scriptपढ़ाई छोड़ बाबू बने पीएचडी स्टूडेंट, मप्र में ऐसा है शिक्षा का हाल | PhD holder from IIT who are left office | Patrika News

पढ़ाई छोड़ बाबू बने पीएचडी स्टूडेंट, मप्र में ऐसा है शिक्षा का हाल

locationभोपालPublished: Dec 11, 2016 08:21:00 am

Submitted by:

rb singh

निजी कॉलेज ही नहीं सरकारी कॉलेजों में भी तकनीकी शिक्षा की क्वालिटी एजूकेशन दांव पर है। फिर भी आईआईटी जैसे राष्ट्रीय संस्थानों से पीएचडी करने वाले प्रोफेसर्स को प्रशासनिक कार्य के लिए लगा रखा है।

study

study


भोपाल. निजी कॉलेज ही नहीं सरकारी कॉलेजों में भी तकनीकी शिक्षा की क्वालिटी एजूकेशन दांव पर है। फिर भी आईआईटी जैसे राष्ट्रीय संस्थानों से पीएचडी करने वाले प्रोफेसर्स को प्रशासनिक कार्य के लिए लगा रखा है। एेसे में विभाग के क्वालिटी एजुकेशन के मकसद पर सवाल खड़े हो रहे हैं, जबकि इन्हें कॉलेजों में भेजकर टीचिंग और रिसर्च वर्क के जरिए बेहतर उपयोग किया जा सकता है। प्रोफेसर भी प्रशासनिक कार्य में लगकर भोपाल में रहना पसंद करते हैं, जबकि शासन पीएचडी कराने के लिए लाखों रुपए खर्च करता है। इन्हें क्वालिटी इंप्रूमेंट प्रोग्राम के तहत पीएचडी करने के लिए आईआईटी जैसे संस्थानों में भेजा जाता है। इन्हें वेतन सहित सभी सुविधाएं दी जाती हैं। एक टीचर पर पांच से दस लाख रुपए तक खर्च आता है, ताकि जब यह राष्ट्रीय संस्थान से लौटें तो प्रदेश के कॉलेजों को इसका फायदा मिल सके, लेकिन यह मकसद भी पूरा होता नहीं दिख रहा है।

प्रोफेसर की कमी
सभी इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रोफेसर्स की संख्या समान नहीं है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में सागर और रीवा में कुछ ब्रांच में शिक्षक नहीं हैं। मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और कंम्यूटर साइंस में काफी कम शिक्षक हैं। यही कारण है कि सागर में पिछले साल एडमिशन के लिए सीटें कम करनी पड़ी। हाल ही में 34 शिक्षकों को प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया गया है। अब इनके युक्तिकरण की मांग बढ़ रही है, ताकि सभी कॉलेजों में संख्या बराबर हो सके। वहीं आरजीपीवी में डटे आधा दर्जन टीचर्स को वापिस मूल संस्थानों में भेजने की मांग जोर पकड़ रही है।


इन्होंने की आईआईटी से पीएचडी
1- डॉ. सुनील कुमार गुप्ता :आईआईटी दिल्ली से मैकेनिकल में पीएचडी। अभी तकनीकी शिक्षा विभाग में अपर सचिव हैं। वल्लभ भवन में प्रशासनिक तौर पर सेवाएं दे रहे हैं। पूर्व में प्रवेश एवं शुल्क विनियामक समिति में ओएसडी।
2- डॉ. मोहन सेन : आईआईटी से मैकेनिकल में पीएचडी। पॉलीटेक्निक विंग में एग्जाम कंट्रोलर हैं। आरजीपीवी के एग्जाम कंट्रोलर थे।
3- डॉ. आरके सिंघई : आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रानिक्स में पीएचडी। लंबे समय से आरजीपीवी में डिप्टी रजिस्ट्रार हैं।
4- डॉ. भावना झारिया : आईआईटी रुड़की से इलेक्ट्रानिक्स में पीएचडी। हाल ही में प्रोफेसर बनी। इसके तुरंत बाद इन्हें पीईबी में ज्वाइंट एग्जाम कंट्रोलर के रूप में नियुक्त कर दिया गया।
5- डॉ. आलोक चौबे : आईआईटी दिल्ली से मैकेनिकल में पीएचडी। फिलहाल पीईबी में एग्जाम कंट्रोलर हैं।


हाईली क्वालीफाइड टीचर्स की सेवाएं कॉलेज में लेनी चाहिए। डायरेक्टे्रट और अन्य स्थानों पर रहकर यह रिसर्च कैसे करेंगे या करा सकेंगे। एेसे में सही उपयोग नहीं हो पाता। क्वालिटी एजूकेशन बढ़ानी है तो इनका उपयोग विद्यार्थियों और रिसर्च के लिए कॉलेज में होना जरूरी है। इससे सकारात्मक माहौल बनेगा, लेकिन कुछ लोग भोपाल में रहना पसंद करते हैं। इसलिए प्रशासकीय काम में जुट जाते हैं।
प्रो. संतोष श्रीवास्तव, पूर्व कुलपति

यह सही है कि विभाग के पास हाइली क्वालीफाइड टीचर्स मौजूद हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में टीचर्स की जरूरत भी है। इस संबंध में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन भविष्य में एेसे टीचर्स की सेवाएं शैक्षणिक और शोध कार्य के लिए प्राथमिकता में रखेंगे। एेसा भी कर सकते हैं कि यह प्रशासनिक जिम्मेदारी से पहले कॉलेज जाकर क्लास अटेंड करें।
– सभाजीत यादव, उप सचिव, तकनीकी शिक्षा
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो