ब्रायन ने कहा कि पियानो एक महंगा शौक है। इसे हर कोई नहीं खरीद सकता। पियानो मिलते ही मैंने नौकरी छोड़ दी। मैं जो म्यूजिक सुनता हूं, वहीं श्रोताओं के सामने पेश कर देता हूं। मेरा ख्वाब है कि मैं पियानो का स्कूल खोल सकूं और कभी ऐसा कॉन्सर्ट करूं, जिसमें 50 से अधिक पियानो में बॉलीवुड की गोल्डन एरा के गीतों को बजाया जाए।
ब्रायन कहते हैं जब मैं 1978 में कानपुर से दिल्ली आया तो अम्यूजमेंट पार्क अप्पू घर में मार्केटिंग की नौकरी करता था। मेरा मन संगीत की ओर भागता। वहां नौकरी करने का फायदा भी मिला। मार्केटिंग में कल्चरल डिपार्टमेंट भी था तब मैंने वहां वेस्टर्न बैंड और हिंदुस्तानी बैंड बना लिए थे। रोज शाम को इनकी परफॉर्मेंस भी होती थी। मैंने बचपन में खुद पियानो बजाना सीखा। मेरे मित्र स्टीवन ने मुझे सुना और मेरा लगाव देख एक कंपनी से पियानो 700 रुपए पर किराए पर दिलाया। मैं 6 माह तक किराया नहीं दे पाया। छह माह बाद मैंने रेंट देना शुरू किया। उसके बाद मैंने कभी पियानो नहीं छोड़ा।