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वर्चुअल वाटर को बचाने के करने होंगे जतन

locationभोपालPublished: Jan 21, 2020 11:13:08 pm

Submitted by:

anil chaudhary

– जो दिखता है उसके अलावा भी हो रहा पानी का अंधाधुंध उपयोग

one fourth of water is flowing without treatment in rivers of jodhpur

जोधपुर के एक चौथाई पानी को बिना ट्रीट हुए ही सीधे नदी में डाला जा रहा, 4 लाख की आबादी तक पहुंचा नहीं सीवरेज सिस्टम

अनिल चौधरी, भोपाल. देश में साल-दर-साल पानी की समस्या विकट रूप धारण करती जा रही है। कई इलाकों में तो फरवरी-मार्च से ही पेयजल की कमी होने लगती है। मई-जून आते तक तो यहां भीषण पेयजल संकट छा जाता है। हालांकि देश में पानी की बचत, पुन: उपयोग और वर्षा जल संचय के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं। इसके बाजवूद वर्तमान स्थिति में पानी को बचाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है जो दिखाई नहीं देता है और जिसे देश-दुनिया में आभासी पानी (वर्चुअल वाटर) कहा जाता है।


विभिन्न अखबारों में प्रकाशित खबरों के मुताबिक लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रो. टोनी एलन ने पहली बार 1993 में आभासी पानी की अवधारणा का प्रस्ताव रखा था। इसमें बताया था कि पानी की कमी वाले देशों में खाद्य पदार्थों की कमी है। इस प्रकार वे अपने जल संसाधनों को बचाते हैं। उन्होंने पानी की मात्रा के साथ कृषि उत्पादन का भी अध्ययन किया। 2002 में उन्हें स्टोखोम विश्व जल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कुछ वर्षों के बाद नीदरलैंड के प्रो. एवाई होकेस्ट्रा ने पानी की मात्रा के संबंध में फसल और पशु उत्पादन का भी अध्ययन किया। सभी अध्ययनों से लगता है कि फसल और पशुओं के उत्पादन के लिए पानी की मात्रा प्रयाप्त नहीं है।
‘आभासी पानीÓ के संबंध में अब वाटर फुट प्रिंट की भी अवधारणा है। एक साल में पानी की मात्रा का उपयोग और उपभोग कैसे होता है, उसका वाटर फुट प्रिंट है। यह अनुमान है कि हमारे देश में एक व्यक्ति हर दिन 3000 लीटर आभासी पानी का उपभोग करता है, इसलिए आभासी पानी की बचत बहुत आवश्यक है।

 

– वैश्विक समस्या है जल प्रदूषण
बगैर भोजन के मनुष्य लगभग 30 दिनों तक जिंदा रह सकता है परन्तु बगैर जल के केवल तीन दिन। जल हमें मूल्यवान नहीं लगता है, क्योंकि यह प्रकृति में बहुतायत से पाया जाता है। वर्तमान समय में औद्योगिकरण, नगरीकरण, उन्नत कृषि पद्धतियां, परंपरागत जल स्त्रोतों का खराब होना या समाप्ति एवं आधुनिक जीवनशैली के कारण जल की उपलब्धता घटती जा रही है। जल की कम होती उपलब्धता एवं बढ़ता प्रदूषण अब वैश्विक समस्या बन चुका है।


– भारत में 2030 तक आधी रह जाएगी पानी की उपलब्धता
मार्च २०१६ में आई वल्र्ड रिर्सोस इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार भारत का 54 प्रतिशत हिस्सा जल की कमी से जूझ रहा है। विश्व बैंक के 2015 क ेएक अध्ययन अनुसार देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 2010 में 1588 घन मीटर प्रतिवर्ष थी जो 2030 तक घटकर आधी रह जाएगी। इससे देश पानी की दुर्लभता वाले देशों की श्रेणी में आ जाएगा। हमारे ही देश के नीति आयोग के अनुसार देश के लगभग 60 करोड़ लोग जल की कमी को झेल रहे हैं। 70 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं है।

– मध्यप्रदेश में आएगा कानून
पानी की तमाम दिक्कतों और प्रदूषण जैसी परिस्थितियों के बीच मध्यप्रदेश सरकार भी जनता के लिए राइट टू वाटर कानून लागू करने वाली है। तालाबों तथा झीलों के लिए कैचमेंट प्रोटेक्शन एक्ट बनाया जा रहा है।

