अभी भी सैकड़ों दवाएं इस नीति के दायरे से बाहर हैं। यही वजह है कि दवाओं के दाम में भारी अंतर है। कहीं दवाओं के पिं्रट रेट और ग्राहकों से ली जा रही कीमत में अंतर है तो कहीं मुंह मांगे दाम। यही नहीं एक ही साल्ट और एक ही डोज की 2 अलग-अलग ब्रांड की दवाओं की कीमत में दोगुना-तिगुना अंतर है। हालात यह है कि दवाओं के दाम निर्माता कंपनियों के शेयर के आधार पर तय हो रहे हैं। पत्रिका ने राजधानी के दवा बाजार में पड़ताल की तो यह हकीकत सामने आई।कई दवाओं का अधिकतम खुदरा मूल्य तय नहीं होने का फायदा निर्माता से लेकर फुटकर विक्रेता भी उठा रहे हैं। स्थिति यह है कि 500 रुपये की दवा पर 2750 रुपए एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) लिखा गया है। यह दवा एम्स के डॉक्टर को जहां 500 रुपये में मिली। वहीं आम आदमी से इसके हजार रुपए से दो हजार रुपए तक वसूले जा रहे हैं।
एक ही साल्ट लेकिन कीमत में जमीन आसमान का अंतर बाजार में बिक रही अगर एक साल्ट की बात करें तो सेफ्टम और सेरोक्सिम 500 एमजी के कीमत में भारी अंतर है। सेफ्टम की एक गोली जहां 86 रुपये की है, वहीं सेरोक्सिम की एक गोली की कीमत केवल 25 रुपये है। स्टॉरवेस और अटोरवा दोनों बड़े ब्रैंड्स की दवाएं है। एक ब्रैंड की दवा के 40 एमजी की डोज की कीमत जहां 257 रुपये है, तो दूसरे की 306 रुपये है। दवाओं के यह दाम निर्माता कंपनियों की रसूख के आधार पर तय होते हैं।
मरीजों की मजबूरी को बनाते हैं हथियारदूसरी और रिटेलर भी मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं। रिटलेर मरीज को प्रिंटरेट से 20 से 25 फीसदी कम दाम में दवाएं देकर मरीजों को फायदा देने का दम्भ भरते हैं। जबकि हकीकत यह है कि इतने कम दाम देने के बावजूद रिटेलर दवा खरीदी की कीमत से कई गुना मुनाफा कमाते हैं। उदाहरण के लिए यूरिन संबंधी बीमारी की 9 रुपए की दवा सिडनेफि ल पर प्रिंट149 रुपए में होता है। रिटेलर इसे 100 रुपए से 120 रुपए में मरीजों को देते हैं। ऐसे ही हड्डियों को मजबूत करने वाली 7 रुपए की दवा कैल्शियम कार्बोनेट का प्रिंटरेट 120 रुपए, डायबिटीज की सात रुपए की दवा ग्लिमप्राइड का प्रिंटरेट 97 रुपए, हृदय रोग में इस्तेमाल होने वाली 11 रुपए की एटोरवस्टेटिन दवा का प्रिंटरेट 131 रुपए है।
कैसे होती है गड़बड़ी दरअसल नियम के मुताबिक प्रिंटरेट का सीधा अर्थ यह है कि रिटेलर उस दवा को प्रिंटरेट पर या उसके आसपास किसी भी दाम में बेच सकता है। ऐसे में कोई दवा 2500 रुपए में तैयार होती है तो वितरक इसे चार फीसदी मुनाफा जोड़कर खरीदेगा। वहीं खुदरा विक्रेता इसमें अपना आठ फीसदी जोड़ेगा जिससे दवा की कीमत करीब 3500 हो जाती है। लेकिन कंपनी करीब 10000 रुपए प्रिंट करती है। ऐसे में खुदरा विक्रेता इस दवा को दस हजार रुपए तक किसी भी कीमत में बेच सकता है।
कुछ दवाओं के नाम और प्रिंटरेट नाम – एमाआरपी – विक्रय मूल्य
वीनॉट प्लस 400एमजी – 2020 – 600 केस्पोकेयर – 9990 – 2900 कीमोकॉर्ब 450 एमजी – 2433 – 1050 जोल्डोनेट प्लस – 2550 – 350
लेनेनजियोल -2820 – 750
वीनॉट प्लस 400एमजी – 2020 – 600 केस्पोकेयर – 9990 – 2900 कीमोकॉर्ब 450 एमजी – 2433 – 1050 जोल्डोनेट प्लस – 2550 – 350
लेनेनजियोल -2820 – 750
प्रधानमंत्री व उपराष्ट्रपति से शिकायत दवा की कीमतों पर नियंत्रण नहीं होने और विक्रेताओं की इस मनमानी को लेकर निजामाबाद चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने शिकायती पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू तक भेजा है। उसका दावा है कि खुदरा विक्रेता 30 गुना तक मुनाफा वसूल रहे हैं। संगठन ने इस पर नीति बनाने की मांग की है। ताकि आम नागरिकों से होने वाली लूट को रोका जा सके। पत्र के साथ चैंबर ने 1097 दवाओं की सूची पीएमओ को भेजी है। जिन्हें 100 से लेकर 2100 प्रतिशत से अधिक दामों में बेचा जा रहा है। पत्र में कहा गया है कि देशभर में दवाओं की अधिकतम कीमत तय कर दी जाए तो चिकित्सा खर्च में 85 से 90 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।