर्जन
अवैध मछली पालन के मामले में मत्स्य विभाग को निर्देश देकर जानकारी और कार्रवाई कराई जाएगी।
कवींद्र कियावत, संभागायुक्त