– आभासी जल को ऐसे जोड़ा कृषि उत्पाद से
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जल की समस्या से निपटने के लिए जो प्रयास हो रहे हैं वे उस जल के लिए हैं जो हमारे आसपास तरल रूप में दिखाई देता है। वर्तमान हालात में उस जल को बचाना भी बहुत जरूरी है जो हमें तरल स्वरूप में दिखाई नहीं देता है। इस अदृश्य जल को आभासी जल या (वर्चुअल) कहा गया है। किंग्स कॉलेज लंदन के प्रो. टोनी एलेन ने 1993 में आभासी जल की अवधारण प्रस्तुत की थी। प्रो. एलेन ने देखा कि पानी की कमी वाले देश जैसे उत्तरी अफ्रीका एवं मिडिल ईस्ट आवश्यक खाद्या पदार्थों का आयात कर अपने देश का जल बचाते हैं। एलेन ने कृषि उत्पादों की पैदावार में लगे जल की मात्रा को जोड़कर विस्तृत अध्ययन किया। कुछ वर्षों बाद प्रो. एवाई होकेस्ट्रा ने फसलों तथा जानवरों के उत्पादों में उपयोग में आए जल की मात्रा का अध्ययन आधुनिक कम्प्यूटर प्रणाली से किया। इसमें पाया गया कि खाद्य पदार्थों तथा जानवरों के उत्पाद के लिए जल की मात्रा सभी देशों में एक समान नहीं होती है। इसका कारण जल की उपलब्ध मात्रा तथा उपयोग में लाई गई तकनीक बताया गया। उदाहरण देकर समझाया गया कि एक किलोग्राम सेब के उत्पादन में 131, 157, 154 213 और 2122 लीटर जल की जरूरत क्रमश: जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, कनाड़ा और भारत में लगती है। आभासी जल का वैश्विक औसत एक किलो ग्राम आलू उत्पादन के लिए 317 लीटर बताया गया है। वैश्विक स्तर पर 43 प्रतिशत खाद्य पदार्थों की पैदावार के लिए अनवीनीकरणीय भूजल का उपयोग हो रहा है। यानी जल निकाला तो जा रहा है लेकिन उतनी मात्रा में प्राकृतिक भरण नहीं हो पाता है।
भारत, चीन, पाकिस्तान तथा अमेरिका काफी खाद्य पदार्थों का निर्यात करते है, बगैर यह सोचे कि भविष्य में पानी की कमी से इस पर बड़ा संकट आ सकता है। पाकिस्तान ज्यादातर चांवल का निर्यात कर विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है। विश्व में फैला खाद्य पदार्थों का व्यापार दुनिया के बड़े भागों में जल संकट की स्थिति पैदा कर रहा है। भारत प्रतिवर्ष विभिन्न वस्तुओं के साथ औसतन 59 ग 1012 लीटर आभासी जल का निर्यात कर 33 ग 1012 आयात करता है। इसे आयात निर्यात में देश को 26 ग 1012 आभासी जल की मात्रा का घाटा होता है। वर्ष 2013 में देश से 6ण्38 ग 109 किलो गेहूं का निर्यात 44 देशों को किया गया जिसमें आभासी जल की मात्रा 1ण्34 ग 1013 थी। हमारे देश में एक किलोग्राम गेहूं की पैदावार हेतु औसतन 2315 लीटर जल उपयोग में लाया जाता है। आभासी जल निर्यात के संदर्भ में हमारे देश का अमेरिका व चीन के बाद तीसरा स्थान है।

– अन्य सामग्री में कितना उपयोग हो रहा आभासी जल
आभासी जल की गणना अन्य सामग्री में भी की जाने लगी है। जैसे अचार, मुरब्बा, कागज, पेसिंल, नमकीन, मिठाईयां और इलेक्ट्रानिक उपकरण। यह भी पाया गया है कि पीने, कपड़े धोने, नहाने एवं सफाई कार्य में उपयोगी तरल जल की मात्रा से ज्यादा आभासी जल की मात्रा का उपयोग हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में जिस प्रकार कार्बन फुट प्रिंट की अवधारणा बनी ठीक उसी प्रकार जल उपयोग को लेकर वाटर फुट प्रिंट की धारणा भी स्थापित हो गई है। वाटर फुट प्रिंट से तात्पर्य है कि एक व्यक्ति द्वारा निश्चित समयावधी (प्रतिदिन, प्रतिमाह एवं प्रतिवर्ष) कितने तरल एवं आभासी जल का उपयोग किया जाता है। हमारे देश में एक व्यक्ति का औसतन वार्षिक वाटर फुट प्रिंट 5,69,000 लीटर आंका गया है। मांसाहारी भोजन का वाटर फुट प्रिंट शाकाहारी से ज्यादा पाया गया है। शादी या अन्य समारोह में एक शाकाहारी खाने की प्लेट में लगभग 2000 लीटर आभासी जल होता है। 20 ग्राम की मात्रा का खाना झूठा फेंकने पर 60 लीटर आभासी जल बर्बाद हो जाता है। आभासी जल का महत्त्व समझते हुए अब यह सोचा जाने लगा है कि खाद्य एवं अन्य उत्पादों पर आभासी जल की मात्रा का उल्लेख हो।

– आभासी जल की अवधारणा
अखबारों और समाचार पत्रिकाओं में प्रकाशित विभिन्न वस्तुओं में आभासी जल की मात्रा का औसतन मान
– अनाज
एक किलो गेहूं – 2315 लीटर
एक किलो चावल – 2500 लीटर
एक किलो मक्का – 300 लीटर

– पेय पदार्थ
एक लीटर साफ्ट ड्रिंक – 4 लीटर
एक गिलास बीयर – 75 लीटर
एक कप चाय/काफी – 2 लीटर

– फल/सब्जियां
एक किलो आम – 1600 लीटर
एक किलो टमाटर – 1000 लीटर
एक किलो कद्दू – 353 लीटर
एक दर्जन केला – 1920 लीटर
एक सामान्य आकार का सेब- 70 लीटर
एक किलो प्लास्टिक – 1300 लीटर
एक किलो शक्कर – 2000 लीटर
एक किलो मूंगफली – 3000 लीटर
एक किलो मांस -10000लीटर
एक किलो चपड़ा – 17000 लीटर

– डेयरी उत्पाद
एक लीटर दूध – 1000 लीटर
एक किलो पनीर – 5000
एक किलो मक्खन – 940 लीटर
दही 100 ग्राम – 140 लीटर
एक सामान्य गिलास दूध – 250 लीटर

– बेकरी उत्पाद
एक किलो ब्रेड – 1600 लीटर
एक स्लाइस ब्रेड – 42 लीटर

 

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