MUST READ : विदेश से मंगाती थी लिपस्टिक : श्वेता को लग्जरी कारों, ब्रॉन्डेड कपड़ों, कॉस्मेटि…
शहर के पंडितों के अनुसार श्राद्ध पक्ष के १६ दिवसीय पखवाड़े में पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक पितृपक्ष रहता है। यह पखवाड़ा पितरों के तर्पण, श्राद्धकर्म के लिए विशेष है। मान्यता है कि पितृपक्ष पखवाड़े में पितर पृथ्वीलोक पर आते है। इसलिए जिनकी मृत्यु पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक जिस तिथि पर हुई है, पितृपक्ष की उस तिथि पर उनका तर्पण किया जाता है। इसी प्रकार जिन पूर्वजों की मृत्यु तिथि आदि ज्ञात नहीं है, उनके लिए सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन श्राद्धकर्म तर्पण का विधान है। सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध, तर्पण कर पितरों को विदाई दी जाती है।
२० साल बाद शनिश्चरी अमावस्या-सर्वपितृमोक्ष अमावस्या साथ
लगभग २० साल बाद सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन शनिश्चरी अमावस्या का संयोग बन रहा है। ज्योतिष मठ संस्थान के पं. विनोद गौतम ने बताया कि इसके पहले ९ अक्टूबर १९९९ को शनिश्चरी अमावस्या और पितृमोक्ष अमावस्या एकसाथ आई थी। उसके बाद इस बार यह संयोग आया है। इसके पहले दो बार सोमवती अमावस्या के साथ जरुर पितृमोक्ष अमावस्या आई है। इसमें १७ सितम्बर २००१ में और २९ सितम्बर २००८ में सोमवती अमावस्या और पितृपक्ष एकसाथ आई थी।
विशेष फलदायी रहेगी अमावस्या
पं.जगदीश शर्मा के अनुसार इस बार पितृमोक्ष और शनिश्चरी अमावस्या के साथ होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। इस दिन श्राद्ध कर्म करना अनंत फलदायक माना गया है। पितृ शांति के लिए पितृमोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध कर्म, तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। जिन पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद नहीं है, उनके निमित्त भी इस दिन तर्पण, श्राद्धकर्म किया जाता है।