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पेटलावद मोहर्रम जुलूस विवाद में संघ कार्यकर्ताओं को क्लीनचिट, पुलिस पर सवाल

locationभोपालPublished: Apr 16, 2018 01:34:05 pm

Submitted by:

harish divekar

पेटलावद मोहर्रम जुलूस विवाद में आरएसएस पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को न्यायिक जांच आयोग ने क्लीनचिट दे दी है।

District public prosecutor

COURT

भोपाल। मध्यप्रदेश में झाबुआ के पेटलावद में करीब डेढ़ साल हुए बहुचर्चित मोहर्रम जुलूस विवाद में आरएसएस पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को न्यायिक जांच आयोग ने क्लीनचिट दे दी है। इसमें पुराने मामले का हवाला देते हुए आयोग ने पुलिस की कार्रवाई को द्वेषपूर्ण और बदला लेने वाली माना। आयोग ने तत्कालीन डीएसपी राकेश व्यास और तत्कालीन थाना प्रभारी करणी सिंह शक्तावत को सीधे तौर पर इसका दोषी ठहराया है। चुनावी साल में यह सरकार के लिए राहत की खबर है।

संघ ने बनाई थी टीम
यह मामला सुर्खियों में आने के बाद आरएसएस नागपुर मुख्यालय ने अपनी टीम पेटलावद भेजी थी। उसकी सक्रियता के बाद सरकार ने सेवानिवृत्त जज आरके पांडे की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग गठित किया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट अक्टूबर 2017 में राज्य सरकार को सौंप दी। पांच महीने से यह रिपोर्ट गृह विभाग में परीक्षण के लिए पड़ी हुई है। सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई कर इसे विधानसभा के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा।


यह था घटनाक्रम
पेटलावद में 12 अक्टूबर 2016 को मोहर्रम जुलूस रोके जाने पर साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति बन गई थी। इसमें पुलिस ने आरएसएस के नगर कार्यवाह संदीप भायल, पूर्व नगर कार्यवाह लूणचंद परमार, पूर्व महामंत्री मुकेश परमार, आकाश सोलंकी, नरेन्द्र पडिय़ार सहित अन्य पर मुकदमा दर्ज किया। बाद में उन्हें गिरफ्तार किया गया। आरएसएस मुख्यालय ने इस घटनाक्रम को लेकर पुलिस और सरकार की भूमिका पर नाराजगी जाहिर की थी। इसके बाद पुलिस अधीक्षक संजय तिवारी को वहां से हटाया गया। साथ ही तत्कालीन उप पुलिस अधीक्षक राकेश व्यास और थाना प्रभारी करणी सिंह शक्तावत को निलंबित कर दिया गया।


आयोग की रिपोर्ट में उठाए ये सवाल
1 पुलिस का दावा- साम्प्रदायिक तनाव के हालात थे, इसलिए आरएसएस कार्यकर्ताओं पर मुकदमा दर्ज किया गया।
आयोग का निष्कर्ष – हर वर्ष की तरह 12 अक्टूबर 2016 को भी मोहर्रम जुलूस निकाला गया। इसमें साम्प्रदायिक विवाद जैसी कोई स्थिति पैदा नहीं हुई।
2 पुलिस का दावा- आकाश चौहान और उसके साथी गौरक्षक बनकर गौवंश ले जाने वाले वाहनों को रोककर मारपीट वसूली करते हैं।
आयोग का निष्कर्ष – पुलिस आरोपियों से द्वेष रखती है। मोहर्रम चल समारोह के दौरान पुलिस को उनसे बदला लेने का मौका मिला और झूठा केस दर्ज किया।
3 पुलिस का दावा – आरोपी लूणचंद परमार और मुकेश परमार ने चल समारोह रोका और दूसरे रास्ते से ले जाने के लिए हंगामा किया। इससे साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति बनी।
आयोग का निष्कर्ष – यह घटना सुनियोजित रणनीति का हिस्सा नहीं थी। इस दौरान सिर्वी समाज के मोहल्ले में अनेक लोग मौजूद थे।
4 पुलिस का दावा- थाने में आरएसएस के लोगों ने हंगामा किया। पुलिस को हल्का लाठी चार्ज करना पड़ा।
आयोग का निष्कर्ष- किसी भी पुलिस अधिकारी को द्वेषभावना से किसी भी व्यक्ति पर बल प्रयोग को उचित नहीं ठहराया जा सकता।


आयोग बोला- पुलिस की कार्रवाई द्वेषपूर्ण
सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में कहा है कि आरएसएस कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने द्वेषपूर्ण कार्रवाई की। इसमें पुलिस अधीक्षक के उस पत्र का हवाला भी दिया, जिसमें कहा गया था कि आकाश चौहान नकली गौरक्षक है। वह बाइक सवार लोगों को लेकर गायों के ट्रक रोकता है, जो पैसा नहीं देता, उनके साथ मारपीट करता है। इनके खिलाफ पुलिस ने मामला भी दर्ज किया था। आयोग ने रिपोर्ट में कहा कि चौहान असली गौरक्षक है या नकली, इससे कोई मतलब नहीं है। पुलिस ने इन्हें अपने टारगेट पर लेने के लिए यह कार्रवाई की है।
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